ऊँचा उठना
काव्य साहित्य | कविता डॉ. उषा रानी बंसल15 Jun 2022 (अंक: 207, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
एक माली ने अपने बग़ीचे में
खजूर और फूल के दो पौधे लगाये,
जब पौधे छोटे थे—
तो—
साख साथ हवा के झूले में झूलते,
बारिश में नहाते,
धूप में हँसते-खिलखिलाते
दुख सुख की बातें करते बड़े हो गये।
खजूर तो खजूर ठहरा
दिन दूना रात चौगुना ऊँचा उठता गया
फूल का पौधा छोटा रह गया।
दोनों में फूल खिले
खजूर में फल लगे
फूल का पौधा सदा खजूर को ताकता रहता,
बीते दिनों की बातें,
खजूर से बात करने को
सदा अकुलाता रहता
पर खजूर अपनी ऊँचाई के गर्व में
गर्वोन्मत हो अपनी ख़ुशी में मस्त रहता।
एक दिन-
तेज झंझावात आया
खजूर का वृक्ष कुछ झुका तो
फूल के पौधे ने कहा कि—
तुम भूल कर भी हमारी ओर नहीं ताकते
हमसे बात नहीं करते
क्या कभी हमारी याद नहीं आती!
खजूर ने कहा कि—
तुम मेरे जितने ऊँचे क्यों न उठे?
हवा ने सरसरा कर फूल को समझाया
कि—
द्वापर में द्रुपद ने
गुरुवर द्रोण से यही कहा था,
मित्रता बराबर वालों में होती है,
यह सत्य है।
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