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मेरे साथ कोई नहीं खेलता

दादी पुष्पांजलि अपने पुत्र सुयश के यहाँ कैनेडा के टोरोंटो शहर गईं। सुयश टोरोंटो के उपनगर मिलटन में रहता था। सुयश की पत्नी का नाम शोभा था। उनकी बिटिया का नाम तुलसी था। तुलसी कक्षा 1 में पढ़ती थी। एक दिन तुलसी कार्टून देख रही थी, शोभा ने तुलसी से कहा कि तुम्हें कार्टून देखते-देखते एक घंटे से अधिक हो गया, अब टीवी बंद करो! उसने कहा कि यह मेरा पसंदीदा कार्टून है, इसके बाद तुरंत बंद कर दूँगी। 

डोरा नामक कार्टून का एक भाग समाप्त होने पर शोभा ने स्टार प्लस लगा दिया, और अपनी सास को रिमोट देकर कहा कि आप अपना सीरियल देख लीजिए। तुलसी को बहुत बुरा लगा। 

वह बोली, “आप सदैव दादी को रिमोट दे देती हैं।” 

मम्मी ने आँख दिखाई तो दादी से सट कर बैठ गई। तुलसी को हिन्दी सीरियल समझ में नहीं आ रहा था, उसने दादी से कहा, “चलिये कुछ खेलते हैं।” 

दादी ने पूछा, “क्या खेलोगी?” 

उसने कहा, ” गेंद।” वह लाल रंग की मध्यम आकार की गेंद ले आई। तो उसने कहा, कि आप फेंको मैं रोकूँगी मैं गोली (गोल कीपर) हूँ। दादी पोती गेंद खेलने लगे। एक बार गेंद उछलकर खिड़की से टकरायी। वह दादी से बोली, “हत्  ये क्या किया? सारी खिड़कियाँ काँच की हैं अगर टूट गई तो डाँट पड़ेगी और सारी बर्फ़ अंदर आ जाएगी।” दादी ने कहा कि  चलो कुछ और खेलते हैं। 

तुलसी ने गेंद एक तरफ़ रख दी और दादी से पूछा, “आप जब छोटी थीं तो क्या-क्या खेल खेलती थीं?” 

दादी ने बताया, “हम रस्सी कूदते थे, गेंद से कई प्रकार के खेल खेलते थे। सब बच्चे मिल कर दौड़ लगाते थे, पेड़ पर चढ़ते थे। पेड़ पर रस्सी बाँध कर झूला झूलते थे। गिट्टे, गिल्ली-डंडा, कंचे  ताश के पत्ते आदि खेलते थे।”

तुलसी ने पूछा, “आप इलेक्ट्रॉनिक गेम्स आदि नहीं खेलती थी?” 

दादी ने कहा, “हमारे बचपन में इलेक्ट्रॉनिक गेम्स नहीं  होते थे“

तुलसी ने पूछा, “तब कंप्यूटर गेम्स खेलती होगी?” 

“उस समय कम्प्यूटर भी नहीं था।” 

उसे सुन कर बहुत आश्चर्य हुआ, क्योंकि दो वर्ष की आयु से वह कम्प्यूटर पर खेल खेलती  आ रही थी। कुछ देर सोच कर बोली, “डोरा, क़ायु, हथौड़ी तो देखती होगी।”

दादी ने  बताया, “उस समय टीवी नहीं था, कार्टून कैसे देखते?” 

तुलसी सोच में पड़ गई और बोली, “आप बहुत  बोर होते होंगे।”

दादी मुस्कराई, “हम बच्चे कभी बोर नहीं होते थे। हमारी इतनी सारी  सहेलियाँ होती थीं कि घर में  टिक-टो, लूडो, कैरम आदि  खेलते थे। और शाम को दो तीन घंटे घर के बग़ीचे में बाग़वानी करते थे, खेलते थे।” 

“झूठ सब झूठ, “तुलसी ने कहा, “बाहर कितनी बर्फ़ पड़ी है, उसमें कैसे खेल सकतीं थीं?” 

दादी ने प्यार से उसकी उलझन सुलझाते हुए बताया, “भारत में जहाँ हम रहते थे वहाँ बर्फ़ नहीं पड़ती थी। घर की सभी खिड़कियाँ काँच की नहीं होती थीं। हम घर की छत पर या घर के बाहर खेलते थे।”

उसने रुआँसा हो कर सामने की छत की ओर इशारा कर के कहा कि बर्फ़ से ढँकी उस छत पर कोई कैसे खेल सकता था? जब वह  बनारस आयेगी  तो वह भी छत पर चढ़ कर देखेगी। वह वहाँ ख़ूब खेलेगी, ” यहाँ घर के काँच न टूट जायें के डर से डर-डर कर खेलना पड़ता है। बाहर तो ३-४ महीने बर्फ़ ही रहती है। गर्मी में ही थोड़ी देर के लिये पार्क जा सकते हैं।”  

दादी ने तुलसी की उदासी दूर करने के लिये कहा, “तुम्हारे मम्मी पापा ने इतने खिलौने ला कर दिये हैं, तुम उनसे खेलो।” 

वह रोनी सूरत बना कर बोली कि उन्हें मेरे साथ कोई नहीं खेलता। तुलसी को उदास देख कर दादी को बहुत दुख हुआ। उन्होंने उसे उसका नया गेम माउस ट्रेप और स्क्रैबल लाने को कहा। तुलसी दौड़ कर दोनों खेल ले आई। दादी-पोती कुछ देर तक खेलती रहीं। दादी ने पूछा कि आप उसके साथ रोज़ खेलेंगीं न। दादी की आँखों में ख़ुशी के आँसू छलक आये। वह बोलीं, “जब तुम कहोगी।” तुलसी ख़ुश हो गई।  

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