मेरा सब्ज़ीवाला
काव्य साहित्य | कविता वीरेन्द्र बहादुर सिंह1 Dec 2024 (अंक: 266, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
मेरा सब्ज़ी वाला
सचमुच बहुत अच्छा आदमी है
वह रोज़ सवेरे मुझे हँस कर
जयश्री राम कहता है
मेरा दिन अच्छा जाए ऐसी
शुभेच्छा भी देता है
इसके बाद मेरी भावताल की
झिकझिक शुरू होती है
कभी उसकी मटर सड़ी होती है
तो कभी टमाटर गले होते हैं
उसकी अन्य चीज़ों का भी
कोई ठिकाना नहीं होता
पर वह मुझसे अपने संसार की बातें करता है
और मृदुता से जान लेता है कि
मेरा भी सब ठीक चल रहा है
अपने चेहरे-मोहरे के लिए या
अपनी सुघड़ता के लिए
वह मुझे अच्छा लगता है ऐसा नहीं है
वह मुझे अच्छा लगता है क्योंकि
भावताल की जंग में
मैं उसे हमेशा हरा सकता हूँ
और मेरी प्रत्येक प्रभात
विजय की मुस्कराहट के साथ शुरू होती है।
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