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नोक-झोंक

 

बेटे बहू के एक साल छह महीने, 
अपना घर बसा लेने के बाद, 
बेटे की माँ बहू के घर आई! 
एक दो दिन बाद दुलहन ने 
बातों ही बातों में कहा कि—
मम्मी जी आपने इन्हें इतना भी नहीं सिखाया? 
 
मम्मी जी ने मुस्कुराते हुए कहा, 
बहुरानी सच कहती हो, 
मैं तो आज तक इसे भी कुछ नहीं सिखा पाई! 
बस जन्म भर ही दे पाई। 
बेबी था, तो, रामदेव बाबा के सारे योगासन करने लगा। 
करवटें बदलते बदलते, सरकने लगा, 
सरकते सरकते, लुढ़कने लगा, 
लुढ़कते-लुढ़कते, घुटरियों चलने लगा, 
फिर चारपाई पकड़ पकड़ कर चलना सीख गया, 
दौड़ने-भागने लगा। 
स्कूल गया तो टीचर ने पढ़ना-लिखना, 
संगी-साथियों ने व्यवहार सिखा दिया, 
जब कॉलेज गया तो साइंस लैब, कम्प्यूटर, 
साथ के लड़कों से जाने क्या-क्या सीख गया, 
अब तो सिखाने का काम—
फ़ेसबुक, यूट्यूब, गूगल, नेट
कर देता है। 
हमारी प्यारी दुलहनियाँ, सच में मैं इसे ही क्या! 
अपनी बिटिया को भी कुछ न सिखा पाई!!!! 

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टिप्पणियाँ

डॉ पदमावती 2023/11/04 09:31 PM

बहुत सुंदर । सत्य वचन । किसी को कुछ सिखाया ही नहीं जा सकता । प्रकृति वातावरण अनुभव सबसे बड़ी पाठशाला हैं । बहुत बहुत बधाई आपको

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