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होने न होने का अंतर?

प्रश्न है?
होने या न होने में क्या अंतर है-
मैं सोचती थी कुछ भी नहीं,
साथ रह कर न रहना,
होना न होना शायद बराबर है।


जब तक प्रिय थे तब तक,
एक के इशारे पर दूसरे को
मदारी के बदंर सा नाचना था,
पिटारे में शिकवा गिले,
शिकायतों का पुलिंदा था।


लेकिन जब (वह) देह मुक्त हो गये
तो-
होने न होने का अतंर
दिग् दिगंत तक पसर गया।


सारे गिले-शिकवे, शिकायतें,
प्रशान्त हो गये।
अचानक लगा- हीरे को पत्थर,
मोती को ओस समझने की भूल कर बैठे।
क्या हो गया था-
अक्ल पर कैसा पत्थर पड़ा था
कि-
तिनका भी उनसे अहम लगता था,
उनका प्यार एक दिखावा,
विश्वास धोखा लगता था।
अब जब अपने ही दामन में आग लगी,
तो-
होश फ़ाख़्ता हो गये।
होने या न होने का अंतर,
मील का पत्थर बन,
ख़ुद में एक युग बन गया।

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