जादुई पक्षी
बाल साहित्य | किशोर साहित्य कहानी वीरेन्द्र बहादुर सिंह1 Oct 2025 (अंक: 285, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
सालों पहले एक घने जंगल में चंदन के पेड़ पर एक पक्षी रहता था। वह पक्षी चमत्कारिक था। उसकी बीट ज़मीन पर गिरते ही सोना बन जाती थी।
एक दिन की बात है। उस जंगल से एक शिकारी गुज़रा। उसकी नज़र उस सुनहरे पक्षी पर पड़ गई। कुछ देर तक वह उस पक्षी को देखता रहा। तभी पक्षी ने बीट की। देखते-ही-देखते वह बीट सोने की हो गई। शिकारी तो हैरान रह गया। यह कैसा पक्षी है? जितनी बार बीट करता है, उतनी बार वह सोना बन जाती है। ऐसा अनोखा पक्षी तो पूरी दुनिया में कहीं देखने को नहीं मिलेगा।
शिकारी ने सोचा कि यह पक्षी तो राजा को उपहार में देने योग्य है। इस पक्षी को पकड़ कर राजा को उपहार में दूँगा तो राजा उसे बहुत बड़ा इनाम देंगे।
वह चमत्कारी पक्षी जिस पेड़ पर बैठता था, उसी पेड़ के नीचे शिकारी ने जाल बिछा दिया। जाल पर कुछ दाने बिखेर दिए। उसे पूरा विश्वास था कि दाने देख कर पक्षी के मन में लालच आएगा। छुपा हुआ जाल उसे दिखाई नहीं देगा और वह उसमें फँस जाएगा। फिर वह उसे पकड़ कर राजा को भेंट कर देगा।
जाल बिछा कर वह एक पेड़ के पीछे छुप खड़ा हो गया। पक्षी ने नीचे बिखरे दाने देखे। शिकारी की उम्मीद के अनुसार वह पक्षी पेड़ से उतर कर दाने चुगने लगा। पक्षी को पता ही नहीं चला और वह शिकारी के जाल में फँस गया। पेड़ के पीछे छुपा शिकारी बाहर आया। उसने पक्षी को पकड़ कर पिंजरे में बंद कर दिया। शिकारी ख़ुशी से झूम उठा। उसे पूरी उम्मीद थी कि इस पक्षी के बदले राजा उसे अच्छा अच्छा इनाम देगा।
अगले दिन सुबह-सुबह वह राजा के महल पर पहुँच गया।
राजा से मिलने के लिए उसने दरवानों से कहा कि वह राजा के लिए जादुई पक्षी लाया है। दरबानों ने यह बात राजा को बताई तो राजा ने उसे तुरंत अंदर लाने का आदेश दिया।
राजा के सामने पहुँच कर शिकारी ने राजा को झुक कर प्रणाम किया। उसने पक्षी के चमत्कार के बारे म़ें बताते हुए कहा, “यह पक्षी जब भी बीट करता है, वह बीट तुरंत सोना बन जाती है। इसके अलावा यह पक्षी देखने में भी अद्भुत और अनुपम है। बोलता भी बहुत मीठा है।”
राजा इतना अनोखा, चमत्कारी पक्षी देख कर प्रसन्न हो गया। उसने तुरंत नौकरों को बुला कर कह, “इस अद्भुत पक्षी को सुंदर, नक़्क़ाशीदार सोने के पिंजरे में रखो। इसकी विशेष देखभाल करो। इसे बढ़िया दाने खिलाओ।”
उसी समय राजा का एक मंत्री वहाँ आ पहुँचा। राजा ने उसे उस चमत्कारी पक्षी के बारे में बता कर उसकी राय पूछी तो मंत्री ने पक्षी को ध्यान से देख कर कहा, “महाराज, शिकारी की बातों पर विश्वास करना उचित नहीं है। क्या आपको लगता है कि कोई पक्षी बीट करेगा और उसकी बीट सोना बन जाएगी? क्षमा करें महाराज, मुझे तो लगता है कि यह अवश्य कोई जादुई शक्तिवाला मायावी पक्षी है। आपके भले के लिए मेरी राय यही है कि ऐसे दुष्ट मायावी पक्षी को तुरंत छोड़ देना चाहिए।”
