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थप्पड़ क्यों मारा? 

 

घटना लिखने से पहले स्थान के बारे ख़ुलासा करना आवश्यक है कि हिंदू विश्वविद्यालय, में एक आई आई टी है। जिसके अपने छात्रावास हैं। उसमें एक छात्रावास का नाम विश्वेश्वरैया छात्रावास है। उसके बाद सड़क, फिर वार्डन क्वाटर। छात्रावास की सड़क के बाद एक चौराहा पड़ता है जो पूर्व में राजपूताना कोर्नर, पश्चिम में हैदराबाद गेट की तरफ़ जाता है। उत्तर में टीचर्स क्वाटर तथा दक्षिण में रीडर क्वाटर हैं। इस चौराहे पर शाम के समय अक्सर भीड़-भाड़ रहती है। हमें विश्वेश्वरैया छात्रावास का वार्डन क्वाटर मिला था, जिसके बाद वह चौराहा था। मेरे पति उन दिनों विशेष छुट्टी लेकर ऐमआरआई दुर्गापुर (MRI Durgapur) में चले गये थे। मैं अपनी नौकरी छोड़ कर उनके साथ नहीं गई। विश्वविद्यालय में नौकरी पाना कितना कठिन है? हमारा बेटा व बिटिया और मैं उसी क्वार्टर में रह रहे थे, क्योंकि हमें नया क्वाटर नहीं मिला था। 

एक दिन शाम के समय हम बच्चों को लेकर क्वाटर के गेट पर बनी पुलिया पर बैठे थे। चौराहे पर ख़ासी भीड़ थी। लड़के लड़कियाँ सभी इधर-उधर आ जा रहे थे। तभी दो तीन लड़के जो साइकिल पर थे, उनमें से एक ने लड़की की टाँग के बीच साइकिल का अगला पहिया घुसा दिया, उसके साथी हँसने के साथ कुछ छींटा कसी करने लगे! मैंने तेज़ी से दौड़ कर उसकी साइकिल का हैंडल पकड़ लिया और और उन लड़कों को डाँटते हुए साइकिल वाले लड़के को थप्पड़ मार दिया। सब लड़के बड़बड़ाते चले गए। 

 क़रीब दो घंटे बाद मेरे घर की घंटी बजी। मैंने जाकर दरवाज़ा खोला। चार पाँच लड़के हॉकी स्टिक लिए सामने खड़े थे। बोले, “डॉक्टर साहब से मिलना है, उन्हें बुलाइये।”

मैंने कहा, “वह तो नहीं हैं।”

“आप बुलाइये!” 

मैंने कहा, “वह बाहर गये हैं, जब आयेंगे तब मिल लीजिएगा।”

“आपने! यह बताइये मेरे भाई को थप्पड़ क्यों मारा? डॉक्टर साहब होते तो देख लेते।” स्टिक को दिखाते हुए कहा।

मैंने कहा कि अच्छा स्टिक लेकर इसलिए आये हैं। आपने, अपने भाई से पूछा कि उसने क्या किया था? 

“पूछिए इससे? जो इसने किया, अगर कोई लड़का वैसा ही आपकी बहन के साथ करता तो? यह वहाँ होता तो यह क्या करता? अगर आप होते तो क्या करते?” 

“जो मैडम कह रही हैं, ठीक है क्या?” 

उसने सिर झुका लिया। 

सब चुपचाप भाई को गरियाते चले गये। 

पिक्चर अभी बाक़ी है हमारे सुधि जनों—

बात उन दिनों की है, जब घर में कमाने के लिये (अब वह शब्द बोलना लिखना मना है) मेहतरानी आती थीं। गाजियाबाद में लड़कों के कारण लड़कियों-महिलाओं का सड़क चलना दूभर था। छींटाकशी की क्या कहें गंदी गाली देना, दुपट्टा खींचना, हाथ मारना बड़ी आम बात थी। अधेड़ों का तो सिनेमा हॉल, बस, ट्रेन में चुटकी काटना, गाल पर हाथ फेरना आदि अश्लील हरकत करने में और भी बुरा हाल था। 

हमारा घर जीटी रोड पर था। एक दिन बीबी, (उस समय उनका नाम न लेकर सम्बन्ध से बुलाने का रिवाज़ था। भला हो अंग्रेज़ी का, अँग्रेज़ों के जाने के बाद इसका अंग्रेज़ीकरण हो गया। सब अंकल-आंटी हो गये) मेहतरानी की बेटी, सड़क पर झाड़ू लगा रही थी। सुबह का समय था। उस समय वह सड़क काफ़ी सुनसान रहती थी। कुछ लड़कियाँ जा रही थीं, पीछे से आते मनचलों ने पहले उनका दुप्पटा खींचने की कोशिश की, फिर एक ने साइकिल का पहिया किसी लड़की की टाँग में लगा दिया, बीबी ने देखा, तो आव देखा न ताव सड़क की सनी झाड़ू उन लड़कों पर दे मारी। 

जब वह हमारे घर आती तो हम सब चाव से क़िस्से सुनने उनके पास आ जाते थे। उस दिन जब कमाने आईं तो हम सब उनसे ताज़ा क़िस्सा सुनने पहुँच गये। तब उसने उन लड़कों को भला बुरा कहा, हज़ार गालियाँ देते हुए यह सब बताया। 

उस बेपढ़ी बीबी में इतनी हिम्मत थी, तब क्या मैं उससे भी, पढ़ लिख कर इतनी कायर थी कि ग़लत होते देखकर डर कर मुँह फेर लेती या फिर आँख मूँद लेती?

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