होली है
संस्मरण | स्मृति लेख डॉ. उषा रानी बंसल1 Apr 2022 (अंक: 202, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
आज छोटी होली है। मैं बनारस में हूँ। सब तरफ़ होलिका दहन की तैयारी है। पर्यावरण संरक्षण को दृष्टि में रख कर कुछ चौराहों पर गोबर की गोहरी, उपलों, कंडों से होलिका सजाई गई है। कहीं-कहीं बिना पूजा के रखी लकड़ी कूड़ा कबाड़ से होलिका बनी है। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के बाहर मालवीय चौराहे पर बंसत पंचमी पर होलिका रखी जाती थी, जो धीरे-धीरे इतनी विशालकाय हो जाती कि पूरा चौराहा छेक लेती थी। सारा आवागमन बाधित हो जाता था। कई बार मुझे भी इस से दो-चार होना पड़ा। पर त्यौहार है कोई सुनाई न थी। तब पत्रकारिता का नया-नया शौक़ चर्राया था, सो कई वर्ष तक प्रत्येक होली पर सम्पादक के नाम पत्र लिखती रही। फिर एक बार बाबा हरदेव सिंह नगर निगम के अधिकारी बने। बड़े तेज़ तर्रार, ईमानदार व्यक्ति थे। उन्होंने विश्वविद्यालय के बाहर लंका के बाहर अतिक्रमण (encroachment) के विरुद्ध इतनी कड़ी कार्यवाही की कि बीसयों साल से नाली, सड़क घेर कर जो दुकानें, बढ़ा ली गई थीं, वह लोगों ने अपने ख़र्चे से तुड़वा दी। उनका डर व रौब इतना था लोग सड़क पर पान थूकने से भी डरने लगे थे। मैंने उनको फ़ोन कर उनका ध्यान इस ओर आकर्षित किया। जाम की समस्या सुलझाने का उपाय भी सुझाया। उनके आदेश से होली की पूजा के बाद होलिका के लिये लकड़ी, कबाड़ वहाँ एकत्र होना बंद हो गया। अब शाम को होलिका दहन से कुछ पहले होलिका बनाई जाने लगी। फिर पर्यावरण पर, हरे पेड़ों की कटान पर सवाल उठा। तब विकल्प के रूप में होलिका वास्तविक रूप, गोबर के बने सामान से सजने लगी। चौराहे पर जाम लगना कुछ कम हुआ। मैंने एक दो लेख भी इस पर लिखे जो बहुत अधिक पढ़े जाने वाले सांध्य समाचार पत्र “गांडीव” में प्रकाशित हुए।
आज बनारस के रिवाज़ के अनुसार होली मिलने के लिये आने वालों के लिये मीठा नमकीन आदि लगाने के लिये सहेज कर रखा डिब्बा निकाला तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना न था। वह डिब्बा गांडीव के 7 मार्च 2012 के अख़बार में लपेटा गया था। यह पृष्ठ “बाल रंग होली के संग” का था। उस समय, सम्पादक जी (सुमन जी) “आज” आदि समाचारपत्रों ने बच्चों का पृष्ठ छापना बंद कर दिया था।
यही एक अख़बार था जिसमें प्रत्येक रविवार को बाल विशेषांक होता था। बच्चे बड़े चाव से इसे पढ़ते थे। समाचारपत्र जीर्ण-शीर्ण स्थिति में है, अतः उसका एक फोटो भी खींच लिया है।
उसकी कुछ कविताएँ इस प्रकार हैं:
विवेक चौबे 7 साल के बच्चे की कविता का आंनद लीजिये:
वो घुघरानी गली आ जइयो ओ बनारस वाली
झलक दिखला जा ओ बनारस वाली
तू होली खेलन आ जाइयो ओ बनारस वाली
घुघरानी गली में पड़़ गए झूले, तू आ जा बनारस वाली
तू होली खेलन आ जइयों, ओ बनारस वाली
घुघरानी गली में झूले पड़ गये
तू झूलन आ जइयो बनारस वाली
घुघरानी गली में फाग मचा है
तू खेलन आजा ओ बनारस वाली
तू होली खेलन आ जइयो ओ बनारस वाली
विवेक बजाए मधुर बाँसुरी
तू रास रचाने आ जइयो ओ बनारस वाली
तू होली खेलन आजइयो बनारस वाली
हम सब तेरी रहा निहारे
तू दर्श दिखा जइयो बनारस वाली
तू होली खेलन आ जइयो बनारस वाली है।
♦ ♦ ♦
होली आई
महक सोनी
कक्षा 6
होली आई होली आई, रंगबिरंगी होली आई
होली के दिन नाचो गाओ
चलो अभी से ख़ुशी मनाओ
होली है रंगों का मेल सब हो जाओ उसमें एक
आया है होली का मौसम
छाया है ख़ुशियों का माहौल
चलो रात दिन ख़ुशी मनाओ
रंगो से सबको ख़ूब सताओ
होली आई होली आई
♦ ♦ ♦
खेले होली
प. शशि रंजन तिवारी
कक्षा 9बी
आओ बच्चों खेले होली रंग भरी पिचकारी से
फागुन की मस्ती में झूमें, अब हमको आज़ादी
पढ़ना लिखना होमवर्क सब ख़ुशियों की बर्बादी है
होली बीतेगी पढ़ लेंगे हम पूरी तैयारी से
♦ ♦ ♦
होली में
डा. ब्रजेन्द्र त्रिवेदी
गोपाल गंज
रंग रंग के गुलाल होली में, हर चेहरा है लाल होली में
लड़के भी समान होली में, बूढ़े भी जवान होली में
रंगे गुलाबी गाल होली में
सिकस्तो का गुलजार होली में
फूल बने गुलाल होली में
बादल की बौछार होली में
जब प्रेम का मदिरा पी लोगे
आकाश भी पाताल होली में
होली तो होली ही दिखे, धरती भी आकाश होली में
चोर भी साव नज़र आता है, ये हुआ है कमाल होली में।
♦ ♦ ♦
एक निबंध
शक एक लाइलाज बीमारी
सिमरन पाण्डेय कक्षा 9
शक का मतलब होता है शंका जिसे एक लाइलाज बीमारी कहा गया है। क्योंकि एक बार किसी भी मनुष्य के दिल या दिमाग़ में किसी के लिये शंका होती है तो उसे लाख कोशिशों के बाद भी दूर नहीं किया जा सकता।
यदि लोग एक दूसरे पर भरोसा करने लगें और नकारात्मक न सोचें तो इस बीमारी से बचा जा सकता है। इसकी वजह से रिश्तों में दरार भा पड़ जाती है। इसिलिये रिश्ते में हमें भरोसे की नींव ही रखनी चाहिये। शंका करने की प्रवृत्ति औरतों में अधिक पाई जाती है।
पाठकों से अनुरोध है कि किसी के बारे में शंका हो तो जल्दी से जल्दी हटानी चाहिये।
होली है
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