मुल्ला नसीरुद्दीन और बेचारा पर्यटक
कथा साहित्य | सांस्कृतिक कथा डॉ. उषा रानी बंसल1 Jan 2024 (अंक: 244, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
एक बार मुल्ला नसीरुद्दीन मक्का, मदीना की यात्रा करने गये। वहाँ मस्जिद के पास उन्हें घूमता हुआ एक पर्यटक दिखा। तभी पर्यटक की नज़र भी मुल्ला नसीरुद्दीन पर पड़ी। पर्यटक ने नसीरुद्दीन के पास जा कर पूछा, “आप यहीं के लगते हो क्या आप इस मस्जिद के बारे में कुछ बता सकते हैं?”
मुल्ला को उसकी बात बड़ी अटपटी-सी लगी।
तब उस पर्यटक ने मुल्ला को बताया, “मक्का घूमने के लिये आया था परन्तु, पुस्तक—जिसमें मक्का तथा यहाँ के सभी स्थानों के बारे में जानकारी थी, कहीं खो गई! उस किताब की सहायता से मुझे सब समझ में आ जाता और सब मुख्य स्थान घूम लेता। अब पुस्तक खो जाने के कारण मुझे इस मस्जिद के बारे में कुछ जानकारी नहीं मिल पा रही है। क्या आप इस मस्जिद के बारे में जानते हैं?”
यह सुन कर मुल्ला ने कहा कि वह इस मस्जिद व अन्य प्रमुख स्थानों के बारे में अच्छी तरह से जानता है। इस मस्जिद के बारे में वह उसे सब कुछ बता सकता है। मुल्ला नसीरुद्दीन ने बड़े जोश से मस्जिद व आस पास की जगहों के बारे में बताना शुरू किया।
मुल्ला नसीरुद्दीन शाह ने पर्यटक को बताया कि यह मस्जिद सिकंदर ने अरब में विजय हासिल करने की निशानी के तौर पर बनवाई थी।
मुल्ला की बातें पर्यटक ग़ौर से ही सुनने लगता है तभी उसे ही ध्यान आता है कि सिकंदर यूनानी था ना कि मुस्लिम। उसने मुल्ला से कहा कि उसकी जानकारी के अनुसार सिकंदर यूनानी था मुस्लिम नहीं?
मुल्ला ने हँसते हुए कहा, “आप पूरी बात नहीं जानते हैं कि उस जंग में जीत से सिकंदर को बेशुमार दौलत मिली थी। इसे उसने अल्लाह की मेहरबानी समझ कर इस्लाम को क़बूल कर लिया था।”
मुल्ला की बातों का जवाब देते हुए पर्यटक ने कहा, “सिकंदर के दौर में दुनिया में इस्लाम पैदा ही नहीं हुआ था।”
मुल्ला कहने लगा, “तुम्हारी बात सही है लेकिन जंग ख़त्म होने के बाद उन्होंने ही एक नए धर्म की स्थापना की थी, उसी धर्म को इस्लाम के नाम से जाना गया। तब सिकंदर इस्लाम धर्म के प्रवर्तक बन गए।”
पर्यटक ने मुल्ला की बातें सुनने के बाद मस्जिद देखते हुए कहा, “मेरी जानकारी के अनुसार इस्लाम धर्म के प्रवर्तक का नाम मोहम्मद हज़रत था। इस बारे में मैंने किसी किताब में भी पढ़ रखा है।”
तब मुल्ला नसीरुद्दीन कहने लगे, “तुम्हारी जानकारी सही है, लेकिन पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है। इधर सिकंदर को ही मोहम्मद हज़रत कहा जाता है। उन्होंने धर्म को अपनाने के बाद अपना नाम बदलकर मोहम्मद हज़रत कर दिया था।”
पर्यटक ने कहा, “ये है हैरान करने वाली जानकारी है।” फिर उसने मुल्ला से कहा, “सिकंदर यानी अलेक्जेंडर मोहम्मद हज़रत से कई सदियों पहले हुआ था!”
मुल्ला ने कहा, “सब यही कहते हैं! शायद तुम किसी दूसरे सिकंदर की बात कर रहे हो। मैं तुम्हें उस सिकंदर के बारे में बता रहा था जिसे सब मोहम्मद के नाम से जानते हैं!!”
कहानी से सीख:
इस कहानी से पता लगता है कि जब आप कहीं घूमने जाते हैं, अथवा किसी चीज़ की जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो उस विषय के स्थान, स्त्रोत से ही उस बारे में जाने। नहीं तो बहुत सी ग़लत बातें, भ्रामक तथ्य उससे जुड़ जायेंगे। भारत का दुर्भाग्य है कि आने वाले आक्रमणकारियों ने हमारे पुस्तकालय व पुस्तकों को जला कर राख कर दिया । कुछ वह चुरा कर ले गये। भारत का इतिहास, धर्म, समाज, संस्कृति मुल्ला जैसे बताने वालों के कारण बहुत सी भ्रांतियों व विवादों के घेरे में आ गई है। उसके सुंदर-सुंदर स्थापत्य कला के मंदिर, भवन, सराय, महल, ऊपरी तोड़-फोड़ व कुछ इस्लामिक पत्थरों को लगा कर उनका नाम बदलने से अपना अस्तित्व ही खो बैठे हैं। उदाहरण के लिये क़ुव्वत-उल-इसलाम, तथाकथित अढ़ाई दिन का झोंपड़ा। आज सब इन्हें इसी नाम से जानते हैं, सराहते हैं पर यह कोई नहीं बताता कि क़ुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद, तोमर शासकों के लाल कोट क़िले, जिसका चौहान राजाओं ने विस्तार किया किया था, को तोड़ कर कुछ परिवर्तन कर के बनाई गई थी—अढ़ाई दिन का झोंपड़ा। संस्कृत स्कूल को नष्ट भ्रष्ट कर उस पर आरोपित किया गया था।
भारतवर्ष नाम भी इसी तरह विवादों में फँस कर इंडिया कहलाने लगा।
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शैली 2023/12/29 10:12 PM
बहुत सही बात बहुत सुन्दर उदाहरण से प्रस्तुत की। हार्दिक अभार और बधाई