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सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

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बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

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ISSN 2292-9754

पूर्व समीक्षित
वर्ष: 22, अंक 289, दिसंबर प्रथम अंक, 2025

संपादकीय

जय जवान, जय (बेचारा) किसान
सुमन कुमार घई

  प्रिय मित्रो, कल यानी ३० नवम्बर को मैं न्यू जर्सी (यू.एस.ए.) पहुँचा हूँ। सुबह मुँह-अंधेरे लगभग साढ़े-छह बजे मिसिसागा (ओंटेरियो, कैनेडा) से कार द्वारा चल कर अपराह्न के साढ़े तीन बजे अपने बड़े बेटे के पास पहुँचा। जब घर से चले थे तो हल्की-हल्की बर्फ़ गिर रही थी जो कि लगभग एक घंटे बाद सेंट कैथरीन्स पहुँचते-पहुँचते गिरनी बंद हो चुकी थी। हम लोग प्रायः फ़ोर्ट इरी से यू.एस. में प्रवेश करते हैं—यहाँ कम भीड़ होती है। पहले नियाग्रा फ़ाल्स  से जाया करते थे परन्तु उस रास्ते से वेस्टफ़ील्ड, न्यू-जर्सी (मेरे गंतव्य) तक पहुँचने के लिए जो हाइवे चाहिए उस तक पहुँचने के लिए पूरे बफ़लो शहर...

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साहित्य कुञ्ज के इस अंक में

कहानियाँ

इंस्टाग्राम वाला प्यार
|

  रिया को बचपन से ही छायाचित्र लेने…

एक नज़र
|

  प्लैटफ़ॉर्म पर गाड़ी ससरती हुई रुक…

चकोर की व्यथा 
|

  चकोर अक्सर इस बात को दोहराते रहते…

चाक
|

  सुमित्रा ने घड़ी पर नज़र डाली। शाम…

चार बजे की माँ
|

  सुबह के चार बजे थे। बाक़ी दुनिया नींद…

चूक तो हुई थी 
|

  “डॉ. वर्मा! माँ की तबीयत ज़्यादा…

तब ढोलक की थाप, थम गई
|

  रईस खान हट्टा-कट्टा, छह फ़ीट का 30…

तुलना का बोझ
|

  ​अमित ने जब अपनी नई चमचमाती कार ख़रीदी,…

नई बोध कथा 
|

  शाम हो चली थी। जिस कार्य के लिये…

नीरव नीड़
|

    बरसात के दिनों में बाहर निकलते…

बैड फ़ेथ 
|

  घर मैं शुक्रवार की सुबह आ पहुँचता…

भभूल्या
|

  खेत की मेड़ों से चढ़ता-उतरता स्वछन्द…

मायका
|

  तेरहवीं की भीड़ अब छँट चुकी थी। जो…

शिक्षक या सेल्समैन?
|

  यह कहानी है अविनाश सर की—एक…

श्यामला
|

  श्यामला सोकर सुबह उठी तो उसे पक्षियों…

सात कचालू
|

  मूल कहानी: ले सेटे टेस्टे डी'एग्नेलो;…

ख़ूब उल्लू बनाया
|

  लखनऊ-प्रयागराज हाईवे पर एक ढाबे में…

हास्य/व्यंग्य

आलेख

बेटी पराई नहीं, वह देश का उजाला है
|

बेटियों का मिट्टी से उठता संघर्ष, संकल्प…

षष्ठम भाव: भौतिक व आध्यात्मिक व्याख्या
|

  जन्म कुंडली में तीसरे, छठवें और ग्यारहवें…

सतत वैज्ञानिक अनुसंधान और भाषा 
|

   हिंदी भाषा के जनक आदरणीय भारतेंदु…

समीक्षा

राधेश्याम : नाटक/फ़िल्म के अभिनय-सूत्र
|

राधेश्याम कथावाचक की रचनाओं और लोक साहित्य के विशेषज्ञ हरिशंकर शर्मा द्वारा…

लघुकथा के विकास में ‘कथादेश’ पत्रिका का योगदान
|

कथादेश: पुरस्कृत लघुकथाएँ: संपादक हरिनारायण, सुकेश साहनी प्रकाशन वर्ष:…

संस्मरण

चरकटु
|

  रात्रि के दो बजे आँगन में लोगों के…

मृत्यु और जन्म 
|

(संक्षिप्त भाव):   मृत्यु और जन्म मनुष्य…

कविताएँ

अंधकार से रोशनी तक
|

(भारतीय महिलाओं द्वारा नेत्रहीनों का क्रिकेट…

अफ़सोस 
|

  जब आँखें खोली थी मैंने पहली बार तो…

आग के पास जाती हुई ज़िंदगी! 
|

  धधकती आग पर चलना है रहना है सोना…

आदिवासी बच्चियाँ
|

  ठंड में भी कम वस्त्र में आदिवासी…

इत्मिनान 
|

  कोई गिला रहा नहीं,  न कोई शिकवा…

एक और अर्थ
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  कभी-कभी एक स्मृति अपना चेहरा उतारकर…

एक था वीरू
|

(धर्मेंद्र जी के लिए श्रद्धांजलि कविता) …

ओस की बूँदें
|

  ​यह क्या है, जो रात के गर्भ से जन्मा? …

कर्ण–कृष्ण संवाद 
|

  (महाभारत युद्ध, कुरुक्षेत्र प्रसंग) …

कविता आख़िर है क्या 
|

  कविता क्या है  कुत्ते की तरह …

कितना ज़हर भरा है
|

  पत्नी से छीन लिया सुन्दर कंगन जो…

कुछ सीखा है
|

  टूटे हुए लफ्ज़ों को बटोर कर मैंने…

गंगा को अब पावन कर दो
|

  गंगा को अब पावन कर दो   बहुत…

जीव
|

  जीवन में बस चाहता, जीव नया उत्साह। …

थकान
|

  थकान का आकर  ठहरना मेरे भीतर …

थकी हुई जूतियाँ
|

  सवाल करती हैं घिसी हुई जूतियाँ, …

थोड़ी-सी रौशनी
|

  पलकों पर ठहरी नमी अब शब्द नहीं खोजती, …

दहेज़—एक सवाल
|

  बेटी जब जन्म लेती है,  माँ की…

दिव्य प्रेम
|

  जब मैं शांत हो जाऊँगा तुम अशांत हो…

धर्म-ध्वजारोहण
|

  श्रीराम मंदिर के मुख्य शिखर पर धर्म-ध्वज…

नारी सिर्फ़ देह नहीं है
|

  मनुष्य के भीतर उठती काम-वासना की…

पीढ़ियाँ
|

  वे बच्चे इंतज़ार करते हैं जिनके पापा…

पुरुष हमेशा कठोर ही बने रहे . . .
|

  पुरुष हमेशा कठोर ही बने रहे स्त्री…

प्रारब्ध को चुनौती
|

  मैं खड़ा हूँ उस चौराहे पर—…

फिर हार जाता हूँ
|

  तेरी मुस्कुराहट,  फिर हार जाता…

फूल की सुन्दरता 
|

  कितना सुंदर है फूल जो दिखता है विभिन्न…

बिरसा मुंडा—आदिवासी गौरव
|

  जंगलों की छाती पर चलती थी हवा की…

भोर की अनकही
|

  मन के भीतरी आकाश में कभी–कभी…

मित्र! 
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  जब कोई मित्र नहीं हो नहीं हो विश्वसनीय…

मैं हार मानूँगा नहीं . . . 
|

  जीवन में है संघर्ष सघन फिर भी ज़िन्दा…

मैंने भागकर शादी कर ली
|

  मैंने भागकर शादी कर ली कोई गुनाह…

मौन की वह पतली रेखा
|

  तुम्हारा मौन कभी एक धागे-सा लगता…

रणचंडी की पुकार
|

  झाँसी की रानी फिर रणभूमि में गूँजी…

रहस्य
|

  मलहम मल दिया पिल्ले के पैर में रोटी…

रात 
|

  थककर सोता हूँ  तो बेहोशी आती…

रोज़ सुबह
|

  धर्म-पुण्य तो मैं कुछ नहीं जानता…

वह मज़दूर
|

  वह मज़दूर कठिन परिश्रम से बना रहा…

विज्ञानकु: निवेदन
|

  हमारे युवा विज्ञानकु का रखें कांधे…

विवेक
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  चलना सभी विवेक से, करना अच्छे काम। …

सर्वदर्शी
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  किताबों के बाद इंसानों को पढ़ने का…

हँसने दो
|

  माँ मैं माँ नहीं बनना चाहती अभी खेलना…

हत्याओं के दौरान 
|

  सुरक्षा से प्रेरित होकर  मूत्राशय…

हम बच्चे 
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  भारत माता के हम बच्चे सच्चाई के पथ…

हम वेश्या हैं
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  हम वेश्या हैं हमें ले चलो जैसा चाहे…

होत कबड्डी होत कबड्डी
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(भारत की बेटियाँ मिट्टी की महिमा, भारत की…

ख़बर नहीं, सौदा है
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  सच बेच दिया—मोल लगा कर, …

