उसकी हँसी
काव्य साहित्य | कविता डॉ. उषा रानी बंसल15 Oct 2021 (अंक: 191, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
जिसकी हँसी कभी रुकती न थी,
हँसते हँसते गला रुँध जाता था,
आँखों से आँसू बहने लगते थे,
उसकी हँसी की बात भी अब इतिहास हो गई।
कभी बोलने पर डाँट पड़ती थी,
कितना बोलती हो!
कभी तो चुप रहा करो,
हर बात पर बात बनाती हो,
जाने कब चुप रहना सीखोगी।
कभी तो समझा करो,
जाने कब समझोगी!
वही, जी वही, हाँ हाँ वही,
अब चुप हो गई है, बातें हवा हो गईं,
हँसी तो उसका पता ही भूल गई,
समझने की धुन में,
शायद, जी ठीक सुना! शायद,
बोलना ही भूल गई।
बोलना ही भूल गई।
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