अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी रेखाचित्र बच्चों के मुख से बड़ों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

किसानों को राहत के बजट में 50 प्रतिशत रील के लिए

 

राहत की रक़म तय करने की बैठक में बेक़ाबू हँसी की बरसात!

“मित्रो! फिर किसानों को राहत देने का अवसर आया है,” एक सरकारी अधिकारी ने उल्लास से कहा। 

दूसरे अधिकारी बोले, “बिलकुल सही। आफ़त में से अवसर निकालना तो हमारी नीति है। किसानों पर आफ़त और हमारे लिए मौक़ा।”

तीसरे अधिकारी ने मुस्कुराते हुए कहा, “हम तो हमेशा काम ही ऐसा करते हैं कि किसानों को राहत माँगनी ही पड़े।”

चौथे अधिकारी ने सचाई स्वीकारते हुए कहा, “भाई, हम ठीक से काम नहीं करते, इसीलिए ही किसानों को राहत माँगनी पड़ती है।”

तभी पाँचवें अधिकारी बचाव में बोले, “उहूँ, इंसान चाहे कुछी करे, भगवान कुछ और कर देता है। हम काम करें या न करें, भगवान ऐसी स्थिति बना ही देते हैं कि किसानों को राहत माँगनी पड़ जाए।”

छठे अधिकारी ने ज्ञान बघारा, “हम जैसे अधिकारी भी तो किसानों पर भगवान की ओर से थोपी गई आफ़त ही हैं।”

हँसी का फ़व्वारा फूट पड़ा। 

तभी एक अधिकारी बोला, “वाह यार! ऐसे डॉयलाग कहाँ से लाते हो? कॉमेडी फ़िल्मों से?” 

वह अधिकारी बोला, “बॉलीवुड में अब कॉमेडी बची कहाँ है? वहाँ तो सिर्फ़ हारर-कॉमेडी बची है। ऐसे डॉयलाग मैं उससे भी ज़्यादा हारर शो से लाता हूँ, हमारे नेताओं के चुनावी भाषणों से।”

एक अधिकारी गंभीर हुआ, “चलो, अब असली काम पर आते हैं, किसानों के लिए राहत का बजट तय करें।”

एक आलसी अधिकारी पसरते हुए बोला, “राहत की घोषणा के कार्यक्रम, नेताजी के भाषण, स्वागत और बाद के भोज के लिए बड़ा बजट ज़रूर रखना।”

दूसरा अधिकारी बोला, “मेरा विनम्र सुझाव है कि राहत की रक़म का 50 प्रतिशत तो सिर्फ़ राहत की घोषणा की सोशल मीडिया रील बनाने में ही ख़र्च करो। आजकल जनता को भी तो रीलों में ही रुचि है। और अब तो यह भी मान्यता प्राप्त है कि रील बनाना भी एक बड़ा रोज़गार है।”

तभी एक जूनियर अधिकारी बोला, “लेकिन सर, हमारे प्रिय सोशल मीडिया इनफ़्लुएंसर अब रील के लिए बहुत बड़ा बजट माँगते हैं। अगर उन्हें लेना है तो राहत का बजट और बढ़ाना पड़ेगा।”

वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “इसकी चिंता मत करो। अब तो नेताजी इतने सेवाभावी हो चुके हैं कि वे ख़ुद ही रील में काम करने को तैयार हो जाते हैं। बजट भी बचा और काम भी हो गया।”

फिर कमरे में फिर से हँसी का तूफ़ान गूँज उठा। 

नया चुनावी वादा: हम किसानों की मदद के लिए अत्यंत तत्पर हैं। किसानों को राहत मिले, इसके लिए अगर बर्फ़ीला ओला वृष्टि न भी हुई हो, तब भी हम कृत्रिम बारिश करने के प्रयोग करेंगे, पर राहत देकर ही दम लेंगे। 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'हैप्पी बर्थ डे'
|

"बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का …

60 साल का नौजवान
|

रामावतर और मैं लगभग एक ही उम्र के थे। मैंने…

 (ब)जट : यमला पगला दीवाना
|

प्रतिवर्ष संसद में आम बजट पेश किया जाता…

 एनजीओ का शौक़
|

इस समय दीन-दुनिया में एक शौक़ चल रहा है,…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

ऐतिहासिक

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

कहानी

ललित कला

किशोर साहित्य कहानी

चिन्तन

बाल साहित्य कहानी

सांस्कृतिक आलेख

लघुकथा

सामाजिक आलेख

कविता

काम की बात

साहित्यिक आलेख

सिनेमा और साहित्य

स्वास्थ्य

सिनेमा चर्चा

पुस्तक चर्चा

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं