कामकाजी माँ
काव्य साहित्य | कविता डॉ. आरती स्मित15 Jul 2019
वह गूँध रही ख़ुशियाँ और सपने
काट रही बाधाएँ
झाड़ रही मन के मैल
बुहार रही घर के क्लेश
और अब
धुल रही बासी सोच
चमका रही मेधा।
उसने सहेजी हैं संवेदनाएँ
ठीक कीं सिलवटें विचारों की
समेट दिए अविश्वास
धुल दिए मन-प्राण सबके
और अब
लिख रही लेखा-जोखा
वर्तमान और भविष्य का।
वह हटा रही अपनी आरज़ू
सजा रही गौरव बच्चों का
उम्मीदों और सपनों को भी
और अब
उखाड़कर खर-पतवार
बना दी है समतल राह।
वह
आधुनिक युग की कामकाजी माँ!
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कहानी
पत्र
कविता
- अधिकार
- अनाथ पत्ता
- एक दीया उनके नाम
- ओ पिता!
- कामकाजी माँ
- गुड़िया
- घर
- ज़ख़्मी कविता!
- पिता पर डॉ. आरती स्मित की कविताएँ
- पिता होना
- बन गई चमकीला तारा
- माँ का औरत होना
- माँ की अलमारी
- माँ की याद
- माँ जानती है सबकुछ
- माँ
- मुझमें है माँ
- याद आ रही माँ
- ये कैसा बचपन
- लौट आओ बापू!
- वह (डॉ. आरती स्मित)
- वह और मैं
- सर्वश्रेष्ठ रचना
- ख़ामोशी की चहारदीवारी
ऐतिहासिक
स्मृति लेख
साहित्यिक आलेख
बाल साहित्य कहानी
किशोर साहित्य नाटक
सामाजिक आलेख
गीत-नवगीत
पुस्तक समीक्षा
अनूदित कविता
शोध निबन्ध
लघुकथा
यात्रा-संस्मरण
विडियो
ऑडियो
उपलब्ध नहीं