अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

रंगमंच

 

मैं पढ़ूँ ग़ज़ल तो ज़माना वाह वाह करता है, 
कोई बजाता है ताली तो कोई सोचता है 
तो कोई करता है टिप्पणी, 
अलग-अलग प्रसंग हैं यहाँ तमाम के, 
अनोखा रंगमंच है यह ज़िन्दगी, 
किरदार में रह कर लोग अभिनय शानदार करते हैं, 
कोई करता है प्रेम तो दग़ा हज़ार करता है 
मीठी-मीठी बातों से सौदा हज़ार करता है, 
कोई झेलता है घाव तो कोई घाव हज़ार करता है, 
मिन्नतों के साथ कोई मन्नत हज़ार करता है, 
मैं दुख पढ़ता हूँ अपना और 
ज़माना हँस हँस कर बात करता है, 
चुपके चुपके वह बातों में अपनी शिकायत करता है, 
कोई कहता है ख़ुद का क़िस्सा अनोखा और
 कोई दुख की भरमार करता है, 
अलग-अलग प्रसंग हैं यहाँ तमाम के, 
अनोखा रंगमंच है यह ज़िन्दगी, 
किरदार में रह कर लोग अभिनय शानदार करते हैं, 
कोई पहुँचता है सीधे और कोई मार्ग हज़ार करता है, 
धीरे-धीरे सपनों के कोई सौदे हज़ार करता है, 
कोई रखता है धीरज तो कोई आक्रोश हज़ार करता है, 
धीरे-धीरे सफलता का कोई सफ़र हज़ार करता है, 
मैं कहता हूँ सत्य और 
ज़माना मुँह से वाह वाह करता है, 
पीठ पीछे क्या पता तानों की बौछार करता है, 
भाईचारा यानी क्या! 
जिसमें राजा बने रंक के महल में रंक राज करता है। 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

सांस्कृतिक आलेख

लघुकथा

कविता

सामाजिक आलेख

ऐतिहासिक

कहानी

सिनेमा चर्चा

साहित्यिक आलेख

ललित कला

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

किशोर साहित्य कहानी

सिनेमा और साहित्य

पुस्तक चर्चा

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं