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भेड़िया आया २१वीं सदी में

 

 

हम सब ने पंचतंत्र की यह कहानी पढ़ी व सुनी है। कहानी इस प्रकार है कि एक गड़रिये का लड़का था। वह प्रतिदिन भेड़ चराने जंगल में ले जाता था। अचानक उसे मज़ाक़ सूझा और वह चिल्लाने लगा, “भेड़िया आया, भेड़िया आया . . .” गाँव वाले उसकी पुकार सुन कर लाठी-डंडे लेकर दौड़ेते हुए आये और पूछा, “कहाँ है भेड़िया?”

वह ताली बजा बजा कर हँसता हुआ बोला, “कैसा बेवुक़ूफ़ बनाया, बड़ा मज़ा आया।” 

गाँव वाले उसे दोबारा ऐसा न करने की कड़ी हिदायत दे कर चले गये। पर अब तो उस लड़के का मसखरी करने का ये साधन बन गया। उसने जब-तब ऐसे शोर मचाना शुरू कर दिया। गाँव वाले पहले तो दो-तीन बार आये और उसे समझा कर चले गये। फिर उन्होंने उसके शोर मचाने पर जाना छोड़ दिया। एक दिन सच में भेड़िया आ गया उसकी भेड़ों को खाने लगा। उसने बहुत शोर मचाया पर भी उसकी आवाज़ सुन कर कोई नहीं आया। भेड़िया उसकी कुछ भेड़ों को खा गया। 

यह कहानी सुना कर बच्चों को मख़ौल में भी झूठ न बोलने की शिक्षा दी जाती थी। 

२१ वीं सदी में स्कूल में जब सब बच्चों को कक्षा में बारी-बारी से कहानी सुनाने के लिये खड़ा किया गया तो एक बच्चे ने ‘भेड़िया आया, भेड़िया आया’, कहानी सुनाई। टीचर ने बच्चों से पूछा कि बताओ इससे हम क्या सीखते हैं? पहले तो सब एक दूसरे का मुँह ताकने लगे फिर एक बच्चे ने साहस कर हाथ खड़ा किया। शिक्षक ने कहा, “शाबाश, खड़े होकर बताओ।” 

लड़के ने डरते-डरते कहा, “छोटे बालकों से इतने जोखिम का काम नहीं करवाना चाहिये।” 

एक दूसरे बच्चे ने भी हाथ खड़ा किया तो उसे भी इस कहानी से क्या पता चलता है बताने को कहा गया! वह बोला, “उस गाँव में भेड़ियों की समस्या से सभी दुखी थे, उस छोटे बच्चे को स्कूल भेजना चाहिए था न कि इतने ख़तरे का सामना करने अकेला भेज देना!” 

पूरी क्लास मुँह पर हाथ रख कर हँसने लगी। तभी एक हाथ और उठा, टीचर ने उससे कहा, “आप क्या कहना चाहती हैं।”

वह सिर झुकाये बोली, “शायद वह उसके असली माँ बाप नहीं थे।” 

तभी टन टन टन टन घंटा बज गया। 

विष्णु शर्मा अपनी कहानी के नये-नये अर्थ जान सिर खुजलाने लगे। 

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