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कृष्ण जन्मोत्सव

 

सब तरफ़ कृष्ण के जन्मोत्सव की धूम है।
बच्चों का उत्साह तो देखते ही बनता है। 
झाँकी सजाने के सामान से दुकानें गुलज़ार हैं
कोई कामिनी के पत्तों की, 
तो कोई अशोक के पत्तों की दुकान सजाये हैं। 
करोंदों के छाड मय करोदों के दुकानों पर लटक रहे हैं, 
महिलायें बड़े चाव से
लड्डू गोपाल के साज- शृंगार का सामान 
पसंद करने में आनंदित हो रही हैं, 
एक अजीब उत्साह, 
जैसे उनके ही यहाँ लाल जन्म लेने वाला है। 
सब अपनी अपनी मस्ती के रंग में रँगे हैं। 
 
सोचती हूँ कंस के कारागार में 
वासुदेव देवकी का क्रंदन, 
क्या पहरेदारों, 
कंस का मन बदल सका? 
प्रकृति तो कान्हा के अवतरित होने के भाव में निमग्न हो रही थी। 
मेघ मल्हार गा रहे थे, 
बिजली चमक चमक कर
अँधेरी रात को नई रोशनी से भर रही थी, 
मोर, पपीहा व सभी पशु पक्षी
स्वागत गान गा रहे थे
नाच रहे थे, मन-मग्न थे
क्यों न हों—
यमुना भी कहाँ पीछे रहने वाली थी
उल्लास में भर उँचे ऊँचे पैंग बढ़ा रही थी, 
जग का पालन हार जो आ रहा था। 
कितना-कभी सोचती हूँ
कैसा सम विषम का वातावरण रहा होगा। 
दुखों के समाप्ति की आशा
नये उजालों का उजियारा
सब के मन को नई उम्मीदों का आश्वासन दे रहा था। 
कंस अनेक द्विधाओं में डूब व तैर रहा था, 
उसका काल जो आ रहा था। 
उसका आना, जन्मना, अवतरित होना
एक आशा की किरण था। 
ऐसा क्षण युग युगातंरों में ही घटित होता है, 
अद्भुत अकल्पनीय 
ऐसे पालन-हार नंद नंदन को नमन नमन नमन

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