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नीलू और प्रतिमा 

 

1.
हमारी जब बिटिया हुई तो उसके बाबा ने उसका नाम नीलू रखा। जब हम उसे लेकर मैके गये तो बातचीत में पिताजी ने कहा कि बच्चों के नाम, नकारात्मक अक्षर से नहींं रखने चाहिए। जब स्कूल में नाम लिखाने का नम्बर आया तो उसका नाम प्रतिमा लिखा दिया। इस तरह वह घर पर नीलू और सहपाठियों व स्कूल में प्रतिमा प्रतिष्ठित हो गई। 

१९८५ में उसने १० वीं की परीक्षा दी। तब उसके पापा डॉ. बृजबिहारी बंसल किन्हीं अपने विभाग के व्यक्तियों के व्यवहार से दुखी हो कर MRI Durgapur में साइंटिस्ट हो कर चला गये थे। मैं बिटिया, बेटा बीएचयू में ही रह रहे थे। गरमी की छुट्टी में हम सब दुर्गापुर उनके पास गये। बिटिया नीलू का दसवीं की परीक्षा का परिणाम निकला। नीलू के पापा ने बनारस में अपने मित्र से उसका, स्कूल के बोर्ड पर लगे रिज़ल्ट से रिज़ल्ट देख कर बताने को कहा। अब वह परिणाम की सूची ऊपर से नीचे तक कई बार पढ़ गये पर उसमें कहीं नीलू बंसल का नाम नहीं था। सोचने लगे! फ़ेल तो नहीं हो सकती? कुछ गड़बड़ है। तभी किसी नीलू की स्कूल की मित्र, जिसने उन्हें हमारे यहाँ देखा हुआ था कहा, “अंकल, अंकल प्रतिमा बंसल फ़र्स्ट आई है।” तब उन्हें याद आया कि अरे मैं कैसे भूल गया, मुझे पता था कि उसका स्कूल का नाम प्रतिमा है। तुरंत ख़ुश-ख़बरी सुनाने के साथ यह भी बताया। हम सब बहुत हँसे! 

2.

प्रतिमा की सबसे अच्छी दोस्त का नाम गुड्डन, गीतिका शर्मा है। वह डॉ. राम विलास शर्मा जी की पोती है। उसके पापा डॉ. भुवन मोहन शर्मा बीएचयू में ही प्रोफ़ेसर थे। 

गीतिका के एक पारिवारिक मित्र, वर्मा जी बनारस में मलदहिया पर रहते थे। हम एक दिन उस तरफ़ जा रहे थे, नीलू ने कहा कि आप लौटते में वर्मा अंकल से हमारी कॉपी लेते आइयेगा। लौटते में हम वर्मा जी के घर गये, गेट खटखटाया, गेट खुला, मिसेज वर्मा जी ने कहा कि अरे अंदर आइये, हमने कहा कि कुछ जल्दी में हैं, नीलू की कॉपी दे दीजिए? वह अवाक्‌ हमें ताकने लगीं, बोली, “कौन?” हमें अपनी ग़लती समझ में आ गई, हमने कहा कि गुड्डन की दोस्त प्रतिमा की! 

लिखने का अर्थ केवल मनोरंजन ही नहींं वरन्‌, दो नाम से कितनी ग़फ़लत हो जाती है। पर फिर भी एक पुकार का, दुलार का और एक और नाम रखते ही हैं।

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