गुड़िया
काव्य साहित्य | कविता डॉ. आरती स्मित19 Jun 2017
कल शाम
खिलौनों के कबाड़ में
टूटे–फूटे खिलौनों के बीच
तुड़ा-मुड़ा, सिमटा-सा
मेरा बचपन
मुझे मिल गया
और मैं
उसे ओढ़ कर
फिर से,
उछलती-कूदती
नृत्य करती
जीवंत गुड़िया बन गई।
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