साहित्य का नोबेल पुरस्कार - २०१४
आलेख | साहित्यिक आलेख शैलेन्द्र चौहान4 Feb 2019
2014 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार फ्रांस के लेखक पैट्रिक मोदियानो को दिया गया है। पैट्रिक इससे पहले ग्रैंड प्रिक्स डु रोमन डे आई एकेडमी फ्रेंकाइस, द प्रिक्स गॉनकोर्ट, द प्रिक्स मोंडियाल सीनो डेल डुका (2010) और द ऑस्ट्रेलियन स्टेट प्राइज़ फॉर यूरोपीयन लिटरेचर (2012) जैसे पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं। मोदिआनो के पिता इटली मूल के यहूदी थे। वह पेरिस में जर्मनी के कब्ज़े के दौरान बेल्जियम की अभिनेत्री से मिले थे, जिन्होंने मोडिआनो को जन्म दिया। मोदिआनो जब अपने जीवन की तीसरे दशक की शुरूआत में थे तो उन्हें अपने मित्र की माँ और फ्रांसीसी लेखिका रेमंड क्वानेयु के चलते एक बड़ी सफलता मिली और उनका परिचय गिलीमार्ड पब्लिशिंग हाउस से करवाया गया। फ्रांसीसी भाषा में उनकी 40 से अधिक कृतियाँ प्रकाशित हुई हैं। इनमें से कई अंग्रेज़ी में अनूदित हुई हैं। अंग्रेज़ी में अनूदित उनकी प्रमुख कृतियों में रिंग ऑफ रोड्स : ए नॉवेल विला ट्रिस्टे, ए ट्रेस ऑफ मेलाइस और हनीमून शामिल हैं। 1968 में पहली किताब लिखने वाले मोदियानो मुख्य रूप से इतिहास पर केंद्रित उपन्यास लिखते हैं। ''मोदियानो छोटे उपन्यास लिखते हैं। 120 या 130 पन्नों के ये उपन्यास यादों, पीछे छूट गई बातों और समय जैसे विषयों से जुड़ी होती हैं। उन्होंने बच्चों के लिए भी लिखा है लेकिन उन्हें नोबेल पुरस्कार उनके उपन्यासों के लिए दिया गया है।'
69 वर्षीय पैट्रिक मोदियानो फ्रेंच भाषा में लिखते हैं और फ्रांस में लोकप्रिय हैं। वे फ्रांस के नागरिक हैं और 11वें ऐसे फ्रांसिसी हैं, जिन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिया गया है। मोदियानो के काम याद, विस्मृति, पहचान, ग्लानि पर केंद्रित रहे हैं। ये सभी वे भावनाएँ हैं जो जर्मन कब्ज़े और दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अक्सर सामने आईं। मोदियानो के 30 साल के कामों में 'अ ट्रेस ऑफ मालीस' और 'हनीमून' शामिल हैं। उनके कुछ ही उपन्यास अंग्रेज़ी में अनूदित हैं। उनकी रचनाएँ अधिकतर द्वितीय विश्व युद्ध और 1940 के दशक पर आधारित हैं। उन्होंने युद्ध से जुड़ी स्मृतियों और इसका मानव की नियति पर पड़ने वाले प्रभावों को बखूबी उकेरा है। यह पुरस्कार उनको उनकी इसी खूबी के लिए दिया गया है। पैट्रिक का अपने बारे में कहना है कि ‘मैं एक सपना बार-बार देखता था और सपने का मूल स्वर था कि अब मेरे पास लिखने के लिए कुछ नहीं बचा है। और अब मैं मुक्त हो गया हूं। लेकिन, मुझे अहसास है कि मैं मुक्त नहीं था। विडंबना है कि आज भी मैं उसी मनःस्थिति से गुज़र रहा हूँ। और मुझे विश्वास है कि कभी मुक्त नहीं हो पाऊँगा।’पैट्रिक मोदिआनो का जन्म जुलाई 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने के दो महीने बाद पश्चिमी पेरिस के उपनगरीय क्षेत्र में हुआ था। वर्ष 1968 उनकी पहली कृति प्रकाशित हुई थी। इसके बाद फ्रांसीसी भाषा में उनकी 30 से अधिक कृतियाँ प्रकाशित हुईं। मोदिआनो के उपन्यास 'मिसिंग पर्सन' को 1978 में प्रतिष्ठित प्रिक्स गोनकोर्ट पुरस्कार मिला था। मोदियानो ने अपने कई ऐतिहासिक उपन्यासों में द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर द्वारा फ्रांस पर कब्ज़े के दौरान नाज़ियों के बर्बर अत्याचार और ऐसे माहौल में ज़िंदगी के लिए जूझते इंसान की कहानी कही है।
