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इंसानियत

 

गंगाधर अपनी पत्नी के साथ थाना गोमतीपुर के बरामदे में खड़ा था। थाने की घड़ी में उस समय रात के साढ़े 9 बज रहे थे। पति-पत्नी काफ़ी परेशान थे। थाने वे आए तो थे, पर उन्हें लग रहा था कि उनका काम होगा नहीं। गंगाधर की पत्नी अनामिका की गीद में एक छोटी बच्ची थी और 4 साल का एक बेटा गंगाधर की अंगुली पकड़े खड़ा था। वे जिस भूलाभाई में रहते थे, वहाँ अपना ग़ैरक़ानूनी धंधा यानी चोरी से शराब और गाँजा बेचने वाला और दादागिरी करने वाला जयराम नाम का एक आदमी रहता था। गंगाधर एक कपड़े की फ़ैक्ट्री में नौकरी करता था। वह थाने में जयराम के ख़िलाफ़ शिकायत ले कर आया था। परन्तु सामान्य गालीगलौच और मारपीट के मामले में पुलिस रिपोर्ट लिख तो लेती है, पर कोई ख़ास कार्रवाई नहीं करती। 

पुलिस के इस रवैए से गंगाधर परेशान हो उठा था। वह तो केवल यही चाहता था कि पुलिस उस जयराम दादा का कुछ बंदोबस्त कर दे। ज़्यादा कुछ नहीं तो उसे थाने बुला कर उसके सामने डाँट-फटकार दे, पर पुलिस ऐसा भी करने के मूड में नहीं लग रही थी। गंगाधर एक घंटे पहले भी थाने आया था। उसने इंसपेक्टर को बताया था कि जयराम उसे और उसकी पत्नी को धमकाता है और गाली-गलौच करता है। 

शिकायत लिखा कर वह जैसे ही घर पहुँचा था, थाने में शिकायत लिखाने के लिए जयराम ने उसे गालियाँ तो दीं ही, एक तमाचा मारा भी था। गंगाधर पत्नी के साथ उसी की शिकायत लिखाने फिर थाने आया था। 

सौभाग्य से उस समय थाना गोमतीपुर के थानाप्रभारी इंसपेक्टर प्रभु पटेल बरामदे में ही खड़े थे। थोड़ी ही देर में गंगाधर और उसकी पत्नी को फिर थाने आते देख उन्हें हैरानी हुई थी। उन्होंने अगले दिन चाल में आ कर दादा जयराम की ख़बर लेने का आश्वासन दे कर पति-पत्नी को घर भेज दिया था। 

अगले दिन दोपहर को अनामिका का रोना पूरी चाल ने सुना था, पर कोई मदद के लिए अपनी खोली से बाहर नहीं आया था। जयराम ने अनामिका के कपड़े फाड़ दिए थे और ज़मीन पर नीचे गिरा कर उसे पूरी तरह से निर्वस्त्र करने की कोशिश करने लगा था। अनामिका उसका सामना करते हुए बचाने के लिए रो-रो कर शोर मचा रही थी। पर चाल का कोई भी आदमी उसकी मदद के लिए नहीं आया था। चाल में ऐसा कोई एक भी आदमी नहीं था, जो जयराम के सामने आने की हिम्मत करता। द्रौपदी के चीरहरण के समय तो भगवान श्रीकृष्ण ख़ुद हाज़िर हो गए थे। गोमतीपुर की उस भूलाभाई चाल का कोई आदमी भले ही जयराम के सामने नहीं आया था, पर एक आदमी अनामिका के चीरहरण के समय भगवान श्रीकृष्ण बन कर ज़रूर हाज़िर हो गया था। बेचारा ग़रीब आदमी था, फल बेच कर गुज़र करता था। 

जिस मौसम में जो फल मिल जाता, हसन उसे ही घूम-घूम कर बेचता था। उन दिनों वह तरबूज बेचता था। चाल के पास आते ही उसे अनामिका की चीख़ें सुनाई दीं। उसका बेटा कमरे के कोने में खड़ा रो रहा था तो एक नन्ही बच्ची चारपाई पर पड़ी बिलख रही थी। अंदर आ कर उसने जो दृश्य देखा, उसने उसे हिला कर रख दिया था। पल भर में उसे सारी बातों का ख़्याल आ गया था। दरवाज़े पर खड़े हो कर वह ज़ोर से बोला, “हे, छोड़ दे बेचारी को।”

