भेड़िया आया २१वीं सदी में
कथा साहित्य | सांस्कृतिक कथा डॉ. उषा रानी बंसल1 Dec 2023 (अंक: 242, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
हम सब ने पंचतंत्र की यह कहानी पढ़ी व सुनी है। कहानी इस प्रकार है कि एक गड़रिये का लड़का था। वह प्रतिदिन भेड़ चराने जंगल में ले जाता था। अचानक उसे मज़ाक़ सूझा और वह चिल्लाने लगा, “भेड़िया आया, भेड़िया आया . . .” गाँव वाले उसकी पुकार सुन कर लाठी-डंडे लेकर दौड़ेते हुए आये और पूछा, “कहाँ है भेड़िया?”
वह ताली बजा बजा कर हँसता हुआ बोला, “कैसा बेवुक़ूफ़ बनाया, बड़ा मज़ा आया।”
गाँव वाले उसे दोबारा ऐसा न करने की कड़ी हिदायत दे कर चले गये। पर अब तो उस लड़के का मसखरी करने का ये साधन बन गया। उसने जब-तब ऐसे शोर मचाना शुरू कर दिया। गाँव वाले पहले तो दो-तीन बार आये और उसे समझा कर चले गये। फिर उन्होंने उसके शोर मचाने पर जाना छोड़ दिया। एक दिन सच में भेड़िया आ गया उसकी भेड़ों को खाने लगा। उसने बहुत शोर मचाया पर भी उसकी आवाज़ सुन कर कोई नहीं आया। भेड़िया उसकी कुछ भेड़ों को खा गया।
यह कहानी सुना कर बच्चों को मख़ौल में भी झूठ न बोलने की शिक्षा दी जाती थी।
२१ वीं सदी में स्कूल में जब सब बच्चों को कक्षा में बारी-बारी से कहानी सुनाने के लिये खड़ा किया गया तो एक बच्चे ने ‘भेड़िया आया, भेड़िया आया’, कहानी सुनाई। टीचर ने बच्चों से पूछा कि बताओ इससे हम क्या सीखते हैं? पहले तो सब एक दूसरे का मुँह ताकने लगे फिर एक बच्चे ने साहस कर हाथ खड़ा किया। शिक्षक ने कहा, “शाबाश, खड़े होकर बताओ।”
लड़के ने डरते-डरते कहा, “छोटे बालकों से इतने जोखिम का काम नहीं करवाना चाहिये।”
एक दूसरे बच्चे ने भी हाथ खड़ा किया तो उसे भी इस कहानी से क्या पता चलता है बताने को कहा गया! वह बोला, “उस गाँव में भेड़ियों की समस्या से सभी दुखी थे, उस छोटे बच्चे को स्कूल भेजना चाहिए था न कि इतने ख़तरे का सामना करने अकेला भेज देना!”
पूरी क्लास मुँह पर हाथ रख कर हँसने लगी। तभी एक हाथ और उठा, टीचर ने उससे कहा, “आप क्या कहना चाहती हैं।”
वह सिर झुकाये बोली, “शायद वह उसके असली माँ बाप नहीं थे।”
तभी टन टन टन टन घंटा बज गया।
विष्णु शर्मा अपनी कहानी के नये-नये अर्थ जान सिर खुजलाने लगे।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
सामाजिक आलेख
- कुछ अनुभव कुछ यादें—स्लीप ओवर
- दरिद्रता वरदान या अभिशाप
- पूरब और पश्चिम में शिक्षक का महत्त्व
- भारतीय नारी की सहभागिता का चित्रांकन!
- मीडिया के जन अदालत की ओर बढ़ते क़दम
- वर्तमान राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में भारतीय लोकतंत्र में धर्म
- सनातन धर्म शास्त्रों में स्त्री की पहचान का प्रश्न?
- समान नागरिक संहिता (ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में)
कविता
- आई बासंती बयार सखी
- आज के शहर और कल के गाँव
- आशा का सूरज
- इनके बाद
- उम्मीद का सूरज
- उलझनें ही उलझनें
- उसकी हँसी
- ऊँचा उठना
- कृष्ण जन्मोत्सव
- चित्र बनाना मेरा शौक़ है
- जाने समय कब बदलेगा
- प्रिय के प्रति
- बिम्ब
- बे मौसम बरसात
- भारत के लोगों को क्या चाहिये
- मैं और मेरी चाय
- मैसेज और हिन्दी का महल
- राम ही राम
- लहरें
- लुका छिपी पक्षियों के साथ
- वह
- वक़्त
- संतान / बच्चे
- समय का क्या कहिये
- स्वागत
- हादसे के बाद
- होने न होने का अंतर?
- होरी है……
- ज़िंदगी के पड़ाव ऐसे भी
ऐतिहासिक
- 1857 की क्रान्ति के अमर शहीद मंगल पाण्डेय
- 18वीं और 19वीं शताब्दी के दौरान भारत में उद्योग
- औपनिवेशिक भारत में पत्रकारिता और राजनीति
- पतित प्रभाकर बनाम भंगी कौन?
- भारत पर मुस्लिम आक्रमणों का एक दूसरा पक्ष
- शतरंज के खिलाड़ी के बहाने इतिहास के झरोखे से . . .
- सत्रहवीं सदी में भारत की सामाजिक दशा: यूरोपीय यात्रियों की दृष्टि में
- सोलहवीं सदी: इंग्लैंड में नारी
- स्वतंत्रता आन्दोलन में महिला प्रतिरोध की प्रतिमान: रानी लक्ष्मीबाई
सांस्कृतिक आलेख
सांस्कृतिक कथा
- इक्कसवीं सदी में कछुए और ख़रगोश की दौड़
- कलिकाल में सावित्री व सत्यवान
- क्या तुम मेरी माँ हो?
- जब मज़ाक़ बन गया अपराध
- तलवार नहीं ढाल चाहिए
- नये ज़माने में लोमड़ी और कौवा
- भेड़िया आया २१वीं सदी में
- मुल्ला नसीरुद्दीन और बेचारा पर्यटक
- राजा प्रताप भानु की रावण बनने की कथा
- रोटी क्या है?: एक क़िस्सा मुल्ला नसीरुद्दीन का
हास्य-व्यंग्य कविता
स्मृति लेख
ललित निबन्ध
कहानी
यात्रा-संस्मरण
शोध निबन्ध
रेखाचित्र
बाल साहित्य कहानी
लघुकथा
आप-बीती
यात्रा वृत्तांत
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
बच्चों के मुख से
साहित्यिक आलेख
बाल साहित्य कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं