जीवन
काव्य साहित्य | कविता वीरेन्द्र बहादुर सिंह15 Mar 2025 (अंक: 273, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
पेड़ का पत्ता
जो कभी पेड़ के जीवन का आधार था
रंग बदलने लगा
पहले हरा था
अब पीला पड़ने लगा
सभी से अलग होने लगा
टहनी जो सहारा थी
उससे भी अलग होने लगा
एक दिन टहनी ने उसे झटक दिया
नीचे आ कर वह ज़मीन पर सड़ने लगा
उसी तरह यह आदमी भी
कभी पूरे परिवार का सहारा था
हराभरा जीवन पूरे परिवार का आधार था
यह भी रंग बदलने लगा।
सुंदर चिकनी काया कुरूप होने लगी
मीठी आवाज़ खरखराने लगी
शरीर का रंग बदलने लगा
तब सभी लोग कटने लगे
जो कभी दूसरों का सहारा था
अब दूसरों के सहारे हो गया
बेटे-बहू, पोते-पोती दूर भागने लगे
सभी उससे कटने लगे
फिर एक दिन सभी ने उसे झटक दिया
पेड़ से टूटे पत्ते की तरह सड़ने के लिए
घर के एक कोने में डाल दिया।
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