हसन की आवाज़ शायद जयराम के कान तक नहीं पहुँची। हसन का दिमाग़ घूम गया। तरबूज काटने वाली धारदार छुरी ले कर वह कमरे में घुसा। 

“कह रहा हूँ इसे छोड़ दे बदमाश,” कह कर हसन ने जयराम की पीठ पर उसी छुरी से वार किया। जयराम गिर पड़ा तो हसन ने तुरंत दूसरा वार कर दिया। यह दूसरा वार जयराम की पसली में लगा। अब उस कोठरी में जयराम की चीख़ें गूँजने लगीं। उसकी पकड़ से छूट कर अनामिका जल्दी से उठी और बेटी को गोद में ले कर बाहर की ओर भागी। 

पर वह दरवाज़े से बाहर नहीं जा सकी। क्योंकि दरवाज़े पर भीड़ जमा हो गई थी। इस घटना में दूसरा और दूसरा से तीसरा संयोग बनता गया। क्राइम ब्राँच के इंसपेक्टर गायकवाड के सहयोगी सबइंस्पेक्टर देसाई वहाँ आ पहुँचे थे। 

सत्यमनगर में हुई एक हत्या की जाँच में अपराधी का सूत्र गोमतीपुर का मिला था। इंसपेक्टर गायकवाड ने देसाई को जाँच के लिए गोमतीपुर भेजा था। पूछताछ करते हुए देसाई इस चाल के पास पहुँचे, तब चीख-पुकार सुन कर वह दौड़े आए। 

खोली का दृश्य देख कर वह स्तब्ध रह गए। सब से पहले उन्होंने हसन से वह छुरी क़ब्ज़े में ली। पुलिस को देख कर वह घबरा गया था। हाँफते हुए उसने कहा, “साहब, यह आदमी उस औरत की इज़्ज़त लूट रहा था।”

खोली में क्या हुआ होगा, यह सबइंस्पेक्टर देसाई की समझ में आ गया था। जयराम बहुत बुरी तरह से घायल था। अभी उसकी साँसें चल रही थीं, पर कभी भी रुक सकती थीं। 

देसाई ने अनामिका को बग़ल वाली खोली में भेज दिया। घायल जयराम को अस्पताल पहुँचाना ज़रूरी था। चाल में रहने वालों से देसाई उसका नाम-पता पूछ रहे थे, तभी उसका सिर एक ओर लटक गया। 

सबइंस्पेक्टर देसाई ने इंसपेक्टर गायकवाड को फोन किया। गायकवाड ने फोन रिसीव किया तो देसाई ने कहा, “सर, यहाँ गोमतीपुर की एक चाल में एक हत्या हो गई है।”

“आरोपी कहाँ है?” 

“यहीं है, मैंने उसे घटनास्थल पर ही पकड़ लिया है। एक आदमी एक औरत के साथ बलात्कार करने की कोशिश कर रहा था, तभी एक फल बेचने वाले ने उसे छुरी मार दी। क्या इस केस को अब मैं थाना गोमतीपुर को सौंप दूँ?” सबइंस्पेक्टर देसाई ने कहा। 

“ठीक है, तुम थाना गोमतीपुर पुलिस को सूचना दो। मैं भी फोन करता हूँ। पंचनामा वग़ैरह उन्हीं लोगों को करने देना। तुम आसपास वालों के बयान ले लो।”

सूचना मिलते ही थाना गोमतीपुर के थानाप्रभारी इंसपेक्टर प्रभु पटेल अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुँच गए। आते ही उन्होंने अपना जाँच कार्य शुरू कर दिया। अनामिका के हाथ की चूड़ियाँ टूट गई थीं। चूड़ियों के टुकड़े उन्होंने क़ब्ज़े में ले लिया। अनामिका की कलाई से ख़ून बह रहा था। उसके सिर में भी पीछे चोट लगी थी। 

