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बॉस के एयरकंडीशन ऑफ़िस में घुसते ही तिवारी के चेहरे पर पसीना आ गया। डेस्क पर पड़े लगभग 10 लाख के नोट और बॉस की रहस्यमय मुस्कान उसकी समझ में नहीं आई। 75 साल की उम्र में भी ग़ज़ब की फ़ुर्ती रखने वाले उसके बॉस उसके आदर्श थे। आज तक ऑफ़िस में बॉस द्वारा दिए गए वक्तव्य और मन मोटिवेशन का महासागर था। 

जैसे ही तिवारी केबिन के अंदर पहुँचे, उन्हें बैठने का इशारा करते हुए उन्होंने तुरंत बोलना शुरू कर दिया, “तिवारीजी, मेरी बात हो गई है, अन्य तीन मंज़िल बनवाने की परमिशन मिल जाएगी। तुम भरोसे वाले आदमी हो। यह रुपया ले जाओ। रात 9 बजे हॉलीडे इन में तुम्हारे नाम से टेबल बुक कराई है। श्रीवास्तवजी तुम्हें वहाँ मिलेंगे। बस, तुम्हें यह बैग उन्हें देकर उनके साथ खाना खाना है और चले आना है। इसी बहाने फ़ाइवस्टार में खाना खा आओगे,” अंतिम वाक्य बॉस ने आँख मार कर कहा था। 

“पर सर यह तो रिश्वत है। हम ने ऑलरेडी दो मंज़िल बना ली है,” तिवारी की प्रामाणिक आत्मा को यह अच्छा नहीं लगा। तिवारी को यह कहते सुन कर देवता जैसे बॉस का उसे एक नया ही स्वरूप देखने को मिला। 

“अरे आजकल के लड़कों को बिज़नेस चलाने की समझ ही नहीं है। मुझे किसी दूसरे को भेजना पड़ेगा और एक बात याद रखना तिवारी कि यह बात बाहर गई तो तुम्हारी ख़ैर नहीं। इस फ़ील्ड में मेरी प्रामाणिकता की क़समें खाई जाती हैं और इसे उसी तरह क़ायम रखने के लिए मैं किसी हद तक जा सकता हूँ। आशा है कि तुम समझ गए होगे और अब तुम जा सकते हो।”

ग़ुस्से में तिवारी को जाने का इशारा कर के बॉस किसी को फोन करने लगे। केबिन से बाहर निकलते हुए तिवारी को बॉस के पीछे रखी एक सुंदर शेल्फ़ में कुछ किताबें दिखाई दीं। जिनके नाम थे—सत्य के प्रयोग, कर्म के सिद्धांत, प्रामाणिकता का पथ। तिवारी बॉस के नए स्वरूप को देख कर बाहर निकल रहा था तो बॉस की केबिन के बाहर बैठी सेक्रेटरी किसी से फोन पर कह रही थी, “धार्मिक और चिंतन करने वाली किताबें अभी तक नहीं आई हैं, उन्हें जल्दी भेजो। बॉस के पीछे रखी शेल्फ़ में अच्छी-अच्छी किताबें होना ज़रूरी है। आने वाला आदमी शेल्फ़ में रखी किताबें देख कर मनुष्य की पर्सनैलिटी जज करता है।”

तिवारी परिणाम की परवाह किए बिना थाने की ओर चल पड़ा। क्योंकि जो किताबें बॉस ने दिखाने के लिए रखी थीं, उन सभी किताबों को वह पढ़ और समझ चुका था। 

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