रचनाओं का छपना ऐसे शुरू हुआ
संस्मरण | स्मृति लेख डॉ. उषा रानी बंसल15 Apr 2025 (अंक: 275, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
हमारे बेटे को तबला सीखने का बहुत मन था। तब उसकी उमर कोई ६-७ साल की होगी। हमने आदरणीय मिश्र जी से, जो संकट मोचन के महंत और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के सिविल इंजीनियरिंग विभाग में प्रोफ़ेसर थे, से बात की। उन्होंने श्री रामजनम, जो बीएच यू के बिरला मंदिर में दो बार तबला बजाते थे, को भेज दिया। बेटे ने उनसे कुछ साल तबला सीखा। रेडियो पर प्रसारित होने वाले बाल कार्यक्रम में भी वह उसे ले गये। जहाँ उसने त्रिताल, कहरवा आदि बजाया।
बेटे ने तबला सीखना तो बंद कर दिया, परन्तु रामजनम जी हमारे परिवार के सदस्य बन गये। मंदिर से लौटते प्रतिदिन ही आ जाते और रोचक ढंग से बनारस व बीएचयू के क़िस्से सुनाते थे। अपनी कहानी, लेख में, बनारसी भाषा की दो-चार पंक्ति लिखने के लिए हम उनसे सलाह लेते थे। वह मुझे माता जी कहते थे। (बनारस में लड़कियों, स्त्रियों को सम्बोधित करने का सम्मान-जनक शब्द) वह एक दिन वह कहने लगे कि सर, मेरे पति, के यहाँ इतने पत्रकार आते हैं आप अपनी कथा-कहानी अख़बार में क्यों नहीं भेजतीं? मैंने कहा कि ‘आज’, ‘गांडीव’ में प्रकाशित होना इतना आसान नहींं है। गांडीव, आज में, आदरणीय श्रीलाल शुक्ल जी, श्री प्रसाद जी आदि की रचनाएँ छपती हैं। बात आई गई हो गई।
समय बीतता रहा। मेरा लिखना मेरी आवश्यकता थी। किसी भी घटना या बात का इतना प्रभाव मन पर होता था कि मस्तिष्क में भूचाल आ जाता था। बीएचयू व लेक्चर तैयार करने के समय के अतिरिक्त वह भूत सा सिर पर सवार रहता। अपने मन व दिमाग़ को शांत करने का एक ही उपाय था कि उसे कविता, कहानी या लेख में लिख लो। इस तरह स्थानीय, सामाजिक, राजनैतिक विषयों पर लिखने का काम होता रहा। हिंदी साहित्य मेरा विषय नहीं था। अतः हिंदी विभाग से मेरा कोई लेना देना न था। ‘हम और हमारी रचना’ में ही सुखी थे।
एक दिन रामजनम जी आये। गपशप, चाय होने के बाद उन्होंने एक काग़ज़ का पुर्जा देते हुए कहा कि आप इन्हें अपनी रचना भेज दीजिए, यह उसे प्रकाशित करवाने में सहायता करेंगे। हमने कहा, “मान न मान हम तेरे मेहमान।” उन्होंने कहा कि माता जी इनका नाम राजकुमार (राजकुमार, वाही, खत्री) हैं। ये ‘बनारस’ के नाम से पत्र प्रकाशित करते हैं। बहुत तेज़ तर्रार निर्भीक पत्रकार हैं। बहुत से व्यक्तियों को पत्रकारिता सिखाई है। समाचार पत्र में छपने की आशा बहुत बड़ा लालच था। सो एक रचना उनके ही हाथ पत्र लिख कर उनके पास पहुँचा दी। अगले दिन ही उनका फोन आ गया। उनसे पहली बार बात हुई। उन्होंने कहा कि लेख ठीक है, कुछ कमियाँ थीं, सुधार दी हैं। लेख गांडीव में भेज दिया है छप जायेगा। हमारा मन तो बल्लियों उछल पड़ा।
राजकुमार जी, यानी हमारे चाचा जी, (कब चाचा जी बन गया पता ही नहींं चला) जो नेपाली खपरा में रहते थे, उनकी प्रेस बुलानाला थी, हम बीएचयू वालों के लिए कहीं भी जाना बड़ा दूभर काम था। मेरे पतिदेव मेरी रचना को उस तरफ़ रहने वालों के हाथ चाचा जी को भिजवाने लगे। इस बीच हिम्मत जुटा कर, एक बार उनसे व उनके परिवार से मिलने हम नेपाली खपरा गये और फिर उन से मिलने एक बार बुलानाला गये।
इस तरह दैनिक आज व गांडीव में हमारे लेख, कविता, कहानी छपने लगे।
राजकुमार जी का परिवार चाचा-चाची जी व गांडीव का परिवार राजीव भैया का परिवार हमारा परिवार बन गया। यह सम्बन्ध आज भी हमारे जीवन का अहम हिस्सा हैं।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
चिन्तन
सांस्कृतिक कथा
- इक्कसवीं सदी में कछुए और ख़रगोश की दौड़
- कलिकाल में सावित्री व सत्यवान
- क्या तुम मेरी माँ हो?
- जब मज़ाक़ बन गया अपराध
- तलवार नहीं ढाल चाहिए
- धन व शक्ति की कहानी
- नये ज़माने में लोमड़ी और कौवा
- भेड़िया आया २१वीं सदी में
- मुल्ला नसीरुद्दीन और बेचारा पर्यटक
- राजा प्रताप भानु की रावण बनने की कथा
- रोटी क्या है?: एक क़िस्सा मुल्ला नसीरुद्दीन का
स्मृति लेख
सांस्कृतिक आलेख
बच्चों के मुख से
आप-बीती
लघुकथा
कविता
- आई बासंती बयार सखी
- आज के शहर और कल के गाँव
- आशा का सूरज
- इनके बाद
- उम्मीद का सूरज
- उलझनें ही उलझनें
- उसकी हँसी
- ऊँचा उठना
- कृष्ण जन्मोत्सव
- चित्र बनाना मेरा शौक़ है
- जाने समय कब बदलेगा
- पिता को मुखाग्नि
- प्रिय के प्रति
- बिम्ब
- बे मौसम बरसात
- बेटी की विदाई
- भारत के लोगों को क्या चाहिये
- मैं और मेरी चाय
- मैसेज और हिन्दी का महल
- राम ही राम
- लहरें
- लुका छिपी पक्षियों के साथ
- वह
- वक़्त
- संतान / बच्चे
- समय का क्या कहिये
- स्वागत
- हादसे के बाद
- होने न होने का अंतर?
- होरी है……
- ज़िंदगी के पड़ाव ऐसे भी
सामाजिक आलेख
- कुछ अनुभव कुछ यादें—स्लीप ओवर
- दरिद्रता वरदान या अभिशाप
- पूरब और पश्चिम में शिक्षक का महत्त्व
- भारतीय नारी की सहभागिता का चित्रांकन!
- मीडिया के जन अदालत की ओर बढ़ते क़दम
- वर्तमान राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में भारतीय लोकतंत्र में धर्म
- सनातन धर्म शास्त्रों में स्त्री की पहचान का प्रश्न?
- समान नागरिक संहिता (ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में)
ऐतिहासिक
- 1857 की क्रान्ति के अमर शहीद मंगल पाण्डेय
- 18वीं और 19वीं शताब्दी के दौरान भारत में उद्योग
- औपनिवेशिक भारत में पत्रकारिता और राजनीति
- पतित प्रभाकर बनाम भंगी कौन?
- भारत पर मुस्लिम आक्रमणों का एक दूसरा पक्ष
- शतरंज के खिलाड़ी के बहाने इतिहास के झरोखे से . . .
- सत्रहवीं सदी में भारत की सामाजिक दशा: यूरोपीय यात्रियों की दृष्टि में
- सोलहवीं सदी: इंग्लैंड में नारी
- स्वतंत्रता आन्दोलन में महिला प्रतिरोध की प्रतिमान: रानी लक्ष्मीबाई
हास्य-व्यंग्य कविता
ललित निबन्ध
कहानी
यात्रा-संस्मरण
शोध निबन्ध
रेखाचित्र
बाल साहित्य कहानी
यात्रा वृत्तांत
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
साहित्यिक आलेख
बाल साहित्य कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं