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शिव संग मैंने खेली होली

(कविता संग्रह 'ज्योति कलश' में संकलित)

 

शिव संग मैंने खेली होली
काया मेरी बनी रंगोली
लाल, गुलाबी, नीला, पीला
तन पर लगा बासंती मेला
 
अलसाई ऋतु आए, न जाए
पल पल मानव मन रिझाए
पीकर भाँग मदमत्त भये
मानवी के मनमीत अहे
 
उलझी लट सुलझाऊँ कैसे
योगी शिव को रिझाऊँ कैसे
मानव-मन आमोद भरा है
चुनर रंग गुलाल जड़ा है
 
धरा सतरंगी हो..ली रे
मीत संग खेली जो होली रे
इंद्रधनुष निखरा गगन
कृष्णमयी राधा हो गई मगन

प्रीतरंग छूटै न छूटे
दासी मीरा तोड़ै न टूटे
प्रभु लीला प्रभु ही जाने
स्मित शिव को मनमीत माने। 

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टिप्पणियाँ

Pankaj Mishra 2022/03/12 12:28 PM

Bohot hi sundar panktiyo ka mell hai..

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