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प्रेम

 

पिछले एक घंटे से डॉ. श्वेता ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट पर विविध रंगों की शर्ट पसंद कर रही थीं। एक प्रखर वैज्ञानिक और रोबोटिक्स में थीसिस प्रस्तुत करने वाली श्वेता ने पूरी ज़िन्दगी अपने लिए साड़ी या ड्रेस सिलेक्ट करने में दो मिनट से ज़्यादा का समय नहीं लगाया था। रोज़ाना सवेरे बालों को पीछे इकट्ठा कर के क्लिप लगा कर वह लैबोरेटरी पहुँच जाती थीं। उन्हें सजी-धजी कभी किसी ने नहीं देखा था। पिछले 7 सालों से वह केवल एक ही प्रोजेक्ट पर काम कर रही थीं। आर्टिफ़िशियल इंटेलिजंस के माध्यम से रोबोट में प्यार और संवेदना डालने का उनके प्रोजेक्ट का दूसरा चरण सफलतापूर्वक पूरा हो गया था। पर न जाने क्यों इधर कुछ दिनों से गाड़ी पटरी से उतर गई थी। अब तो प्रोजेक्ट का पेपर वर्क भी पेंडिंग रहता और श्वेता किसी दूसरे ही मूड रहती। इतना ख़ुश उन्हें किसी ने पहले कभी नहीं देखा था। 

पिछले कुछ महीनों से लैबोरेटरी के हर जूनियर्स के मन में एक ही बात चल रही थी कि संजय के लिए श्वेता के मन में कुछ अलग ही फ़ीलिंग्स है। बात-बात में ह्युमनाॅइड और एनाटाॅमिकल जैसी बातें छोड़ कर श्वेता संजय को यह अच्छा लगेगा, यह नहीं अच्छा लगेगा की बातें करने लगी थी। रोज़ाना शाम को ऑफ़िस की छुट्टी होने पर सारा स्टाफ़ चला जाता, पर संजय और श्वेता की बातें चलती रहतीं। दोनों केवल लैब में ही नहीं ऑफ़िस के पीछे वाले पार्क में पेड़ की आड़ में एकदूसरे के कान में कुछ कह कर हँसते। इतना ही नहीं, चौकीदार ने उन्हें ताली मारते भी देखा था। 

अपने जनून को पूरा करने के लिए श्वेता अभी तक कुँवारी थी। शायद इसीलिए संजय की ओर वह कुछ अधिक ही आकर्षित थी। अभी पिछले साल तक तो काम के अलावा किसी और बात पर वह ध्यान ही नहीं देती थी। पर संजय ज़िन्दगी में संजय के आते ही उसकी ज़िन्दगी बदल गई थी। पिछले सप्ताह संजय ने रिव्यू मीटिंग के बाद श्वेता से धीरे से कहा था कि उस पर लाल रंग बहुत अच्छा लगता है। बस, पिछले सप्ताह श्वेता 4 दिन लाल चटक साड़ी में दिखाई दी थी। 

कल अचानक सरकारी उच्च अधिकारियों की एक टीम लैबोरेटरी में आई। रोबोट में प्यार और संवेदनशीलता मानवजाति के लिए ख़तरनाक साबित हो सकता है यह रिपोर्ट श्वेता को सौंपते हुए तत्काल इस प्रोजेक्ट को रद्द करने का आदेश दिया। जिसमें कहा गया था—‘डिस्ट्रोय संजय: ए ह्युमन रोबो विद फ़ीलिंग स्टेज थ्री। (संजय को नष्ट कर दो; एक मानवीय रोबो जिसमें तीसरे स्तर की संवेदनाएँ हैं।)’! 

श्वेता के हाथ से आदेश के काग़ज़ नीचे गिर गए थे। 

उस दिन के बाद सभी ने आजीवन श्वेता को सफ़ेद साड़ी में देखा। 

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