सबसे अच्छा क्या लगा? ‘पानी’
संस्मरण | स्मृति लेख डॉ. उषा रानी बंसल1 Nov 2023 (अंक: 240, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
कुछ साधारण सी बात, साधारण तरीक़े से कही भी सदैव मस्तिष्क के कम्प्यूटर में सुरक्षित रहती है। कुछ मिलती-जुलती सी बात होते ही पुरानी यादें मन पर छा जाती हैं। ऐसा ही खाना खाते हुए कई बार हुआ। हमारी बहू नीतू ने कचौड़ी, कोहडे़ की सब्ज़ी, मूली अदरक के लच्छे की सलाद, बूँदी का रायता बनाया था। साथ में गोल-गोल लच्छे वाली प्याज़ पर मसाला डाला था। सब खाना खा रहे थे, जैसा हमेशा होता है बनाने वाली प्रशंसा कर कहते हैं कि खाना बहुत स्वादिष्ट है। पेट तो भर गया मन नहीं भरा। फिर भी बनाने वाला यह पूछे बिना संतुष्ट नहीं हो पाता कि सबसे अच्छा क्या लगा? जब सब अच्छा लगा हो तब इस प्रश्न का उत्तर देना कठिन हो जाता है। ऐसे ही प्रश्न के उत्तर में एक बार हमारे बेटे आशीष के मित्रों की दावत में उसके एक दोस्त अमित जोशी ने कहा कि, “प्याज़,” तब सबने उसकी बहुत खिंचाई की थी। हमारे बेटे ने वहीं खाना खाते हुए मेरे कान में “अमित, प्याज़” फुसफुसाया। हम मुस्कुरा कर रह गये, ये मेरी व उसकी याद जो थी।
ऐसे ही अपने विवाह के बाद जब हम माँ के यहाँ गये तो वहाँ से रिवाज़ के अनुसार हमारी, मौसी, भाभी, जो अलग रहती थीं, आदि ने खाने पर बुलाया। बताते चलें मेरी ससुराल मथुरा में है। वहाँ का पानी बेहद खारा है। यह जग ज़ाहिर है। वृंदावन का पानी मीठा है। मेरे भाई, भाभी ने हमें दोपहर के भोजन पर आमंत्रित किया। बहुत प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन बनाये। प्रचलित तरीक़े से, भाई ने बड़े प्यार से मुझ से पूछा कि सबसे अच्छा क्या लगा? मेरे मुँह, से अचानक निकला, “पानी।” भाई भाभी अवाक् मेरा मुँह देखने लगे। तब मुझे अपने पर बहुत लज्जा आई। पर तीर कमान से निकल चुका था।
२०२३ के मई महीने में मैं अपनी ननद के यहाँ ग़ाज़ियाबाद गई। मेरी भाभी का घर उनके यहाँ से क़रीब एक किलोमीटर पर है। मेरी भाभी बहुत बीमार थीं अतः उनसे मिलने का बहुत मन था। भाभी की बहू ने मुझे बड़े आग्रह से घर (मायके)। आने का आमंत्रण दिया। मन में जाने कहाँ से कौंधा कि क्या अब भी वहाँ का पानी उतना ही मीठा होगा? क़रीब क़रीब ५० साल में पानी की तासीर बदल तो न गई होगी। इसी तरह के विचारों में उतरती तैरती मैं मायके भाभी से मिलने गई। भाभी सुषमा की बहू रितु ने बड़ी गरम जोशी से स्वागत किया। भतीजे, के बेटा बेटी, बड़ी भतीजी आदि से मिल कर मैं भाभी के कमरे में गई। भाभी बड़ी अधीरता से मेरी प्रतीक्षा कर रही थी। ननद-भावज मिले, कुछ समय हाल चाल पूछने में लगा फिर भाभी वह बातें याद करने लगी जब वह १७-१८ वर्ष की आयु में बहू बन कर आई थी। और मैं भी १४-१५ की रही होऊँगी। हमारी सहेलियों व भाभी ननद की छेड़खानी की बातें दोहराने लगीं। परिवार में कौन कहाँ है? सब के बारे में बताया, कुछ खट्टा कुछ मीठा था सब! इसी बीच रितु व बच्चों ने तरह-तरह के नाश्ते से मेज़ सजा दी। भाभी ने जो बताया होगा, उसी प्रकार के बचपन की रुची वाले व्यंजन भी वहाँ दिख रहे थे। तभी भतीजा पानी का गिलास ले कर आया और बोला, “बुआ पानी।” मैं जैसे चौंक पड़ी! पानी का गिलास मुँह से लगाया ही था कि याद का पिटारा बोला, ‘पी कर देख पानी कैसा है।’ मैंने तुरंत पानी पिया, मेरे आश्चर्य का ठिकाना न था कि वह पानी अब भी उतना ही मीठा था, जितना उस दावत के दिन था।
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