सूखा पेड़
काव्य साहित्य | कविता वीरेन्द्र बहादुर सिंह15 Dec 2023 (अंक: 243, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
सूखे पेड़ को भी हरा-भरा होने की आस है
जैसे किसी प्यासे को पानी की प्यास है
दूसरे हरे-भरे वृक्ष को देख कर थोड़ा उदास है
मैं दूसरों को छाया दूँ सूरज का ऐसा प्रकाश है
सूखे पेड़ को हरा-भरा होने की आस है
खाद, बीज पानी की ज़रूरत इसे ख़ास है
फिर फूल आए या फल आए, इसमें भी वैसी ही मिठास है
सूखे पेड़ को भी हराभरा होने की आस है
जीवन है इसमें देखभाल की इसे तलाश है
देगा ऑक्सीजन यह इसमें भी साँस है
सूखे पेड़ को भी हराभरा होने की आश है
न करें इसका पतन करें इसका जतन इसमें भी सुहास है
है यह धरती का अनमोल रतन प्रकृति का इसमें वास है
सूखे पेड़ को भी हराभरा होने की आश है।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
सामाजिक आलेख
चिन्तन
साहित्यिक आलेख
काम की बात
सिनेमा और साहित्य
स्वास्थ्य
कहानी
किशोर साहित्य कहानी
लघुकथा
सांस्कृतिक आलेख
ऐतिहासिक
सिनेमा चर्चा
- अनुराधा: कैसे दिन बीतें, कैसे बीती रतियाँ, पिया जाने न हाय . . .
- आज ख़ुश तो बहुत होगे तुम
- आशा की निराशा: शीशा हो या दिल हो आख़िर टूट जाता है
- कन्हैयालाल: कर भला तो हो भला
- काॅलेज रोमांस: सभी युवा इतनी गालियाँ क्यों देते हैं
- केतन मेहता और धीरूबेन की ‘भवनी भवाई’
- कोरा काग़ज़: तीन व्यक्तियों की भीड़ की पीड़ा
- गुड्डी: सिनेमा के ग्लेमर वर्ल्ड का असली-नक़ली
- दृष्टिभ्रम के मास्टर पीटर परेरा की मास्टरपीस ‘मिस्टर इंडिया'
- पेले और पालेकर: ‘गोल’ माल
- मिलन की रैना और ‘अभिमान’ का अंत
- मुग़ल-ए-आज़म की दूसरी अनारकली
ललित कला
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
पुस्तक चर्चा
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं