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क्या अब प्यार और सम्बन्ध भी डिजिटल हो जाएँगे

 

मनुष्य के बारे में कहा जाता है कि वह सामाजिक प्राणी है। अगर इस मामले में भविष्य में बदलाव करना पड़े तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। भविष्य में शायद यह कहा जाएगा कि मनुष्य एक डिजिटल एनीमल है। मनुष्य का सब चीज़ के बग़ैर चल जाएगा, पर डिजिटल टेक्नॉलोजी के बिना नहीं चलेगा। अभी ही देख लीजिए, सभी के हाथों मोबाइल तो है ही। इसके अलावा लैपटॉप या टेबलेट जैसा दूसरा कोई न कोई डिजिटल इंस्ट्रूमेंट भी साथ होता है। किसी भी आदमी से एक घंटे मोबाइल से अलग रहने की बात करिए तो वह अपसेट हो जाएगा। ‘बैटरी लो’ हो रही हो तो मनुष्य भी ‘डाउन’ होने लगता है। अब आज ऐसी हालत है तो दस साल बाद क्या स्थिति होगी? इलेक्ट्रॉनिक वर्ल्ड में रोज़ाना कुछ न कुछ नया आ रहा है और आदमी रोज़-का-रोज़ अधिक से अधिक टेक्नॉलोजी के शिकंजे में फँसता जा रहा है। 

आप ने किसी दिन ध्यान दिया है, आप दिन में कितने घंटे मोबाइल का उपयोग करते हैं? दिन में कितनी बार मोबाइल हाथ में लेते हैं? अब तो मोबाइल ही आप से कहता है कि आप ने इतने घंटे मोबाइल चलाया है। इस समय में भी आप ने कितने मिनट क्या किया, इसका भी हिसाब आप को मिल जाता है। हमें पता होता है, फिर भी हम इसे नज़रअंदाज़ करते हैं। ‘डिजिटल एडिक्शन’ इस समय की सब से बड़ी समस्या है। मोबाइल के कारण सम्बन्धों का महत्त्व कम होता जा रहा है। इस समय जो है, यह तो कुछ भी नहीं है, भविष्य में तो कोई कल्पना भी नहीं कर सकता, यह स्थिति पैदा होने वाली है। फ़्राँस की रिसर्च एजेंसी इप्सोस ने अभी 32 देशों में टेक्नॉलोजी और सम्बन्धों के बारे में मज़ेदार सर्वे किया है। 22,508 लोगों से भविष्य के सम्बन्धों के बारे में सवाल किए गए थे। उनसे से जो जवाब मिले, वे दस साल बाद प्यार कैसा होगा और सम्बन्धों की स्थिति क्या होगी, यह बयान करता है। यह अध्ययन यह बताता है कि आगामी दस सालों में 61 प्रतिशत लोग ‘मेटावर्स’ से प्यार करेंगे और 46 प्रतिशत लोग तो रोबोट्स को ही अपना पार्टनर बना लेंगे। इसका सीधा मतलब यह हुआ कि अब आने वाली सच्ची लवस्टोरी में एक मनुष्य होगा और एक ‘वर्च्युअल’ (आभासी) पार्टनर होगा। कुछ हद तक तो इसकी शुरूआत हो भी गई है। आप ने नोट किया होगा कि हमें मोबाइल में अमुक चेहरा अच्छा लगने लगता है। हम उसे पहचानते नहीं हैं, उससे कभी हम मिल भी नहीं पाएँगे, फिर भी हम उसे देखते रहते हैं, उसके बारे में सोचते रहते हैं। मेटावर्स टेक्नॉलोजी तो उस व्यक्ति की आप के साथ उपस्थिति है, यह अहसास कराने वाली है। मतलब यह कि आप को कोई हीरो या हीरोइन अच्छी लगती है, तो वह आप के साथ रह रही है, आप यह अनुभव कर सकेंगे और आनंद प्राप्त कर सकेंगे। इस समय भी तमाम लोग अपने पसंद के कलाकारों के फोटो या क्लिप अपने मोबाइल में रखते हैं। पर अब इसका स्वरूप बदल जाएगा। अब सवाल यह है कि मनुष्य को इस तरह रहना अच्छा लगेगा? क्या मनुष्य ख़्यालों में जीने लगेगा? 

आज के हाईटेक वर्ल्ड के प्रेमियों के बारे में किया गया एक अध्ययन यह कहता है कि अब बड़ी तेज़ी से प्रेमियों का मोह भंग हो रहा है। प्यार होता है, पर लंबे समय तक टिकता नहीं। ब्रेकअप के मामले प्यार की अपेक्षा बढ़ रहे हैं। इंसान को इंसान के साथ अच्छा नहीं लगता। मनुष्य का दिमाग़ विचित्र होता जा रहा है। हर कोई अपने मूड और मस्ती में रहना चाहता है। कान में आइपॉड या प्लग्स लगा कर बैठे व्यक्ति से कुछ कहो तो वह चिढ़ जाता है। प्राइवेसी का नाम अब मैं और मेरा मोबाइल हो गया है। ऐसे संयोगों में भला किसी दूसरे के साथ कहाँ अच्छा लगेगा? विवाह करके बारात विदा होते ही कार में बैठे-बैठे तुरंत नवपरिणीत युगल स्टेटस अपलोड करने लगता है। दिखावा करने में कोई भी ज़रा देर नहीं करता। किसी चाय की टपरी पर थर्डक्लास चाय पीते हुए रील बनाते हुए ज़िन्दगी के बारे में कोई मस्त मज़े का गाना लगा देंगे। भले ही चाय पूरी न पी हो या पी न सके ऐसे न हों। अभी की सच घटना है। अरेंज मैरिज के लिए एक लड़का और लड़की मिले। लड़की ने कहा, “मैं मोबाइल में होऊँ तो मुझे छेड़ना मत। मैं क्या देख रही हूँ, क्या कर रही हूँ, इस बारे में कभी कोई सवाल मत करना।” लड़का या लड़की कोई बात करें, उसके पहले एक-दूसरे का सोशल मीडिया चेक कर लेते हैं कि उसकी करतूतें कैसी हैं? 

