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तलवार नहीं ढाल चाहिए

 

बहुत पुरानी बात है। राजा विजय प्रताप का जन्मदिन था। समूचा राज्य उनका जन्मदिन मना रहा था। सुबह से ही राजा को शुभकामना देने वालों का ताँता लगा हुआ था। धनी और सम्पन्न राजा को कुछ न कुछ उपहार दे रहे थे। शाम होने को थी। अब दरबारी भी राजा को जन्मदिन की बधाई देने लगे। 

महारानी ने राजा के कान में कुछ कहा। राजा ने हामी भरते हुए दरबारियों से कहा, “मैं आज बहुत प्रसन्न हूँ। जो चाहे माँग लो।” 

फिर क्या था। किसी ने स्वर्ण तो किसी ने रजत मुद्राएँ माँग लीं। किसी ने मोतियों की माला माँगी तो किसी ने तीर माँग लिया। मंत्री ने तलवार माँगी तो राजा ने अपनी प्रिय तलवारों में से एक उसे दे दी। मंत्री के बाद तो कई दरबारियों ने भी तलवार माँगनी शुरू कर दी। राजा ने सबकी माँग पूरी कर दी। 

दरबार में महतो भी था। वह राजा का सेवक था। वह चुपचाप कोने में खड़ा था। 

राजा ने कहा, “महतो। तुम भी कुछ माँग लो।” 

महतो ने धीरे से कहा, “महाराज। मुझे तो ढाल ही दीजिएगा।” 

यह सुनकर दरबारी हँस पड़े। सेनापति ने चुटकी लेते हुए कहा, “लगता है महतो को तलवार उठाने से डर लगता है।” हर कोई सेनापति की हाँ में हाँ मिलाने लगा। 

राजा बोले, “कहो महतो। कुछ और माँग लेते। ये तुच्छ-सी ढाल क्यों चाहते हो?” 

महतो ने सिर झुकाते हुए कहा, “महाराज। मेरी आयु भी आपको मिल जाए। लेकिन मैं सोचता हूँ कि ये तलवार हमेशा मारने-काटने का ही काम करती है। वहीं ढाल बचाने का काम करती है। वैसे भी बड़े कह गए हैं कि मारने वाले से बचाने वाला भला। तो भला मैं तलवार लेकर क्या करूँगा!” 

राजा समझ गए। मुस्कुराते हुए दरबारियों से बोले, “महतो ठीक कहता है। आप सब तो तलवार उठाकर दुश्मनों से लड़ेंगे। किन्तु अवांछित प्रहार से मेरी रक्षा करने वाला भी तो कोई होना चाहिए।” 

यह सुनकर दरबारियों के सर झुक गये। 

वहीं महारानी ने महतो को अपने गले का हीरों का हार उपहार में दे दिया। 

कहानी का मर्म यह है कि जब किसी युग के विकसित राष्ट्र का भौतिक आर्थिक विकास अस्त्र-शस्त्र बनाने और अधिक से अधिक बेचने पर आधारित हो तब विश्व में मारकाट, युद्ध के अतिरिक्त कुछ भी सम्भव नहीं है। शान्ति की बात तो दूर की कौड़ी है। कभी एक हाथ में पिस्तौल दूसरे में बम लेकर शान्ति व्यवस्था हो सकती है?? सोचियेगा ज़रूर। 

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