नज़र नज़र की बात
कथा साहित्य | लघुकथा डॉ. उषा रानी बंसल15 Feb 2025 (अंक: 271, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
दो विदेशी लड़के बनारस घूमने गये। सुविधा के लिये एक का नाम ‘ए’ दूसरे का ‘बी’ रख लेते हैं। दोनों फोटोग्राफर थे। दोनों के मन में बनारस की कुछ विशेषताओं की विशेष फोटो खींचने की योजना थी। यही साध मन में लिये जब वह लालबहादुर शास्त्री हवाई अड्डे पर उतरे तो दोनों ने अपने अपने कैमरे सम्भाले, लेंस ठीक किये। एक ने हवाई अड्डे पर टैक्सी वालों की आवाज़ लगाती, भागती दौड़ती भीड़ की फोटो खींची तो दूसरे ने हवाई अड्डे के बाहर के पार्क व भव्य मूर्तियों की।
होटल में आराम करने के बाद वह बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने मंदिर गये। दोनों ने जी भर कर फोटो खींची। अगले दिन बनारस से कुछ दूर आकर्षण का केन्द्र ‘देवदरी राजदरी’ घूमने गये। देवदरी राजदरी एक बहुत ख़ूबसूरत जल प्रपात है। दोनों ने घूम-घूम कर ढेर सी फोटो खींची।
शाम का खाना खाने के बाद दोनों ने प्रोजेक्टर जो साथ लाये थे लगाया। पहले ‘ए’ ने अपनी फोटो कमेंट्री के साथ दिखाईं। कितना बैकवर्ड है बनारस। टैक्सी वालों के कपड़ों से बदबू आ रही थी। हवा में कितना पॉल्यूशन था। साँस लेना दूभर हो रहा था। उनके हाथ कितने काले व शक्लें भी कैसी अजीब-अजीब सी थीं।
मंदिर की फोटो दिखाते हुए कहा कि कितनी भीड़ थी। लोगों के पैरों में जूते चप्पल तक नहीं थे। मनुष्य मंदिर में खचाखच भरे थे। एक दूसरे से चिपके से चल रहे थे। कितना हो-हल्ला मचा रहे थे। बीच-बीच में जाने क्या नारा लगाते थे? कैसे रहते हैं यह, क्या दर्शन करने आते हैं? उसके चेहरे पर उपहास व वितृष्णा साफ़ झलक रही थी।
जब ‘बी’ ने अपनी फोटो दिखानी शुरू कीं तो उसमें हवाई अड्डे के सुंदर बाग़ बग़ीचे, मूर्तियाँ दिखाईं। ‘ए’ ने कहा कि ये कहाँ थीं? मैंने तो इन्हें देखा ही नहीं। मंदिर की फोटो में उसने मंदिर की संरचना, शिखर, शाम को सूरज की रोशनी में दमकता स्वर्ण कलश, बड़ा सा नंदी, नंदी पर अलंकरण, नगाड़ा आदि दिखाये। गंगा की लहरों पर अठखेलियाँ करती डूबते सूरज की लालिमा दिखाई। ‘ए’ को लग रहा था कि ‘बी’ कुछ गड़बड़ कर रहा है। रात अधिक हो गई थी दोनों सो गये। आपस में तय किया कि कल नाश्ते के बाद देवदरी-राजदरी की फोटो देखेंगे।
अगले दिन ‘ए’ ने देवदरी जाते हुए रास्ते में बीहड़ के पत्थरीले रास्ते पर गाड़ी रुकवाई थी। उसकी उसने बहुत सी फोटो ली थीं। बनियाान व उसके नीचे मुश्किल से घुटने तक आती धोती, हाथ में लकड़ी लिये छोटे लड़के व मिमियाती बकरी की फोटो ली थीं। वहाँ की ज़मीन ऊँची-नीची, पत्थरीली थी। कहीं कुछ जंगली पौधे ही उसे दिखे थे। एक फोटो में एक पेड़ के पास दो बच्चे पॉटी कर रहे थे, उनके पीछे जीभ लपलपाता कुत्ता खड़ा था। यह फोटो दिखाते ‘ए’ का चेहरा दर्प से दमक रहा था कि उसने वास्तविक भारत, बनारस की फोटो खींची है।
‘बी’ ने देखा कि जब ‘ए’ अपनी मस्ती में था उसने भी कुछ फोटो क्लिक किए। उसने जो फोटो दिखाई उसमें एक पेड़ था जो ख़ूब घना था, और लाल व कुछ पीले रंग के फूलों से इस क़द्र लदा था कि पत्तियाँ ही नज़र नहीं आ रही थीं। उससे छन कर आती सूरज की किरणें किसी बढ़िया झाड़फ़ानूस से आती रंग बिरंगी सुरम्य रोशनी से धरती को आलोकित कर रही थीं।
देवदरी-राजदरी प्रपात की फोटो भी कुछ ऐसी ही थीं। ‘बी’ नैसर्गिक सौंदर्य को देख कर अभिभूत था। और मन ही मन कह रहा था कि पर्यटन की गंदी नज़र इस पर न पडे़। अपने अनछुए रूप में ही यह सुंदरता का प्रतिमान बना रहे। वहीं ‘ए’ को उसमें नंगे नहाते, तैरते, आपस पर पानी उछालते, कूदते बच्चे, बेशर्म स्त्रियाँ, पुरुष दिखाई दे रहे थे। वह अविकसित, असभ्य भारतीयों की तस्वीर उतारने में विशेष गौरव का अनुभव कर रहा था।
फोटो सैशन चल रहा था . . .
तभी होटल के बाहर कोई भजन मंडली राम चरित मानस की चोपाई गा रही थी:
“जा की रही भावना जैसी।
प्रभु मूरत तिन देखी तैसी॥”
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shaily 2025/02/11 11:32 PM
क्या खूब लिखा है उषा जी, दिल और दिमाग़ बिल्कुल चैतन्य हो गया। हार्दिक बधाई और धन्यवाद