क्षण भर सोच कर राजा ने कहा, “मंत्रीजी, मुझे आपकी बात सही लग रही है। नौकरों को बुलाओ और पक्षी को तुरंत मुक्त कर दो और इस तरह का पक्षी महल में लाने के लिए सैनिकों को शिकारी को क़ैद करने का आदेश दो।”
नौकरों ने पक्षी को मुक्त कर दिया। पक्षी उड़ कर महल के मुख्य द्वार पर जा बैठा। वहाँं बैठ कर उसने राजा, मंत्री, सेवक सभी के सामने बीट की। देखते ही देखते वह बीट सोना बन गयी। इसके बाद वह चमत्कारी पक्षी उड़ गया। उड़ते हुए उसने कहा, “हम सब कितने मूर्ख हैं। पहले मैं मूर्ख बना, फिर शिकारी मूर्ख बना, उसके बाद मंत्री मूर्ख साबित हुआ और अंत में राजा भी मूर्ख सिद्ध हुआ।”
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
अपना दुःख, पराया दुःख
किशोर साहित्य कहानी | डॉ. दिनेश पाठक ‘शशि’सक्षम के पापा सरकारी विभाग में इंजीनियर…
अब पछताए होत का
किशोर साहित्य कहानी | प्रभुदयाल श्रीवास्तवभोला का गाँव शहर से लगा हुआ है। एक किलोमीटर…
आज़ादी की धरोहर
किशोर साहित्य कहानी | डॉ. सुशील कुमार शर्मा(स्वतंत्रता दिवस पर एक कहानी-सुशील शर्मा) …
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
ऐतिहासिक
चिन्तन
किशोर साहित्य कहानी
बाल साहित्य कहानी
सांस्कृतिक आलेख
- अहं के आगे आस्था, श्रद्धा और निष्ठा की विजय यानी होलिका-दहन
- आसुरी शक्ति पर दैवी शक्ति की विजय-नवरात्र और दशहरा
- त्योहार के मूल को भुला कर अब लोग फ़न, फ़ूड और फ़ैशन की मस्ती में चूर
- मंगलसूत्र: महिलाओं को सामाजिक सुरक्षा देने वाला वैवाहिक बंधन
- महाशिवरात्रि और शिवजी का प्रसाद भाँग
- हमें सुंदर घर बनाना तो आता है, पर उस घर में सुंदर जीवन जीना नहीं आता
कहानी
लघुकथा
सामाजिक आलेख
कविता
काम की बात
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
साहित्यिक आलेख
सिनेमा और साहित्य
स्वास्थ्य
सिनेमा चर्चा
- अनुराधा: कैसे दिन बीतें, कैसे बीती रतियाँ, पिया जाने न हाय . . .
- आज ख़ुश तो बहुत होगे तुम
- आशा की निराशा: शीशा हो या दिल हो आख़िर टूट जाता है
- कन्हैयालाल: कर भला तो हो भला
- काॅलेज रोमांस: सभी युवा इतनी गालियाँ क्यों देते हैं
- केतन मेहता और धीरूबेन की ‘भवनी भवाई’
- कोरा काग़ज़: तीन व्यक्तियों की भीड़ की पीड़ा
- गुड्डी: सिनेमा के ग्लेमर वर्ल्ड का असली-नक़ली
- दृष्टिभ्रम के मास्टर पीटर परेरा की मास्टरपीस ‘मिस्टर इंडिया'
- पेले और पालेकर: ‘गोल’ माल
- मिलन की रैना और ‘अभिमान’ का अंत
- मुग़ल-ए-आज़म की दूसरी अनारकली
ललित कला
पुस्तक चर्चा
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं