पराया पैसा
कथा साहित्य | लघुकथा वीरेन्द्र बहादुर सिंह1 Sep 2025 (अंक: 283, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
साथियों की मार खा कर भी अंकुश नहीं डिगा। मार खाने के बाद वह अपने दोस्त राजू को चाय पीने के लिए बग़ल के रेस्टोरेंट में खींच ले गया था। राजू ने नाराज़गी से पूछा, “तुम अपने साथियों से रुपए उधार ले कर क्या करते हो?”
“एवरीथिंग विल बी आलराइट, डोंट वरी,” उसने बेफ़िक्री से कहा।
“अगर तुम नहीं बताना चाहते तो मुझे जानने का भी शौक़ नहीं है,” राजू ग़ुस्से में खड़ा हो गया।
“यार, तुम तो नाराज़ हो गए। बैठो, सब बताता हूँ। मैं पिछले छह-सात महीने से दोस्तों से रुपए उधार ले कर शेयर बाज़ार में लगाता आया हूँ। मंदी के समय में अच्छे-अच्छे शेयर ख़रीद लिए हैं। शेयर बाज़ार में तेज़ी आते ही इन शेयरों की मार्केट प्राइस अच्छी मिल जाएगी,” अंकुश ने कहा।
“लेकिन शेयर बाज़ार का क्या भरोसा? आज तेज़ी तो कल मंदी,” राजू ने अपना डर व्यक्त किया।
“मैं तो और रुपए उधार लेकर शेयर बाज़ार में लगा कर फ़ायदा लेना चाहता था। पर लेनदारों के दबाव की वजह से पिछले महीने से ऑप्शंस में ट्रेडिंग करना शुरू कर दिया है। जिसके लिए ज़रूरी मार्जिन मनी के फ़ंड में शेयरों को प्लेस कर के खड़ा किया। ऑप्शंस ट्रेड में एक्सपायरी आने वाली थी। उसमें अच्छा प्रॉफ़िट हो रहा था। शाम तक पैसे आ जाएँगे।
“जो जलने से न मरे, वह हारने से मरे। भाई यह एक तरह की अग्नि परीक्षा है,” कह कर राजू चल पड़ा।
वह घर भी नहीं पहुँचा था कि पीछे से अंकुश ने आ कर उसके हाथ पर नया मोबाइल रखते हुए कहा, “दोस्त, तेरे लिए गिफ़्ट।” राजू हैरानी से उसे ताकता रह गया। अंकुश ने हँस कर कहा, “शाम तक मैं सभी के पैसे ब्याज सहित वापस कर दूँगा।”
यह सुन कर राजू ने उसे गले लगा लिया, क्योंकि अंकुश अग्नि परीक्षा में पास हो गया था।
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