लौट आओ बापू!
काव्य साहित्य | कविता डॉ. आरती स्मित15 Oct 2020 (अंक: 167, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
लौट आओ बापू
पगडंडी से निशान
मिटने के पहले
लौट आओ बापू!
लौट आओ बापू
नई तालीम और चरखे का तार
टूट जाने से पहले
लौट आओ बापू!
लौट आओ बापू
जातिभेद के विष
वमन से पहले
लौट आओ बापू!
लौट आओ ना!
टुकड़े-टुकड़े फाँक-फाँक
नवयुग बँट जाने से पहले।
लौट आओ बापू!
बापू, रुको तो! सुनो ज़रा
अर्थहीन शब्दों की ध्वनियाँ
ये तुम्हारे शब्द!
आज
सत्ता के रंग में रँगे
खादी के ब्रांड अम्बेस्डर हैं।
तुम्हारे ही अपनों ने बेच दी
शब्द की अस्मिता
गिरवी रख दिए उसूल तुम्हारे
और खड़ी कर दी रंग-प्रतिमाएँ
सम्मान में!
तुम तोलस्ताय- रस्किन-जैसे,
निर्माता थे समतामूलक समाज के।
स्वराज्य का सपना
और
सपनों का भारत
दोनों की गरदन झूल रही पेड़ों से।
आज भी बंदूक की नोक पर हैं
विचार तुम्हारे
सलीब पर है सत्य-अहिंसा
कहीं दूर, राँची के एक गाँव में
ताना भगत के आँगन में
टिमटिमा रहा है दीया
दूसरी आभा नि:शेष है
गुवाहाटी के अनामी गाँव में
जहाँ तुम जी रहे हो गुमनाम जीवन।
लौट आओ बापू
सत्याग्रह की दुदुंभी लिए
युग ढल जाने से पहले।
लौट आओ बापू
लौट आना ही परिणति जीवन की
माँ के मिट जाने से पहले!
लौट आओ!
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