यात्रा जकार्ता की
संस्मरण | यात्रा-संस्मरण डॉ. उषा रानी बंसल1 Sep 2021 (अंक: 188, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
हमारी बड़ी बहिन की बेटी पूनम जकार्ता में पिछले ३० वर्षों से रहती है। पूनम ने जकार्ता में www.Indoindians.com को पहली बार शुरू किया। उसका भारत और जकार्ता के मध्य सम्बंध बनाने में विशेष योगदान है। वह पिछले कुछ सालों से मुझे जकार्ता बुलाने का न्योता दे रही थी। मैं भी जकार्ता जाना चाहती थी, परन्तु जाने का समय नहीं आ रहा था। उससे यदा-कदा देहली में भेंट हो जाती थी, तो जाने की बात टल जाती थी। जुलाई 28, 2019 को उसने मेरी हवाई जहाज़ से सीट बुक करा दी। इस जहाज़ का नाम “गरूड़” था। जकार्ता एक इस्लामिक राष्ट्र है, उसके जहाज़ का नाम गरूड़ सुनने में कुछ अटपटा लगा। बनारस से रात में विमान चलता था। जिसमें रास्ते में भोजन देने की व्यवस्था न थी। मैंने जहाज़ में बैठने से पहले घर से लाया हुआ खाना खा लिया। संयोग से मेरे बग़ल की दोनों सीट ख़ाली थीं। अत: जहाज़ उड़ने के थोड़ी देर बाद मैं सो गई। तभी उनकी हवाई भोजन की सेवा शुरू हो गई। ऐयरहोस्टेस ने मुझे खाना लेने के लिये जगाया, पर मैंने मना कर दिया। वह थोड़ी देर बाद दोबारा आई मुझसे खाना लेने का आग्रह करते बोली कि ‘It’s free’ । मैंने कहा मैं खाना खा चुकी हूँ। फिर भी उसने अपनी बात दोहराई। पर जब मैं नहीं उठी तो वह चली गई। हमारा जहाँ विमान मलेशिया के हवाई अड्डे पर कई घंटे रुका। फिर दूसरे विमान से हम जकार्ता के हवाईअड्डे पहुँचे। जकार्ता हवाई अड्डे पर कस्टम में जाने लगे तो एक व्यक्ति ने एक खिड़की पर खड़ा होने को कहा। मुझे बताया गया था कि एक महीने तक का वीसा मुफ़्त मिलता है। मेरा वापसी का टिकट एक सप्ताह बाद का था। वीसा वाले को मैंने बहुत समझाया पर जो आदमी मेरे पीछे खड़ा था उसने जाने क्या कहा कि वह टस से मस नहीं हुआ। और मुझे 30 डालर देने पड़े। मेरी भाँजी बाहर मेरी प्रतीक्षा कर रही थी, जब मैं बाहर आई तो वह दौड़ कर मुझ से लिपट गई। हम कार से जकार्ता हवाई अड्डे से 40 किलोमीटर का सफ़र तय कर के 40-50 मिनट में बैलेजियो Bellagio Complex में पहुँच गये। इस बिल्डिंग कॉम्पलेक्स के 31वें तल पर मेरी भाँजी का फ़्लैट था।
29 जुलाई 2019 को अपने दामाद श्री रजत सागर व पूनम के साथ इन्डोनेशिया का स्वतंत्रता स्मारक देखने गये। स्मारक का नाम “मोना’स “ /Mona’s “ है। यह एक स्मारक है, जिसकी ऊँचाई १३२ मीटर है। यह देहली के क़ुतुब मीनार से भी ऊँची है। पर फिर सोचती हूँ कि मैं क्यों तुलना कर रही हूँ? मोनास एक विजय स्मारक है जबकि क़ुतुब मीनार एक खंडित, परिवर्तित, . . . भारत पर विदेशियों की क्रूरता की मिसाल है। मोना’स पर ३२ किलो शुद्ध सोने की टार्च लगी हुई है। इस स्मारक में लिफ़्ट लगी हुई है, जिससे पूरा जकार्ता दिखाई देता है। इस स्मारक के चारों ओर बहुत बड़ा पार्क है। जिसमें संगीतमय फ़व्वारा लगा था। फ़व्वारा इसका विशेष आकर्षण था। गर्मी के मौसम में शीतल बयार ने पार्क में बैठना, चलना घूमना आनंददायक बना दिया।
पार्क के बाहर मेले का सा दृश्य था। घोड़ों युक्त, सुसज्जित ताँगे थे। जिन पर बैठ कर व्यक्ति मौज़-मस्ती कर रहे थे। उन्हें देख कर अपना बचपन याद आ गया। जब हम ताँगे, इक्के में बैठ कर अपनी नानी के यहाँ जाते थे। हमारे क़स्बे में कुछ रईस लोगों के पास गहरे बाज़ इक्का था। जिसकी सवारी कर वह अपने बग़ीचे जाते थे। कभी-कभी उनमें प्रतिस्पर्धा भी होती थी। ग्वालियर म.प्र. में ताँगे का प्रयोग एक स्थान से दूसरी जगह जाने में होता था। बाद में टेम्पो, स्कूटर आने पर वह भी चलने लगे। मोना पार्क घूमने के लिये किराये पर साइकिल, मोटर साइकिल भी उपलब्ध थे। जैसा मेले-ठेले में होता पार्क के बाहर पानी, खिलौने, मिठाई आदि बेचने वाले भी बैठे थे, और आवाज़ लगा कर सबका ध्यान आकर्षित करने का प्रयास कर रहें थे। मोना’स पार्क का भ्रमण बहुत आनंददायक था।
29 जुलाई 2019
सोमवार को जकार्ता के शिव मंदिर में पूजा का आयोजन था। पूनम, रजत व मैं मंदिर गये। वहाँ भजन गाये जा रहे थे। भगवान शंकर का रुद्राभिषेक हो रहा था। फिर आरती हुई। उसके बाद भोग खा कर हम वापस आ गये। मंदिर बहुत साफ़ सुथरा व व्यवस्थित था। वहाँ के नागरिक पूड़ी सब्ज़ी बना रहे थे। उसी का भोग सबने ग्रहण किया। फिर भी सब शुद्ध रहे।
31 जुलाई 2019, बुद्धवार
31 जुलाई विशेष दिन था। हमारी पूनम सागर का जन्म दिन। वह जब पैदा हुई थी तो उस दिन पूर्णिमा थी अत: उसका नाम पूनम रख दिया वह सच में पूनम का चाँद है।
जकार्ता में उसके बेटे वैभव के मित्र अकुल, का जन्म दिन भी 31 जुलाई है। उसकी मम्मी अपने बेटे अकुल के जन्मदिन पर हवन करती हैं।
पूनम ने अपनी एक मित्र सपना के साथ मुझे वहाँ भेज दिया। उन सबने पूनम की मौसी का बड़े दिल से स्वागत किया। अंजू ने हवन के आवश्यक सभी सामग्री पहले से ही सजा कर रख दी थी। उसके आगुंतकों की संख्या अधिक थी इसलिये उसने दो हवन कुंड रख दिये थे। उसने पहले हवन करने का महत्व बताया, फिर वेद की ऋचाओं का अर्थ समझाया हवन का प्रारंभ विधि-विधान से शुरू हुआ। एक घंटे में हवन सम्पन्न हो गया। सबने मिलकर हवन सामग्री व घी की आहुति थी। वहाँ पर मैं ही शायद पहली बार गई थी। बाक़ी सब हवन की परम्परा व एक दूसरे से परिचित थीं। फिर भी मुझे वहाँ अजनबी होना नहीं लगा। मैं सब के साथ हिल-मिल गई थी।
हवन के बाद कुछ भजन गाये गये, एक कृष्ण भजन मैंने पहली बार सुना बहुत सुंदर बोल थे उसके, गाया भी भक्ति भाव से गया था। सबने मिल कर आरती की। फिर प्रसाद, भोग में पूरा भोजन था। पूड़ी, कचौड़ी, दही बड़ा, सौंठ-चटनी, आलू की सब्जी, छोले, दही, हलुवा, लड्डू, रसगुल्ला, खीर, सेवईं की खीर, जन्मदिन का केक था।पेट से अधिक खाने पर भी खाना बच गया था। सब भक्तजनों से आग्रह किया गया कि वह अपनी पसंद का भोग घर ले जायें। हम भी पूनम के लिये कुछ लेकर आये थे। इस तरह जकार्ता में रह रहे भारतीयों की एक झलक देखने को मिली।
पूनम हमारी भाँजी ने शाम को अपनी कुछ सखियों को चाय पर बुला रखा था। पूनम के उत्साह में उसकी बेटी ईशा ने आ कर चार चाँद लगा दिये थे। ईशा सिंगापुर में जॉब करती है, 30 की रात को 12 बजे के बाद घर पहुँच कर, उसने सोती हुई मम्मी को ’हैप्पी बर्थडे किस’ किया तो पूनम को लगा वह कोई सपना देख रही है। क़रीब दो घंटे तक सब चाय, जूस– पीते–खाते रहे, पार्टी अभी चालू थी।
इस तरह हँसी ख़ुशी पूरे दिन जन्मदिन हमने मिल कर मनाते रहे।
01 अगस्त 2019
एक अगस्त को हम नेशनल हिस्ट्री म्यूज़ियम देखने गये। वहाँ जाने के लिये पहले से ही गाइड बुक करना पड़ा।
एक अमेरिकन महिला ने हमें वह म्यूज़ियम दिखाया। कुछ हिस्सा हमने स्वयं भी घूम-घूम कर देखा। मेरा लिये म्यूज़ियम बहुत कौतुहल का विषय था। भारत में मुस्लिम आक्रमणकर्ताओं ने सभी देवालयों की मूर्तियों को खंडित कर दिया था। घरों पर बनी चित्रकारी को भी नष्ट कर दिया था। तब इन्डोनेशिया जो एक मुस्लिम देश है उसका संग्रहालय देखना अपने में अलग अनुभव था। भारत में मन्दिरों को तोड़ मस्जिद बनाने वाले, ज्योति स्तम्भों को तोड़-फोड़ कर मीनार बनाने वालों ने जाने वहाँ क्या किया होगा? उनकी धरोहर कैसी होगी? इन सब मानसिक विचारों में डूबते-उतरते मैंने एक चौराहे पर महाभारत का प्रसिद्ध स्टैच्यू देखा। यह मूर्ति अर्जुन के रथ की थी जिसमें चार सफ़ेद घोड़े जुते थे, स्वयं श्री कृष्ण उस घोड़ों युक्त रथ खींच रहे थे। बहुत ही सुंदर कलाकृति थी। दूर से ही ध्यान आकर्षित कर रही थी।
म्यूज़ियम के बाहर हाथी की बड़ी सी मूर्ति थी। जिसके कारण इन्डोनेशिया में इसे “गज म्यूज़ियम“ कहते हैं। यह मूर्ति थाइलैंड के राजा “राम पंचम“ (खing Chulalongkorn ) ने संग्रहालय को भेंट स्वरूप भेजी थी। इस म्यूज़ियम में वहाँ की शताब्दियों की संस्कृति और उसका विकास का क्रम सुरक्षित है।
यह म्यूज़ियम १७७८ में स्थापित हुआ। इस संग्रहालय में १४१,००० कलाकृतियाँ सुरक्षित हैं। यहाँ प्रागैतिहासिक (Pre historic to archeology, numismatic, ceramics, ethnography, History and ) से लेकर ऐतिहासिक, पुरातत्व, मुद्रा संग्रहण, चीनी मिट्टी की वस्तुएँ, नृवंशविज्ञान से सम्बन्धित वस्तु, टैक्सटाइल, आधुनिक विज्ञान तथा इतिहास और भूगोल से सम्बंधित वस्तुओं और कला कृतियों का संरक्षण है।
इस संग्रहालय में हिन्दू व बुद्ध समय की उत्कृष्ट पाषाण प्रतिमा सुरक्षित है। यहाँ की प्रस्तर प्रतिमाओं में जावा, (बटाविया) और बाली, सुमात्रा आदि दीप समूह का प्राचीन इतिहास एक स्थान पर एकत्रित दिखाई देता है।
संग्रहालय के स्वागत कक्ष में गौतम बुद्ध व हिन्दू धर्म की प्रतिमा देख हमें सुखद आश्चर्य हुआ। ये दोनों प्रतिमा कहीं से भी खंडित नहीं थीं। अब हम विभिन्न कक्षों में सजी शिव, बुद्ध, शक्ति की विभिन्न पाषाण सजीव, अब बोली तब बोल पड़ेंगी जैसी प्रतिमाओं से अभिभूत होने लगे।
चाँदी की मंजूँ श्री की प्रतिमा तो देखते ही बनती थी|
इस तरह की बहुत सी कलाकृतियाँ थीं जिनका वर्णन नहीं किया जा सकता।
इन्डोनेशिया एक दीप समूह है। उसका जीवन व्यवसाय समुद्री व्यापार पर निर्भर रहा होगा और है। संग्रहालय में एक ही लकड़ी की बनी नाव रखी थीं। जिन्हें ‘log boats‘ कहा जाता है। इन्हें एक ही पेड़ को काट कर, उसे खोखला कर के बनाया जाता था। वहाँ बहुत लम्बी कई ऐसी नाव देखने को मिली, जिन्हें देख कर दाँतों तले अंगुली दबानी पड़ी।
वहाँ के जन जीवन को दर्शाते कई फ़ोटो हमने लिये जो इस प्रकार हैं।
दो अन्य प्रस्तर मूर्तियों का उल्लेख करना इस क्रम में आवश्यक है, एक है प्रशस्ति लिंग मूर्ति व अभिलेख, जो नवीं शताब्दी का है|।
दूसरा है यह प्रस्तर खंड जो न्याय करने के लिये प्रयुक्त होता था
इसके सामने अपराधी का अपराध सिद्ध होता था।
३ अगस्त जकार्ता के मैरियट होटल में सुशी बनाना सीखना
मंगलवार ३ अगस्त को हमारी भाँजी पूनम सागर ने ज्योति के साथ मैरियट होटल के हाल में जापानी शाकाहारी व आमिष सुशी सिखाने का आयोजन किया था। होटल के शैफ़ इसे बनाना सिखाने वाले थे। पूनम ने कहा कि मौसी चलो, आपको अच्छा लगेगा, घर पर भी क्या करोगी। मैं भी उसके साथ चली गई। बड़े से हाल में ३ मेज़ सजी थीं। एक मेज़ पर निरामिष व बाक़ी दो पर आमिष सुशी सीखने वाले थे। कुल मिला कर तीस पैंतीस महिलायें थीं। यह मेरा पहला अनुभव था।
मैंने तो कभी सुशी खाई नहीं थी। उसे सदैव निरामिष आहार ही जानती थी। पर वहाँ बनाने के समय पता चला कि समुद्री हरे रंग के पत्ते पर उसे बनाया जाता है। जिसका स्वाद कुछ को पसंद नहीं आता है। उसको बनाने में मुख्य जापानी चावल का प्रयोग होता है। जो विशेष क़िस्म का होता है। चावल के ऊपर कटे आम, खीरा, मूली अदरक तथा टोफ़ू/सोयाबीन का पनीर, एवाकोडो भरवाया गया। फिर उस को अच्छे से रोल करना था। वही उसकी ख़ास बात थी। एक रोल में पत्ता ऊपर रखना था, बाक़ी दो रोल में पत्ता अंदर व चावल बाहर।
पूरे आयोजन की सबसे अच्छी बात यह थी कि होटल के छ: सात शैफ़ बहुत ख़ुशी व उत्साह से सबको सिखा रहे थे, व सहायता कर थे। प्रतिभागियों ने भी बहुत लगन से सुशी बनाना सीखा। एक ख़ुशनुमा माहौल में तीन घंटे कैसे बीत गये पता ही न चला। मैरियट होटल के शैफ़ ने उन्हें अगामी क्लास में किमची बनाना सिखाने का आश्वासन दिया। सभी प्रतिभागी इससे बहुत प्रेरित हुए और तरह तरह के व्यंजन बनाना सीखने की इच्छा व्यक्त की।
४ अगस्त को हज़ार द्वीप समूहों की यात्रा:
हज़ार द्वीप समूह में १,८०० द्वीप सम्मिलित हैं। यह जावा समुद्र के तट पर स्थित है। १९ वीं शताब्दी से यह सैलानियों का पसंदीदा द्वीप है।
मैं अपनी भाँजी पूनम के साथ यह द्वीप देखने गई। पूरे दिन का प्रोग्राम था। सुबह स्टीम बोट से हज़ार द्वीप पर, एक घंटे हिचकोले खाते पहुँचे। द्वीप का पानी बहुत साफ़ और एकदम पारदर्शी था। वह स्थान गोताखोरों के लिये प्रसिद्ध है। बहुत से सैलानी इसलिये ही वहाँ जाते हैं। उस द्वीप का नाम है, कप्यूलान सेरीबू (KepulauanSribue) वहाँ हम ’डीपालू सेबा‘ होटल में रुके, जिसका मुख्य द्वार बहुत सुंदर रंगों से सजा था। वहाँ हमने उफनते जल में चल कर देखा। ख़ूब मस्ती की। वहाँ जूते के आकार की कायक (Kayak) I नामक नाव थी जो रेत पर रखे जूते लगते थे। नदी के किनारे झूला लगा था। हमने झूला, झूला व झूले के गीत गाये। वहाँ घूम कर लोगों के रहने के कमरे भी देखे जो होटल से सम्बंधित थे। दोपहर का भोजन टूर के साथ बुक था। परन्तु भोजन समुद्री जीवों का व मांसाहारी था। मैं घर से पराँठे अचार, सब्ज़ी लेकर गई थी, वही नदी किनारे बिछी बैंच पर बैठ कर खाया। पानी वहाँ खारा था, घर से अपने साथ पानी भी लेकर गये थे, वही पिया। बाथरूम ठीक था। सभी द्वीपों पर रहने की, खाने की व्यवस्था नहीं थी, व्यक्ति घूमने, गोताखोरी, मछली पकड़ने जाते थे। मेरी भाँजी तो डाइविंग करती है पर मेरे साथ उसने नहीं की। शाम को पॉवर बोट से हम वापस जकार्ता पहुँच गये। पहली बार किसी द्वीप पर पूरा दिन बिताया।
लोटे मॉल (Lotte Maal)
जकार्ता का प्रसिद्ध मॉल देखने गये। ऐसे तो यह आलीशान मॉल वैसा ही था जैसे सब बड़े मॉल होते हैं। परन्तु इसका प्रत्येक तल एक विशेष प्रकार के सामान से सजा था। लकड़ी की कारीगरी बहुत अद्भुत थी। लकड़ी का फ़र्नीचर व विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ देखते ही बनती थीं। एक तल पर कपड़े का समान था। वहाँ सूती व रेशमी कपड़ों का चलन है। ‘इकत‘ एक विशेष प्रकार से काता हुआ कपड़ा, वहाँ की विशेषता थी। इस कपड़े की साड़ी, ड्रेस, ड्रेस मैटेरियल, पेंटिंग, आदि वहाँ की शोभा बढ़ा रहे थे। इकत वहाँ का राजसी परिधान भी है। वहाँ का संभ्रांत वर्ग व शासक भी इस कपड़े की बनी शर्ट वग़ैरा शान से पहनते हैं। साधारण वर्ग भी इकत के कपड़े पहने हुए दिखे। द्वीप के वातावरण में नमी बहुत होती हैं इसलिये वहाँ सूती कपड़ा ही अधिक आरामदायक होता है। मॉल में विंडो शापिंग कर, हमने एक ख़ुशनुमा शाम वहाँ बिताई।
जकार्ता में मोटर साइकिल टैक्सी का स्टैंड देखा। जकार्ता बहुत व्यस्त शहर होने के कारण जाम की समस्या रहती है। अत: एक व्यक्ति को अगर कहीं जाना है तो वह मोटर साइकिल टैक्सी लेकर जा सकता है। वहाँ स्टैंड पर चालकों को प्रतिक्षा करते देखा। उनकी खाने पीने की उठाऊ दुकान भी वहाँ थीं। मैंने पहली बार यह सुविधा गोवा में देखी थी। वहाँ सैलानी गोवा घूमने के लिये इसका उपयोग कर रहे थे। तब मुझे बहुत आश्चर्य हुआ था। अब तो बनारस में भी ओला कम्पनी की मोटर साइकिल टैक्सी उपलब्ध है।
कुछ बातें इन्डोनेशिया के बारे में
इन्डोनेशिया नाम दो शब्दों से मिलकर बना है, (Indo = India, & Greek word nesos=Island) १८ वहीं शताब्दी में जार्ज विंडसर अर्ल नाम के व्यक्ति ने इस नाम का सुझाव दिया था। १९०० में मलाया द्वीप समूहों के लिये इस नाम का प्रयोग किया जाने लगा। यह नाम वैज्ञानिक आधार पर दिया गया था पर जब इन्डोनेशिया गणतंत्र बना तो इस नाम को स्वीकार कर लिया। (इन्डोनेशिया शब्द का इतिहास बहुत रोचक है, सुमित्रा, जावा, मलाया, आदि द्वीपों के एकीकरण की प्रक्रिया का यह महत्वपूर्ण अंग हैं) इसे विकिपीडिया पर विस्तार से समझा जा सकता है।
यह द्वीप वृहद् सूडां (Sunda) द्वीप का समूह था। जिसमें सुमित्रा, जावा, बोरनियो “Kalimantan, Sulawesi, NessaTengara,” बाली, तिमोर, मलेक्का, गुनिया “Guinea” आदि द्वीप आते थे। इनके अपने-अपने राजा थे। इन द्वीपों में शैव तथा बौद्ध धर्म माना जाता था। ७ वीं शताब्दी से इनका, ’श्रीविजय, फिर माजापाहित ‘Majapahit‘ शासकों के समय से चीन, भारत के साथ व्यापारिक सम्बन्ध था। वहाँ के शासक हिन्दू, बौद्ध धर्म के अनुयायी थे। इन द्वीपों में शैव तथा बौद्ध धर्म प्रचलित था। फिर अरब से सुन्नी व्यापारी तथा शिया विद्वान साधकों के साथ इस्लाम का प्रसार हुआ।यूरोपियन व्यापारी व औपनिवेशिक शासन में ईसाई मत भी वहाँ फैला। अरब के व्यापारियों के साथ इस्लाम का इतना प्रसार हुआ कि वहाँ के राजाओं ने इस्लाम स्वीकार कर लिया। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण व अलग बात यह है कि उन्होंने केवल धर्म बदला पर विरासत नहीं। अपनी विरासत का उन्होंने संरक्षण किया है। इस पर उन्हें गौरव है। वह गर्व से कहते हैं कि उन्होंने धर्म बदला है संस्कृति नहीं।
जकार्ता का स्वतन्त्रता दिवस आने वाला था, और सब जगह रोमन में लिखा था ‘दीर्घजीवी इन्डोनेशिया, मुझे लगा किसी बीमा कम्पनी का इश्तहार है, पर जब अपनी भाँजी से पूछा तो उसने बताया कि ‘लाँग लिव इन्डोनेशिया’ लिखा है। वहाँ की भाषा को भाषा कहते हैं जिसकी लिपि रोमन है। उनकी भाषा में संस्कृत, हिन्दी, गुजराती, दक्षिण की भाषाओं के शब्द भी समाहित हैं। यह एक अपनी तरह का ‘Secular’ धर्मनिरपेक्ष गणतन्त्र है, जहाँ की अधिकांश जनता इस्लाम को मानती है। जकार्ता घूमने के बाद मैंने भी कहा, दीर्घजीवी इन्डोनेशिया।
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