समय के साथ कन्फ़्यूज़्ड रिलेशनशिप के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। लड़का और लड़की साथ होते हैं, फिर भी यह तय नहीं कर पाते कि आख़िर हम साथ क्यों हैं? हम एक-दूसरे के योग्य हैं? इकट्ठा होने के कुछ समय बाद ही ऐसा लगने लगता है कि यह मेरे लायक़ नहीं है, मैं बहुत अच्छे व्यक्ति को डिज़र्व करता हूँ। सम्बन्धों में असंतोष बढ़ने का कारण डिजिटल ही है। सभी लोग सोशल मीडिया पर जो फोटो और स्टेटस डालते हैं, वह सब देख कर सभी को लगता है कि पूरी दुनिया मज़े कर रही है और मेरे हिस्से में ही मज़दूरी करना लिखा है। हर किसी को कहीं न कहीं कुछ कमी नज़र आती है। अपने पार्टनर से अनगिनत शिकायतें होती हैं। एडजस्ट नहीं होता, यही लगता है कि इससे अच्छा तो अकेला रहना ही है। यह अकेले रहने की वृत्ति धीरे-धीरे बढ़ती ही जानी है और अंत में लोग रोबोट्स या वर्च्युअल पार्टनर के साथ रहने लगेंगे। यह सब करने से वे कितना ख़ुश और सुखी रह सकेंगे, यह सब से बड़ा सवाल है और वर्च्युअल लाइफ़ से दूसरी अनेक मानसिक समस्याएँ खड़ी होने की संभावनाएँ हैं। 

एक ओर डिजिटल दांपत्य से ले कर डिजिटल लाइफ़ स्टाइल की बातें हो रही हैं तो ऐसे तमाम समाजशास्त्रियों और मनोचिकित्सकों का मानना है कि सब कुछ पूरी तरह डिजिटल नहीं होने वाला, उल्टा आदमी इस सब से जल्दी या देर में ऊबने वाला है। डिजिटल टेक्नॉलोजी अभी नई-नई है। धीरे-धीरे लोगों की समझ में आ जाएगा कि सही क्या है और अच्छा क्या है? यह विचार लोगों को फिर से ज़िन्दगी की ओर और अपनी ओर ले जाएगा। दुनिया भले ही कुछ भी कहती हो, पर आदमी का आदमी के बग़ैर चलने वाला नहीं है। ज़िन्दगी जीने के लिए किसी का तो साथ होना ज़रूरी है न, कोई तो साथ होना चाहिए न? यह एक बवंडर है जो एक न एक दिन शांत होना ही है। लोग फिर से बेसिक और रियल की ओर लौटेंगे। आदमी में इतनी तो समझ है ही कि टेक्नॉलोजी हमारे लिए है, हम टेक्नॉलोजी के लिए नहीं। अन्य अनेक अध्ययन यह भी कहते हैं कि दुनिया दो हिस्सो में बँट जाएगी। एक ओर ऐसे लोग होंगे, जो टेक्नॉलोजी से घिरे होंगे और दूसरा वर्ग ऐसा होगा, जो प्रकृति के नज़दीक होगा। लोग दो एक्स्ट्रीम के बीच जिएँगे। इस समय जो चल रहा है, ये सब अनुमान है। समय अनुमान के हिसाब से नहीं चलता। लोगों की मानसिकता कब और किस तरह बदल जाए, यह तय नहीं है। 

लोगों का सम्बन्ध के बिना चलने वाला नहीं है। समय लोगों को बदलते संयोग के साथ जीना सिखा देता है। टेक्नॉलोजी के कारण ही परिवर्तन आया है, इसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी, इसलिए इस समय मनुष्य को टेक्नॉलोजी के साथ ताल मिलाने में संघर्ष करना पड़ रहा है। आदमी इसकी भी रीति और पद्धति सीख जाएगा और नहीं सीखेगा तो भोगना भी उसे ही पड़ेगा। एक हिसाब से आदमी को ख़ुश और सुखी रहना होता है। सुख, ख़ुशी, आनंद, साथी और जीवन की व्याख्याओं में भी बदलाव आता रहता है और अभी आता भी रहेगा, इसे कोई रोक भी नहीं सकता। अंत में आदमी सुख, शान्ति और ख़ुशी के लिए अपनी जड़ की ओर लौटेगा ही। 

यह भी हो सकता है

समय के साथ आदमी के स्क्रीन टाइम बढ़ता जाएगा। स्क्रीन लोगों पल इस हद तक हावी हो जाएगी को लोग ख़ुद को भुला बैठेंगे। टेक्नॉलोजी धीरे-धीरे आदमी को इतना पंगु बना देगी कि टेक्नॉलोजी के बग़ैर आदमी जी नहीं सकेगा। 

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