अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी रेखाचित्र बच्चों के मुख से बड़ों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

इंसानों को सीमाएँ रोकती हैं, भूतों को नहीं

 

दुनिया भर में हैलोवीन के अवसर पर अंतरराष्ट्रीय भूत मंच का प्रस्ताव

 

दुनिया के एक ख़ूबसूरत समुद्र तट पर, जहाँ सुनहरी रेत और नीला पारदर्शी समुद्र था, कई भूतों की अंतरराष्ट्रीय बैठक चल रही थी। 

भारतीय भूत: वाह! क्या शानदार जगह है। हमारी हारर फ़िल्मों में तो हमेशा वही पुराने ‘क्लिशे’ होते हैं, अँधेरा, सुनसान, डरावनी गुफाएँ और उनमें घूमते भूत। ऐसे बीच पर मस्ती करने का मौक़ा तो हमें फ़िल्मों में कभी नहीं मिलता। 

मैक्सिकन भूत: मैंने एक बार तुम्हारी हारर फ़िल्म सबटाइटल्स के साथ देखी थी। मुझे तो बहुत मज़ेदार लगी थी! 

कोरियन भूत: मूर्ख! वह तो भारतीय मानकों के हिसाब से हारर फ़िल्म रही होगी, लेकिन उसका ट्रांसलेशन शायद किसी एआई से हुआ होगा, इसलिए तुम्हें वह कॉमेडी लगी। हमारी फ़िल्मों को भी भारतीय लोग उल्टा समझते हैं और फिर उन्हें अपनाकर कचरा बना देते हैं। 

जापानी भूत: अरे भाई, फ़िल्मों जैसी बेकार बातों में समय मत गँवाओ। हम जापानी तो भूत बनने के बाद भी एक सेकंड भी व्यर्थ नहीं करते। 

अमेरिकी भूत: मेरे जैसे राष्ट्रपति के आने से पहले ही तुम सब गपशप में लग गए, तभी तो इतनी गड़बड़ियाँ होती हैं। देखो, हमारे परलोक के भी हम ही ज़मींदार हैं। अभी हैलोवीन का समय है, पितरों और मृत आत्माओं को याद करने का पर्व, जो एक साथ कई देशों में मनाया जाता है। इसीलिए मैंने सोचा कि भूतों का भी एक अंतरराष्ट्रीय मंच बनाया जाए। 

चीनी भूत: ओ परलोक के ज़मींदार, अगर हमें तुम्हारे मंच से नहीं जुड़ना हो तो? मैं तो अपना अलग समूह बनाऊँगा। अंतरराष्ट्रीय एकता के नाम पर तुम भूतों का भी वर्चस्व जमाना चाहते हो! याद रखो, नोबेल शान्ति पुरस्कार के लालच में कुछ लोग तो ज़िन्दा रहते हुए ही भूत बन कर भटकते हैं। बाक़ी, जो आत्मा मरने के बाद भी शान्ति नहीं चाहती, वही भूत समाज में आती है। इसलिए यहाँ ज़्यादा दादागीरी मत करना, सब अपनी-अपनी हद में रहें। 

अमेरिकी भूत: जो भूत मेरे मंच में नहीं जुड़ेंगे, उन्हें हमारे देश आने का वीसा नहीं मिलेगा! और अगर वे हमारी सीमा में पकड़े गए तो देश निकाला कर दिया जाएगा! 

भारतीय भूत: डियर, शांत हो जा। सीमाएँ तो सिर्फ़ इंसानों को रोकती हैं, हम भूतों को नहीं। इंसानों जैसे झगड़े मत कर। हमारे देश के कई लोग तुम्हारे यहाँ वैसे भी बिना अनुमति घुस कर भूत जैसी डरावनी ज़िन्दगी जीते हैं। उससे तो भूत के रूप में यह ज़िन्दगी कहीं ज़्यादा आज़ाद है। 

यह सुन कर चीनी और मैक्सिकन भूत ठहाका मार कर हँस पड़े, जापानी भूत ने पान चबाया और अमेरिकी भूत ग़ुस्से में उठ कर चला गया। 

भारत में हर पाँच साल में हैलोवीन आता है, जिसमें तरह-तरह के वेशभूषा में लोग माइक के सामने अजीब-अजीब भाषाओं में बातें करते हैं। लोकभाषा में उन्हें ‘नेता’ कहा जाता है। 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'हैप्पी बर्थ डे'
|

"बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का …

60 साल का नौजवान
|

रामावतर और मैं लगभग एक ही उम्र के थे। मैंने…

 (ब)जट : यमला पगला दीवाना
|

प्रतिवर्ष संसद में आम बजट पेश किया जाता…

 एनजीओ का शौक़
|

इस समय दीन-दुनिया में एक शौक़ चल रहा है,…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

ऐतिहासिक

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

कहानी

ललित कला

किशोर साहित्य कहानी

चिन्तन

बाल साहित्य कहानी

सांस्कृतिक आलेख

लघुकथा

सामाजिक आलेख

कविता

काम की बात

साहित्यिक आलेख

सिनेमा और साहित्य

स्वास्थ्य

सिनेमा चर्चा

पुस्तक चर्चा

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं