बुढ़ापा
काव्य साहित्य | कविता वीरेन्द्र बहादुर सिंह1 Nov 2024 (अंक: 264, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
तुम्हारे बाल सफ़ेद हैं तो भले हैं
सफ़ेद तो पवित्रता का प्रतीक है।
तुम्हारे चेहरे पर
झुर्रियाँ आ जाएँ
तो आने दो
शायद उनमें तुम्हें
तुम्हारे सुखद मौक़ों का खोया
हिसाब मिल जाए।
तुम्हारा शरीर काँपे तो घबराना मत
क्योंकि इस कँपकँपी में भोगे स्पंदनों के
सामने बरसात हो सकती है।
तुम्हारा बुढ़ापा आए तो
उसे शान से आने देना।
बस इतना ध्यान रखना
कि वह अपने समय पर आए।
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