कलिकाल में सावित्री व सत्यवान
कथा साहित्य | सांस्कृतिक कथा डॉ. उषा रानी बंसल15 Feb 2022 (अंक: 199, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
सावित्री आज चार बजे उठी। नहा धोकर पूजा-पाठ किया।
आज ’बट सावित्री व्रत’ था। बट सावित्री व्रत के लिए मालपुए बनाए, कच्चे सूत की पूनी बनाई, अपने पति की लंबी आयु की कामना करते हुए सुपारी, सिंदूर, अक्षत, रोली, रक्षा सूत्र आदि पूजा का सामान एक थाली में सजाकर तौलिए से ढक दिया। वह अदालत में जाने से पहले सब सामान ठीक करके जाना चाहती थी, पता नहीं अदालत में कितनी देर लग जाए। लौटते-लौटते कहीं सूर्य देवता अस्ताचल को न चल दें। ढेर सी बातों की मानसिक धमाचौकड़ी के बीच पूजा का सामान एक जगह रखकर, दिनेश, माया तथा रमेश के लिए नाश्ता तैयार किया तथा दोपहर के भोजन के लिए दाल चावल बनाए। घर का काम निपटाते-निपटाते कब 8:30 बज गए पता ही ना चला। घड़ी पर निगाह पड़ते ही सावित्री एक बार घबरा गई। जल्दी जल्दी कपड़े बदले, पर्स हाथ में लिया और माया को घर का काम समझा कर अदालत के लिए निकल पड़ी।
आज की अदालत यमराज की अदालत से किसी मायने में कम न थी। उसे वहाँ अपने पति परमेश्वर के लिए गवाही देनी थी। उसके पति, जो माननीय प्रतिष्ठित मंत्री थे, व्यभिचार के जुर्म में सज़ायाफ़्ता थे। यूँ तो सावित्री अपने पति के “लड़की देखी फिसल गए के चाल चलन“ से वाकिफ़ थी पर उसे यह अंदाज़ा ना था कि वह चुपके से किसी और से संतान पैदा कर के उसे धोखा देंगे। विवाहित जीवन के कड़वे अनुभवों ने उसके निराहार मुख को और तिक्त कर दिया। समाज की निगाह में वह एक आदर्श दंपत्ति थे। उसे पति से 2 पुत्र एक पुत्री होने का गौरव प्राप्त था। अनेक दृश्य उसके दिमाग़ में रफ़्तार से घूम-घूम कर चक्रवात पैदा कर रहे थे।
“भाभी जी आइए . . . मैं तो डर ही गया था कहीं आप . . .,” वकील ने कार का दरवाज़ा खोलते हुए कहा।
सावित्री ने ख़ुद को सँभालते हुए वकील साहब का अभिवादन किया और उनके साथ कोर्ट रूम की तरफ़ चली। मीडिया, पब्लिक से बचाते हुए वकील साहब सावित्री को कोर्ट रूम की तरफ़ ले चले। उन्होंने फुसफुसाते हुए कहा, “भाभी जी सारा दारोमदार आपकी गवाही पर है, मंत्री जी की लाज आपके हाथ में है, “सावित्री ने ‘हूं‘ भर कहा। वकील साहब के माथे पर पसीना आ गया फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी बोले, “आपने अपना बयान ठीक से याद कर लिया है न।”
“हूं,” सावित्री ने हुंकारा भरा।
कोर्ट रूम, पुलिस, मिडिया समर्थकों से खचाखच भरा था। ऐन वक़्त पर मंत्री जी को पुलिस ने अदालत में पेश किया। वकीलों ने अपने-अपने फन फुफकारने शुरू कर दिए। सावित्री को बतौर गवाह पेश होने की आवाज़ लगी, “सावित्री हाज़िर हों!”
शांत स्थिर भाव से सावित्री कटघरे में जा खड़ी हुईं। साड़ी का पल्लू ठीक करते हुए एक भरपूर निगाह अपने व्यसनी पति पर डाली, जो किसी जिबह होने वाले बकरे की तरह दया की भीख के लिए मिमियाता सा खड़ा था। सावित्री का मन अजीब वितृष्णा से भर गया। वादी पक्ष के वकील ने मंत्री जी पर लगे आरोप का कच्चा चिट्ठा सुनाया। सावित्री मूर्तिवत सब सुनती रही। फिर प्रतिवादी पक्ष के वकील ने सावित्री से कुछ प्रश्न किये। सावित्री ने साड़ी के पल्लू से एक मुड़ा-जुड़ा काग़ज़ वकील साहब की ओर बढ़ाते हुए कहा कि जज साहब यह डॉक्टरी रिपोर्ट है, मेरे पतिदेव संतान पैदा नहीं कर सकते थे, हमारी संतान महाभारत के नायक शांतनु की संतानों की तरह हुई, और इतना कहते-कहते वह तेज़ी से अदालत से बाहर हो गई।
मंत्री जी जिंदाबाद के नारे उसके कान में पिघले शीशे से फिसलते रहे। सावित्री एक बार फिर सत्यवान को यमराज की अदालत से बाइज़्ज़त बरी करा लाई। जय ’बट सावित्री व्रत’ कथा।
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