नोक-झोंक
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य कविता डॉ. उषा रानी बंसल15 Nov 2023 (अंक: 241, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
बेटे बहू के एक साल छह महीने,
अपना घर बसा लेने के बाद,
बेटे की माँ बहू के घर आई!
एक दो दिन बाद दुलहन ने
बातों ही बातों में कहा कि—
मम्मी जी आपने इन्हें इतना भी नहीं सिखाया?
मम्मी जी ने मुस्कुराते हुए कहा,
बहुरानी सच कहती हो,
मैं तो आज तक इसे भी कुछ नहीं सिखा पाई!
बस जन्म भर ही दे पाई।
बेबी था, तो, रामदेव बाबा के सारे योगासन करने लगा।
करवटें बदलते बदलते, सरकने लगा,
सरकते सरकते, लुढ़कने लगा,
लुढ़कते-लुढ़कते, घुटरियों चलने लगा,
फिर चारपाई पकड़ पकड़ कर चलना सीख गया,
दौड़ने-भागने लगा।
स्कूल गया तो टीचर ने पढ़ना-लिखना,
संगी-साथियों ने व्यवहार सिखा दिया,
जब कॉलेज गया तो साइंस लैब, कम्प्यूटर,
साथ के लड़कों से जाने क्या-क्या सीख गया,
अब तो सिखाने का काम—
फ़ेसबुक, यूट्यूब, गूगल, नेट
कर देता है।
हमारी प्यारी दुलहनियाँ, सच में मैं इसे ही क्या!
अपनी बिटिया को भी कुछ न सिखा पाई!!!!
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
सामाजिक आलेख
- कुछ अनुभव कुछ यादें—स्लीप ओवर
- दरिद्रता वरदान या अभिशाप
- पूरब और पश्चिम में शिक्षक का महत्त्व
- भारतीय नारी की सहभागिता का चित्रांकन!
- मीडिया के जन अदालत की ओर बढ़ते क़दम
- वर्तमान राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में भारतीय लोकतंत्र में धर्म
- सनातन धर्म शास्त्रों में स्त्री की पहचान का प्रश्न?
- समान नागरिक संहिता (ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में)
कविता
- आई बासंती बयार सखी
- आज के शहर और कल के गाँव
- आशा का सूरज
- इनके बाद
- उम्मीद का सूरज
- उलझनें ही उलझनें
- उसकी हँसी
- ऊँचा उठना
- कृष्ण जन्मोत्सव
- चित्र बनाना मेरा शौक़ है
- जाने समय कब बदलेगा
- प्रिय के प्रति
- बिम्ब
- बे मौसम बरसात
- भारत के लोगों को क्या चाहिये
- मैं और मेरी चाय
- मैसेज और हिन्दी का महल
- राम ही राम
- लहरें
- लुका छिपी पक्षियों के साथ
- वह
- वक़्त
- संतान / बच्चे
- समय का क्या कहिये
- स्वागत
- हादसे के बाद
- होने न होने का अंतर?
- होरी है……
- ज़िंदगी के पड़ाव ऐसे भी
ऐतिहासिक
- 1857 की क्रान्ति के अमर शहीद मंगल पाण्डेय
- 18वीं और 19वीं शताब्दी के दौरान भारत में उद्योग
- औपनिवेशिक भारत में पत्रकारिता और राजनीति
- पतित प्रभाकर बनाम भंगी कौन?
- भारत पर मुस्लिम आक्रमणों का एक दूसरा पक्ष
- शतरंज के खिलाड़ी के बहाने इतिहास के झरोखे से . . .
- सत्रहवीं सदी में भारत की सामाजिक दशा: यूरोपीय यात्रियों की दृष्टि में
- सोलहवीं सदी: इंग्लैंड में नारी
- स्वतंत्रता आन्दोलन में महिला प्रतिरोध की प्रतिमान: रानी लक्ष्मीबाई
सांस्कृतिक आलेख
सांस्कृतिक कथा
- इक्कसवीं सदी में कछुए और ख़रगोश की दौड़
- कलिकाल में सावित्री व सत्यवान
- क्या तुम मेरी माँ हो?
- जब मज़ाक़ बन गया अपराध
- तलवार नहीं ढाल चाहिए
- नये ज़माने में लोमड़ी और कौवा
- भेड़िया आया २१वीं सदी में
- मुल्ला नसीरुद्दीन और बेचारा पर्यटक
- राजा प्रताप भानु की रावण बनने की कथा
- रोटी क्या है?: एक क़िस्सा मुल्ला नसीरुद्दीन का
हास्य-व्यंग्य कविता
स्मृति लेख
ललित निबन्ध
कहानी
यात्रा-संस्मरण
शोध निबन्ध
रेखाचित्र
बाल साहित्य कहानी
लघुकथा
आप-बीती
यात्रा वृत्तांत
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
बच्चों के मुख से
साहित्यिक आलेख
बाल साहित्य कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
डॉ पदमावती 2023/11/04 09:31 PM
बहुत सुंदर । सत्य वचन । किसी को कुछ सिखाया ही नहीं जा सकता । प्रकृति वातावरण अनुभव सबसे बड़ी पाठशाला हैं । बहुत बहुत बधाई आपको