ज़िन्दगी –03
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  बहुत तन्हा-तन्हा रही ज़िन्दगी, …

ज़िल्लत की रोटी
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  दादा-दादी ने की है आत्महत्या शहरवाले…

<

शायरी

कभी नाम ले के बुला सको
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  कामिल मुसम्मन सालिम मुतुफ़ाइलुन मुतुफ़ाइलुन…

कभी शाम का तबसरा
|

  मुझको मतलब ही नहीं,  कोई अदावत…

क्या बात है . . . 
|

  तेरी जुल्फ़ों की घनी छाँव मिले तो…

जा रहा है आज सेहरा बाँध के बारात में
|

  रमल मुसम्मन महज़ूफ़ फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन…

तुम मुझ को दिल से विसराकर
|

  बहर: बहर-ए-हिन्दी मुतकारिब मुसम्मन…

तेरी याद
|

  चाँदनी जब भी तेरी ज़ुल्फ़ों से बिखर…

पहली ग़ज़ल कही है
|

  मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़…

पास अपने मुझको वो जब भी बुला लेगा
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  फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़े…

पेड़ की शीतल हवा
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  रमल मुसम्मन महज़ूफ़ फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन…

सुनसान दिल में फिर से
|

  सुनसान दिल में फिर से कोई मीठी बरसात…

कवि, स्वर, चित्र और निर्माण: अमिताभ वर्मा

उसका क्या

अमिताभ वर्मा की भावपूर्ण अभिव्यक्ति। उच्चारण से ’क्या’ शब्द के कितने भाव प्रस्तुत हुए—सुनें—उन्हीं…

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इस अंक की पुस्तकें

दिल से ग़ज़ल तक


2. दिल से ग़ज़ल तकः एक…
3. एक ख़ुशगवार सफ़र-दिल से…
4. दिल से ग़ज़ल तक अज़, देवी…
5. मेरी ओर से—दिल से ग़ज़ल…
6. 1. सफ़र तय किया यारो…
7. 2. सागर के तट पे आते…
8. 3. सुन सको तो सुन लो…
9. 4. न जाने क्यों हुई…
10. 5. ज़िन्दगी करना बसर…
11. 6. ग़लत फ़हमी की ईंट छोटी…
12. 7. माफ़ कैसे गुनह हुआ…
13. 8. इल्म होगा उसको फिर…
14. 9. हमसफ़र बिन है सफ़र…
15. 10. ग़म कतारों में खड़े…
16. 11. कहाँ हैं गए सारे…
17. 12. रौशनी की ये नदी…
18. 13. मिट्टी को देके रूप…
19. 14. राज़ की है बात जो…
20. 15. तेरे दर पर टिकी…
21. 16 . शमअ पर वो था जला…
22. 17. ये हमराज़ को उसने…
23. 18. बेवफ़ा से मुलाक़ात…
24. 19. कल जली जो ग़रीबों…
25. 20. वो है रहता ख़फ़ा…
26. 21. होगा विश्वास उन…
27. 22. भीड़ में वो सदा…
28. 23. है ये अनजान सा सफ़र…
29. 24. शायरी इक इबादत है
30. 25. हिफाज़त में हैं…
31. 26. फिर तो सब राज़ होंगे…
32. 27. तेरे मेरे बीच वो…
33. 29. कैसी ख़बरें हैं ये,…
34. 30. बादशाहत है कहीं…
35. 31. क्या करता है तेरी…
36. 32. कहीं सर किसी का…
37. 33. शोर में भी ख़फ़ा…
38. 34. होती बेबस है ग़रीबी…
39. 35. उसे ले आई जो शक्ति,…
40. 36. नया रंग हो नया ढंग…
41. 37.  ईंट-गारा हर तरफ़…
42. 38. जब भी बँटवारे की…
43. 39. क्यों बात को बढ़ा…
44. 40. हैवानियत के सामने…
क्रमशः

इस अंक के लेखक

विशेषांक

कैनेडा का हिंदी साहित्य

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विशेषांक सूची

डॉ. शैलजा सक्सेना (विशेषांक संपादक)

मित्रो,  बसंत पंचमी की आप सब को अनंत शुभकामनाएँ! बसंत प्रतीक है जीवन और उल्लास का। साहित्य का बसंत उसके लेखकों की रचनात्मकता है। आज के दिन लेखक माँ सरस्वती से प्रार्थना कर अपने लिए शब्द, भाव, विचार, सद्बुद्धि, ज्ञान और संवेदनशीलता माँगता है, हम भी यही प्रार्थना करते हैं कि मानव मात्र में जीने की.. आगे पढ़ें

(विशेषांक सह-संपादक)

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