मोदियानो की पुस्तकों का अनुवाद स्वीडिश भाषा में काफी हुआ है और अंग्रेज़ी में भी कुछ उपन्यासों का अनुवाद हुआ है। नोबेल कमेटी ने उन्हें पुरस्कार देते हुए कहा, "जिस तरीके से उन्होंने यादों को प्रस्तुत किया है, उससे उन्होंने पकड़ी नहीं जा सकने वाले इंसानी भावनाओं को दिखाया है और जीवन को खोला है, पेशेवर दुनिया को भी।" कमेटी ने कहा कि फ्रांसीसी लेखक "हमारे समय के मार्सेल प्रोस्ट हैं।" मार्सेल प्रोस्ट फ्रांस के मशहूर उपन्यासकार थे। 'इन सर्च ऑफ लॉस्ट टाइम' नाम का उनका उपन्यास करीब चार हज़ार पेज का है और उसमें दो हज़ार से ज़्यादा चरित्र हैं।
वर्ष 1901 से अब तक 110 लोगों को साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिया गया है। जब से पुरस्कार की घोषणा हुई है, सात बार यह पुरस्कार नहीं दिया गया है। नोबेल पुरस्कार के रूप में स्वीडिश साहित्य अकादमी ने 80 लाख क्रोनर (11 लाख अमेरिकी डॉलर) की राशि मोदिआनो को दी जायेगी। पैट्रिक इससे पहले ग्रैंड प्रिक्स डु रोमन डे आई एकेडमी फ्रेंकाइस, द प्रिक्स गॉनकोर्ट, द प्रिक्स मोंडियाल सीनो डेल डुका (2010) और द ऑस्ट्रेलियन स्टेट प्राइज फॉर यूरोपीयन लिटरेचर (2012) जैसे पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं। मोदिआनो के पिता इटली मूल के यहूदी थे। वह पेरिस में जर्मनी के कब्ज़े के दौरान बेल्जियम की अभिनेत्री से मिले थे, जिन्होंने मोडिआनो को जन्म दिया। मोदिआनो जब अपने जीवन की तीसरे दशक की शुरूआत में थे तो उन्हें अपने मित्र की मां और फ्रांसीसी लेखिका रेमंड क्वानेयु के चलते एक बड़ी सफलता मिली और उनका परिचय गिलीमार्ड पब्लिशिंग हाउस से करवाया गया। फ्रांसीसी भाषा में उनकी 40 से अधिक कृतियाँ प्रकाशित हुई हैं। इनमें से कई अंग्रेजी में अनूदित हुई हैं। अंग्रेजी में अनूदित उनकी प्रमुख कृतियों में रिंग ऑफ रोड्स : ए नॉवेल विला ट्रिस्टे, ए ट्रेस ऑफ मेलाइस और हनीमून शामिल हैं। उन्होंने बाल साहित्य और फिल्मों की पटकथाएं भी लिखीं। उन्होंने 1974 में निर्देशक लुई माले के साथ फीचर फिल्म लाकोब, ल्यूसिएन बनाई थी। साथ ही वह 2000 में कान फिल्म महोत्सव के निर्णायक मंडल के सदस्य रहे।
साहित्य के नोबेल को लेकर हर साल काफी कयास लगाए जाते हैं और इस बार ब्रितानी सट्टा कंपनी लैडब्रोक्स के अनुसार अफ्रीकी लेखक नगूगी वा थियोंगो और जापानी लेखक हारुकी मुराकामी का नाम सबसे ऊपर था। हालांकि लैडब्रोक्स का सट्टा फेल हो गया और फ्रांसीसी लेखक को ये पुरस्कार मिला है।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
"लघुकथा वृत्त" का जनवरी 2019 अंक
साहित्यिक आलेख | डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानीलघुकथा के इकलौता मासिक समाचार पत्र "लघुकथा…
'सौत' से 'कफ़न' तक की कथा यात्रा - प्रेमचंद
साहित्यिक आलेख | डॉ. उमेश चन्द्र शुक्लमुंशी प्रेमचन्द का जन्म 31 जुलाई 1980 को…
21वीं शती में हिंदी उपन्यास और नारी विमर्श : श्रीमती कृष्णा अग्निहोत्री के विशेष संदर्भ में
साहित्यिक आलेख | डॉ. पद्मावतीउपन्यास आधुनिक हिंदी साहित्य का जीवंत रूप…
प्रेमचंद साहित्य में मध्यवर्गीयता की पहचान
साहित्यिक आलेख | शैलेन्द्र चौहानप्रेमचंद ने सन 1936 में अपने लेख "महाजनी…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- मारे गए हैं वे
- अतीत
- अदेह
- अवसान
- अहा!
- आगे वक़्त की कौन राह?
- इतिहास में झाँकने पर
- इतिहास में झाँकने पर
- उदासीनता
- उपसंहार
- उलाहना
- कवि-कारख़ाना
- कश्मकश
- कामना
- कृषि का गणित
- कोई दिवस
- क्रिकेट का क्रेज़
- क्षत-विक्षत
- गर्वोन्मत्त
- गीत बहुत बन जाएँगे
- चिंगारी
- छवि खो गई जो
- डुबोया मुझको होने ने मैं न होता तो क्या होता!
- तड़ित रश्मियाँ
- दलित प्रेम
- धूप रात माटी
- परिवर्तन
- बड़ी बात
- बदल गये हम
- बर्फ़
- ब्रह्म ज्ञान
- मारण मोहन उच्चाटन
- मुक्ति का रास्ता
- मृत्यु
- यह है कितने प्रकाश वर्षों की दूरी
- ये कैसा वसंत है कविवर
- रीढ़हीन
- लोकतंत्र
- वह प्रगतिशील कवि
- विकास अभी रुका तो नहीं है
- विडंबना
- विरासत
- विवश पशु
- विवशता
- शिशिर की एक सुबह
- संचार अवरोध
- समय
- समय-सांप्रदायिक
- साहित्य के चित्रगुप्त
- सूत न कपास
- स्थापित लोग
- स्थापित लोग
- स्वप्निल द्वीप
- हिंदी दिवस
- फ़िल वक़्त
साहित्यिक आलेख
- प्रेमचंद साहित्य में मध्यवर्गीयता की पहचान
- आभाओं के उस विदा-काल में
- एम. एफ. हुसैन
- ऑस्कर वाइल्ड
- कैनेडा का साहित्य
- क्या लघुपत्रिकाओं ने अब अपना चरित्र बदल लिया है?
- तलछट से निकले हुए एक महान कथाकार
- भारतीय संस्कृति की गहरी समझ
- ये बच्चा कैसा बच्चा है!
- संवेदना ही कविता का मूल तत्त्व है
- सामाजिक यथार्थ के अनूठे व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई
- साहित्य का नोबेल पुरस्कार - २०१४
- हिंदी की आलोचना परंपरा
सामाजिक आलेख
पुस्तक चर्चा
पुस्तक समीक्षा
ऐतिहासिक
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
आप-बीती
यात्रा-संस्मरण
स्मृति लेख
- एक यात्रा हरिपाल त्यागी के साथ
- यायावर मैं – 001: घुमक्कड़ी
- यायावर मैं – 002: दुस्साहस
- यायावर मैं–003: भ्रमण-प्रशिक्षण
- यायावर मैं–004: एक इलाहबाद मेरे भीतर
- यायावर मैं–005: धड़कन
- यायावर मैं–006: सृजन संवाद
- यायावर मैं–007: स्थानांतरण
- यायावर मैं–008: ‘धरती’ पत्रिका का ‘शील’ विशेषांक
- यायावर मैं–009: कुछ यूँ भी
- यायावर मैं–010: मराठवाड़ा की महक
- यायावर मैं–011: ठहरा हुआ शहर
कहानी
काम की बात
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं