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जिलियन हसलम: एक ब्रिटिश इंडियन महिला जो भारत को नहीं भूल सकती

 

(जिलियन की आत्मकथा से)

भारत की आज़ादी के बाद ज़्यादातर अँग्रेज़ भारत छोड़कर चले गए थे। जो थोड़े रह गए थे, उनमें एक हैं रस्किन बांड। वह जाने-माने लेखक हैं। उनके पिता उब्रे एलेक्जेंडर बांड राॅयल एयरफोर्स, इंडिया में अधिकारी थे। उनके बेटे रस्किन बांड भारत में ही रह गए थे। दूसरे हैं बालीवुड के जानेमाने एक्टर टाॅम ऑल्टर, जो बहुत सुंदर हिंदी बोलते थे। पर यहाँ आज हम ऐसी ही ब्रिटिश परिवार की भारत में रह गई महिला की बात करने जा रहे हैं, जो इस समय ब्रिटेन में रह रही हैं। पर वह अपने जन्मस्थान कोलकाता को भूली नहीं हैं। उनका नाम है जिलियन हसलम। 

वह समय आज़ादी के पहले का था। जिलियन के पिता ब्रिटिश सेना में थे। 1947 में जब भारत आज़ाद हुआ तो सभी अँग्रेज़ भारत से वापस ब्रिटेन चले गए थे। उन्हें वापस जाने के लिए एक साल का समय दिया गया था। परन्तु जिलियन का परिवार ब्रिटेन वापस नहीं गया। बात यह थी कि उन दिनों जिलियन के पिता की तबीयत बहुत ज़्यादा ख़राब थी। वह सेना के अस्पताल में भर्ती थे। लंबे समय के बाद वह ठीक हुए। पर उन्होंने ब्रिटेन वापस जाने के बारे में कभी सोचा नहीं। वह कोलकाता में ही स्थायी हो गए थे। 1970 में जिलियन का जन्म भी कोलकाता में ही हुआ था। इसके पहले इस परिवार को काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। इसके बावजूद इस परिवार ने कभी ब्रिटेन वापस जाने के बारे में नहीं सोचा। जिलियन के पिता दोबारा बीमार पड़ गए। उनके परिवार की हालत इतनी ख़राब हो गई कि उनके पास रहने के लिए घर भी नहीं रहा। जिलियन का कहना है कि उनके परिवार ने पड़ोसियों के घर में शरण ली। उनकी माँ को छोटे-मोटे काम करने पड़े। कभी-कभी उन लोगों को भूखे भी रहना पड़ा था। 

बात यह थी कि जिलियन जब पाँच साल की थी, तब उनके पिता को डमडम में टीचर की नौकरी मिली थी। वह परिवार के साथ वहाँ रहने आ गए थे। रहने के लिए दो कमरे का मकान मिला था। सभी ख़ुश थे। तभी उनकी जुड़वाँ बहनें बीमार हो गईं। जिलियन का कहना है कि वे कुल मिला कर 12 भाई-बहन थे। परिवार बड़ा था और आमदनी कम थी। उनकी जुड़वाँ बहनों की मौत हो गई थी। उन बहनों को दफ़नाने के लिए काॅफिन ख़रीदने का भी पैसा उस समय उन लोगों के पास नहीं था। समय बीतता रहा। एक दिन किसी ने उनके पिता से कहा कि तुम्हारी बड़ी बेटी डोना का जीवन ख़तरे में है। इसलिए तुम्हें यह जगह छोड़ देनी चाहिए। उस समय उनकी बहन डोना मात्र 13 साल की थी। वह बहुत सुंदर थी। उनसे कहा गया था कि किसी भी समय उसका अपहरण हो सकता है। यह सुन कर सभी डर गए और डमडम छोड़कर कोलकाता वापस आ गए। 

जिलियन का कहना है, “मेरे पिता की तबीयत फिर ख़राब हो गई। उन्हें फिर से अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। सिस्टर चैरिटी नाम की संस्था ने हमारी मदद की। समय के साथ हमारे पिता फिर ठीक हो गए। परन्तु ब्रिटेन वापस जाने के बारे में उन्होंने कभी सोचा नहीं। वह हमेशा के लिए कोलकाता में ही रहना चाहते थे। कुछ समय बाद हम कोलकाता की किडरपोर नाम की बस्ती में रहने आ गए। शुरूआत के दिनों में तो इस बस्ती में बिजली और पानी भी नहीं था। उसी दौरान मेरी माँ को एक बेटा पैदा हुआ, जिसका नाम नील रखा गया था।”

(जिलियन की आत्मकथा से) 

जिलियन और अपनी बड़ी बेटी को पिता ने सेंट थामस बोर्डिंग स्कूल में भर्ती करा दिया था। उसी बीच पिता को हार्टअटैक आया। माँ ने जिलियन को छोटे भाई-बहनों की देख रेख के लिए बोर्डिंग स्कूल से वापस बुला लिया। क्योंकि माँ पिता की देखभाल में व्यस्त रहती थी। घर की ज़िम्मेदारी सँभालते हुए भी जिलियन अपनी पढ़ाई अच्छी तरह कर रही थी। पढ़ाई में वह काफ़ी होशियार थी और परीक्षा में बहुत अच्छे मार्क्स लाती थी। वह और उसके सभी भाई-बहन भारतीय वातावरण में ही पढ़ रहे थे। होली के त्योहार पर सभी के साथ गीत गाते हुए नाचते थे। दीवाली पर पटाखे भी छोड़ते थे। 

17 साल की उम्र में जिलियन दिल्ली आ गई थी। प्रोफ़ेशनल कोर्स करने के बाद उसे ब्रिटिश एम्बेसी में नौकरी मिल गई। उसी दौरान उसकी माँ को कैंसर हो गया। इलाज के लिए माँ को दिल्ली ले आई। पर वह बच नहीं सकी। माँ की मौत के बाद छोटे भाई-बहनों की ज़िम्मेदारी जिलियन ने सँभाल ली। इसके बाद जिलियन को बैंक ऑफ़ अमेरिका में नौकरी मिल गई। इसके बाद उन सभी की ज़िन्दगी बदल गई। अपनी क़ाबिलियत के आधार पर जिलियन ने एक्ज़ीक्यूटिव सेक्रेटरी से ले कर सीईओ तक के ओहदे को सँभाला। उसे चैरिटी से जुड़े मामलों की ज़िम्मेदार सौंपी गई। पाँच साल की सख़्त मेहनत के बाद जिलियन को स्पेशल पैकेज मिला। इसमें से होने वाली आमदनी से काफ़ी रक़म उसने भाई-बहनों पर ख़र्च की। जिलियन सभी को ब्रिटेन ले गई और सभी को आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया। 

सन्‌ 2000 में दिल्ली में जिलियन ने विवाह किया। इसके बाद पति के साथ वह ब्रिटेन चली गई। नौकरी करते हुए जिलियन लोगों के कल्याण के लिए भी काम करने लगी। उसका कहना है, “मैंने ग़रीबी नज़दीक से देखी है। मैं मजबूर और निस्सहाय लोगों के दर्द को समझती हूँ। अब मैं समाज के लिए जीना चाहती हूँ।”

सन्‌ 2010 के बाद वह अपना अधिक समय लोगों की सेवा करने में व्यतीत करने लगी। उसने अपनी आत्मकथा भी लिखी। लोगों ने उसकी आत्मकथा को बहुत पसंद किया। जिलियन का कहना है, “मेरे आत्मकथा लिखने का मतलब यह था कि मैं लोगों से कहना चाहती थी कि मैंने कितना दुख सहन किया। मैं लोगों से यह भी कहना चाहती हूँ कि ग़रीबी या मजबूरी आप का रास्ता नहीं रोक सकती। मेहनत करो और हिम्मत रखो। मनोबल मज़बूत रखो, एक दिन आप को सफलता ज़रूर मिलेगी।” 

ब्रिटेन में स्थायी हुई जिलियन हर साल कोलकाता आती हैं। यहाँ उनके तमाम पुराने मित्र हैं। उन सभी से वह मज़े से हिंदी और बांग्ला भाषा में बात करती हैं। इस समय वह कोलकाता और दिल्ली में कई कल्याणकारी प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही है। जिलियन का कहना है, “मैं कहीं भी रहूँ, पर मेरा दिल तो कोलकाता में ही रहता है। कोलकाता मेरी जन्मभूमि है। मैं उसे कभी नहीं भूल सकती।” 

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