मनुष्य
काव्य साहित्य | कविता वीरेन्द्र बहादुर सिंह15 Jan 2023 (अंक: 221, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
मनुष्य रंग बदलता मनुष्य,
ढंग बदलता मनुष्य।
चाल बदलता मनुष्य,
ढाल बदलता मनुष्य।
पल में फिरता मनुष्य,
पल में बिफरता मनुष्य।
संग छोड़ता मनुष्य,
व्यंग्य बोलता मनुष्य।
तंग करता मनुष्य,
दंग करता मनुष्य।
सत्संग करता मनुष्य,
तब भी छल करता मनुष्य।
हालचाल पूछता मनुष्य,
बदहाल करता मनुष्य।
ऊपर उठता मनुष्य,
नीचे गिरता मनुष्य।
हक़ हड़पता मनुष्य,
लाज लूटता मनुष्य।
स्वार्थ साधता मनुष्य,
नियम लादता मनुष्य।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कहानी
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
कविता
ऐतिहासिक
ललित कला
किशोर साहित्य कहानी
चिन्तन
बाल साहित्य कहानी
सांस्कृतिक आलेख
- अहं के आगे आस्था, श्रद्धा और निष्ठा की विजय यानी होलिका-दहन
- आसुरी शक्ति पर दैवी शक्ति की विजय-नवरात्र और दशहरा
- त्योहार के मूल को भुला कर अब लोग फ़न, फ़ूड और फ़ैशन की मस्ती में चूर
- मंगलसूत्र: महिलाओं को सामाजिक सुरक्षा देने वाला वैवाहिक बंधन
- महाशिवरात्रि और शिवजी का प्रसाद भाँग
- हमें सुंदर घर बनाना तो आता है, पर उस घर में सुंदर जीवन जीना नहीं आता
लघुकथा
सामाजिक आलेख
काम की बात
साहित्यिक आलेख
सिनेमा और साहित्य
स्वास्थ्य
सिनेमा चर्चा
- अनुराधा: कैसे दिन बीतें, कैसे बीती रतियाँ, पिया जाने न हाय . . .
- आज ख़ुश तो बहुत होगे तुम
- आशा की निराशा: शीशा हो या दिल हो आख़िर टूट जाता है
- कन्हैयालाल: कर भला तो हो भला
- काॅलेज रोमांस: सभी युवा इतनी गालियाँ क्यों देते हैं
- केतन मेहता और धीरूबेन की ‘भवनी भवाई’
- कोरा काग़ज़: तीन व्यक्तियों की भीड़ की पीड़ा
- गुड्डी: सिनेमा के ग्लेमर वर्ल्ड का असली-नक़ली
- दृष्टिभ्रम के मास्टर पीटर परेरा की मास्टरपीस ‘मिस्टर इंडिया'
- पेले और पालेकर: ‘गोल’ माल
- मिलन की रैना और ‘अभिमान’ का अंत
- मुग़ल-ए-आज़म की दूसरी अनारकली
पुस्तक चर्चा
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं