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धन व शक्ति की कहानी 

 

हिन्दी साहित्य में बहुत सी छोटी छोटी कहानियाँ हैं जो हमने अपने बड़ों से सुनी थी। बाद में जब पढ़ने लायक़ हो गये तो कहानी की किताबों में उन्हें पढ़ा था। आज जाने क्यों यह कहानी याद आ रही है। इसका आज विश्व में फैले वायरस से कुछ सम्बन्ध है या नहीं, कह नहीं सकती। पर कोई भी त्रासदी अकस्मात्‌ नहीं हो जाती, उसके पीछे लम्बा बीता समय या इतिहास होता है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमेरिका विश्व में सबसे ताक़तवर, धन सम्पन्न देश की तरह दुनिया पर छा गया। न्यूक्लियर बम से जो विध्वंस हुआ उससे दो तरह की विचारधारा बनी। एक जो जापान ने अपनाई कि अस्त्र शस्त्र केवल विनाश करते है, मनुष्य का हित नहीं। उसने शस्त्रों की निस्सारता देखी, जनता का विनाश देखा। और निःशस्त्रीकरण की नीति अपनाई। उसने आयुधों के निर्माण में होने वाले ख़र्च को न्यून कर दिया। अपना बजट मानव के विकास व सुख के लिये करना शुरू कर दिया। वहाँ बनने वाले उपकरण केवल जापानियों के लिये जापानी भाषा में बनाये गये। कृषि उत्पादन को बढ़ावा दिया। जापान को आत्म निर्भर बनाने का प्रयास हुआ। जिससे जापान में तेज़ी से साइंस टेक्नॉलोजी व स्वास्थ्य सेवाओं में अभूतपूर्व विकास हुआ। 

दूसरा प्रभाव यह हुआ कि अमेरिका की शक्ति का मुक़ाबला करने के लिये हथियारों को बनाने की होड़ शुरू हो गई। सभी में न्यूक्लियर हथियार बनाने पैट्रोल, प्राकृतिक साधनों के दोहन तथा उन पर एकाधिकार व अन्तरिक्ष पर क़ब्ज़ा करने की प्रतिस्पर्द्धा शुरू हो गई। इसके लिये अपार धन की आवश्यकता थी। इससे येन केन प्रकरण सब के मध्य अधिक से अधिक से अधिक धन जमा करने की होड़ मच गई। यहाँ कहते चले कि धन ही शक्ति है, शक्ति के बल पर ही धनी बनते हैं। है कितना बड़ा गोरखधंधा। पर सब भूल गये धन की ताक़त भी सीमित है, वह सब कुछ नहीं कर सकता। 

तो हम पुनः बचपन की कहानी पर लौटते हैं। उसके टूटे सिरे को पकड़ते हुए बताते हैं कि—पुराने समय में किसी देश का राजा बहुत धनवान था। वह संसार पर अधिकार करना चाहता था। जिसके लिये उसे सेना, अस्त्र-शस्त्र इकट्ठा करने के लिये ढेर सारे धन की आवश्यकता थी। एक रात वह इसी उधेड़ बुन में लगा था कि नींद आ गई। नींद में उसने देखा कि उसके कमरे में अद्भुत प्रकाश फैल गया है। उस प्रकाश में उसे एक अत्यंत सुंदर स्त्री दिखाई दी। उसे सहसा अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ। उसने बार बार आँख मली पर वह देवी वहीं बैठी मुस्कुरा रही थी। राजा का संशय दूर करने के लिये उसने कहा कि राजन घबराओ मत मैं धन-धान्य की देवी हूँ। मैं हवाई मार्ग से जा रही थी तो देखा कि तुम धन। मेरा चिंतन कर रहे थे। अब मैं आपके समक्ष हूँ। कहो! मैं आपका कष्ट कैसे दूर कर सकती हूँ? 

राजा को पहले तो इस पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। फिर भी उसने सोचा एक बार माँग कर देखता हूँ। राजा ने कहा कि देवी अगर आप मुझ पर इतनी प्रसन्न हैं तो बस यही वर दीजिये कि जिसे मैं छू दूँ, वह सोने का हो जाये। देवी ने कहा, “राजन अच्छे से सोच लो!” राजा ने कहा कि देना चाहती हैं तो दे दीजिये इसमें विचार करने की कहाँ गुंजाइश है। धन ही शक्ति है देवी “तथास्तु” कह कर अन्तरध्यान हो गई। 

राजा के मन में जिज्ञासा हुई कि क्या ऐसा हो सकता है? उसे बहुत तेज़ की प्यास लग रही थी, उसका गला सूखा जा रहा था, उसने पास की सुराही उठाई तो सुराही सोने की हो गई। उसकी आँखें आश्चर्य से विस्फारित हो गई। उसने गिलास में पानी उड़ेला। वह पानी पीने ही जा रहा कि उसके मन में यकायक विचार आया कि क्या पानी भी सोना बन सकता है? उसने पानी को जैसे ही छूआ वह भी सोना बन गया। राजा पलंग से उठ खड़ा हुआ उसने पलंग को छूआ तो वह भी सोने का हो गया। वह अपनी महारानी तथा प्यारी बिटिया को यह करिश्मा दिखाने के लिये उतावला हो गया। वह भागता भागता रनिवास में गया और महारानी को जगाने के लिये छूआ तो वह सोने की मूरत बन गई। अब वह अपनी बिटिया के कक्ष में गया उसे आवाज़ दे कर जगाया। उसने जाग कर पूछा, आप इतनी रात में यहाँ, क्या बात है? राजा बहुत ख़ुश हुआ बोला कि मैं तुम्हें कुछ दिखाना चाहता हूँ, मेरे पास आओ बेटी। जैसे ही बेटी उसके पास पहुँची, राजा ने आशीर्वाद देने के लिये उसके सिर पर हाथ रखा, वह सोने की हो गई। राजा घबरा गया। वह नौकर चाकरों, सिपहसालारों को पुकारता हुआ शयन कक्ष से बाहर भागा। 

 ख़ानसामा ने मेज़ पर नाना प्रकार के व्यंजन सजा रखे थे। अचानक राजा को बहुत भूख व प्यास लगने लगी। वह सब भूल खाना खाने बैठ गया। जैसे ही उसने एक कौर हाथ में लिया वह सोने का हो गया। भूख में क्रोध से ख़ानसामा को थप्पड़ मारा, पर यह क्या वह भी सोने का हो गया। राजा बेतहाशा महल में दौड़ने लगा, जिसे छूता वह सोने का हो जाता। वह विलाप करने लगा। ज़ोर ज़ोर से रोने लगा। असीम घबराहट व रोने में उसकी आँख खुल गई। वह भाग कर बिटिया, फिर पत्नी के कमरे में गया सबको मनुष्य रूप में देख कर उसकी साँस में साँस आई उसने प्यास बुझाने के लिये डर से सुराही को ही मुँह से लगा लिया। 

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