अनामिका पड़ोसी के घर में थी। अभी वह बहुत घबराई हुई थी। वह स्वस्थ नहीं हुई थी। साड़ी और ब्लाउज उसने बदल लिया था। उसके उतारे गए कपड़े और हसन की ख़ून लगी छुरी भी उन्होंने क़ब्ज़े में ले ली थी। 

शाम 4 बजे सूचना पा कर गंगाधर भी अपनी फ़ैक्ट्री की ड्यूटी छोड़ कर घर आ गया था। घर के सामने भीड़ देख कर वह दौड़ा। क्योंकि उसे यह नहीं बताया गया था कि घर में हुआ क्या था? अपनी खोली का दृश्य देख कर उसके पैर काँपने लगे। पति को देख कर अनामिका ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी। देसाई ने उसे चुप करा कर गंगाधर से सवाल करने शुरू किए। 

पूरी बात जान वर गंगाधर खिन्न हो गया। फल बेचने वाले हसन के प्रति आभार और हमदर्दी से उसका मन छलक उठा। क्योंकि उसे पता चल गया था कि हसन की ही वजह से उसकी पत्नी की इज़्ज़त बची थी। पर अब हसन का क्या होगा? उसे कैसे बचाया जा सकेगा? 

हसन भी ख़ूब डरा हुआ था। पर उसे पछतावा बिलकुल नहीं था कि क़ानून हाथ में ले कर उसने सही किया या ग़लत? उसने तो अपना इंसानियत का फ़र्ज़ निभाया था। 

जयराम की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई थी। अनामिका, गंगाधर, हसन और अन्य चार पाँच लोगों को साथ ले कर देसाई क्राइम ब्राँच के ऑफ़िस आए तो शाम के 7 बज रहे थे। 

देसाई की रिपोर्ट से इंसपेक्टर गायकवाड सारा मामला अच्छी तरह समझ गए थे। हसन को सामने बैठा कर वह धीरेधीरे उससे एक एक बात पूछने लगे थे। हसन गायकवाड के सवालों का जवाब देता रहा। बीच-बीच में गायकवाड अनामिका से भी सवाल पूछ रहे थे। अनामिका ने कहा, “साहब, यह फल वाले भइया आ गए, इसलिए मेरी इज़्ज़त बच गई, नहीं तो . . .”

इतना कह कर अनामिका रो पड़ी। 

हसन ने दृढ़ता से कहा, “साहब, एक औरत की इज़्ज़त और जान बचाने के लिए मुझे पूरी ज़िन्दगी जेल में बितानी पड़े तो वह भी मंज़ूर है।”

“जेल में क्यों रहना पड़ेगा? हसन, तुम ने किया क्या है?” गायकवाड ने हँसते हुए देसाई की ओर देख कर कहा, “इसका कोई अपराध या ग़लती नहीं है। इसने जो किया है, ठीक ही किया है। जयराम को मारने का अधिकार इसे क़ानून ने दिया है। 

“भारतीय दंड संहिता की धारा 100 पर विचार करें तो मेरी बात सच है, यह साबित हो जाएगा। बलात्कार करने या बलात्कार का प्रयास करने वाले को मार देने का अधिकार उसका शिकार बनने वाली महिला को तो है ही, अगर वहाँ कोई व्यक्ति हाज़िर है तो उसे भी है। हसन ने अच्छा काम किया है, इंसानियत निभाई है, इसलिए यह अपराध नहीं है। हसन और अनामिका का बयान ले लो। उसके बाद इन्हें छोड़ दो।”

इंसपेक्टर गायकवाड ने हसन की ओर देखते हुए कहा, “तुम ने कोई अपराध नहीं किया है। तुम्हारी जगह अगर मैं भी होता तो मैं भी वही करता, जो तुम ने किया है। हसन मैं तुम्हें छोड़ रहा हूं।”

हसन भावविभोर हो उठा। उसकी आँखें भर आईं। अनामिका और गंगाधर की हालत भी कुछ वैसी ही थी। 

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