अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

बेड टाइम स्टोरी

 

“मैं पूरे दिन नौकरी और घर को कुशलता से सँभाल सकती हूँ तो क्या अपने बच्चे को अकेली नहीं सँभाल सकती? आधुनिक ज़माने की आधुनिक माँ हूँ और बच्चे की देखभाल की सभी आधुनिक पद्धतियों से परिचित हूँ। पूरे दिन की थकान के बाद भले ही अपने बच्चे को कहानियाँ नहीं सुना सकती, पर दिखा तो सकती हूँ। बेड टाइम स्टोरीज़ के कितने ऐप मोबाइल में हैं। आज की वेब पीढ़ी के बच्चे कहानियाँ सुनने के लिए नानी-दादी की राह नहीं देखते।” 

कावेरी के इस उलाहने को समझने वाले विनोद ने हमेशा की तरह उसकी इस बात का जवाब देना उचित नहीं समझा। उसका ध्यान कावेरी पर नहीं, सामने बेड पर मम्मी के मोबाइल में बेड टाइम स्टोरी देख-सुन रहे आपने छह साल के बच्चे पर था। इधर कुछ मिनटों से मोबाइल से कोई आवाज़ नहीं आ रही थी। बच्चे की पुतलियों में भी कोई हलचल नहीं दिखाई दे रही थी। आँखें मोबाइल स्क्रीन पर हैरानी से एकटक जमी थीं। शीशे में बाल ठीक कर रही कावेरी का ध्यान इस ओर बिलकुल नहीं था। 

विनोद ने गंभीरता से हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा, “देखूँ तो कौन सी स्टोरी सुन रहे हो?” 

बच्चे के हाथ से मोबाइल ले कर स्कीन पर नज़र पड़ते ही विनोद ग़ुस्से में बोला, “जाओ दादी के पास, वह तुम्हें स्टोरी सुनाएँगी।”

पापा का क्रोधित चेहरा देख कर मासूम दादी के बेडरूम की ओर भागा। कावेरी की असहनशीलता चरमसीमा पर पहुँच गई। चेहरा ग़ुस्से से लाल-पीला हो उठा। वह कुछ कहती, उसके पहले ही विनोद ने मोबाइल उसके हाथ में थमा दिया। मोबाइल की स्क्रीन पर वायरस द्वारा आई नग्न तस्वीर अभी भी स्थिर थी। 

एक भी शब्द बोले बग़ैर इस आधुनिक माँ ने अपने स्थिर मोबाइल का स्विच ऑफ़ कर दिया। 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

105 नम्बर
|

‘105’! इस कॉलोनी में सब्ज़ी बेचते…

अँगूठे की छाप
|

सुबह छोटी बहन का फ़ोन आया। परेशान थी। घण्टा-भर…

अँधेरा
|

डॉक्टर की पर्ची दुकानदार को थमा कर भी चच्ची…

अंजुम जी
|

अवसाद कब किसे, क्यों, किस वज़ह से अपना शिकार…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

सांस्कृतिक आलेख

लघुकथा

कविता

सामाजिक आलेख

ऐतिहासिक

कहानी

सिनेमा चर्चा

साहित्यिक आलेख

ललित कला

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

किशोर साहित्य कहानी

सिनेमा और साहित्य

पुस्तक चर्चा

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं