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काव्य साहित्य | कविता डॉ. उषा रानी बंसल15 Sep 2022 (अंक: 213, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
डेढ़ साल बाद अमेरिका से लौट कर
जब सुबह की चाय ले, वराण्डे में बैठी!
बुलबुल ने अपनी मधुर तान छेड़ दी
मानो पूछ रही हो ‘इतने दिन से कहाँ थीं’?
तभी कोयल कुहुक कर कहने लगी कि
कैसी हो?
अंबिया लग गई हैं
मैना भी मुँडेर पर बैठ उलाहना देने लगी
कि बग़ीचा उदास कर गईं
गौरैया बच्चों के साथ
फुदक फुदक कर चीं-चीं करने लगी
तुम न थी तो—
हमारा दाना-पानी ही उठ गया
तभी याद आया कि जब से आई हूँ
चिड़ियों को न दाना डाला
न उनका पानी भरा!
दीवार पर एक मोटा सा बंदर
ऐसे देखने लगा जैसे कोई—
भूली बिसरी याद आ गई
कुछ अजनबी कुछ पहचानी-सी
बस इतने अपनेपन से मन भर आया
अपने देश को नमन।
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