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यायावर मैं–003: भ्रमण-प्रशिक्षण

मुझे हिमालय ने सदैव आकर्षित किया है और उन पर्यटक स्थलों ने भी जिनकी ख्याति और विकास अँग्रेज़ों के पहाड़ प्रेम के चलते रही जिसमें ठंडे मौसम की चाहत स्वतः छुपी हुई थी। बचपन से लेकर युवावस्था तक हमारी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि गर्मियों में हिलस्टेशन घूमने का लुत्फ़ लिया जा सके। अलबत्ता साहित्यिक रुचि और मन दोनों इतने सक्षम रहे कि मैं सदैव देश ही नहीं विदेश के भी पहाड़ी और समुद्री स्थलों की मनमाफ़िक सैर करता रहा। ‘तुम तुंग हिमालय-शृंग मैं चंचल गति सुर-सरिता . . . ’। छायावाद के शिखर निराला, प्रसाद और पंत हृदय के बहुत निकट थे। 

हिमालय का प्रथम दर्शन बीस वर्ष की उम्र में कुछ इस तरह हुआ कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान एजुकेशनल इंडस्ट्री टूर में जाना हुआ। जैसे-तैसे पैसों की व्यवस्था हो सकी। सहपाठी मनोबल बढ़ाने वाले ठहरे। टूर था दिल्‍ली और आसपास की बिजली वाली इंडस्ट्रीज़, हरियाणा, पंजाब और भाखड़ा नंगल जल विद्युत केंद्र। विदिशा से शाम को ट्रेन में बैठे सुबह दिल्‍ली पहुँच गए। पहाड़गंज की तरफ़ उतरे। प्लैटफ़ॉर्म पर फ़्रेश हुए। हमारे साथ थे हमारे प्रिय प्रोफ़ेसर एस के पुरोहित जो हमें इलेक्ट्रिकल पॉवर जेनरेशन पढ़ाते थे। उन्हें सुनाई नहीं देता था पर हम क्या बोल रहे हैं वह हमारे होंठों की क्रिया देखकर अच्‍छी तरह समझ लेते थे। वह दो-एक लड़कों के साथ हमारे ठहरने के लिए धर्मशाला देखने चले गए। लौटकर आए तो हम लोग उनके साथ चले और सिटी बस पकड़कर करोल बाग़ के आसपास कहीं पहुँच गए। ठीक से याद नहीं है। वहाँ बाहर कुछ नाश्ता करके टूर के लिए निकल पड़े। दिल्‍ली मैं दूसरी बार आया था। पहली बार सन्‌ 1972 में एशिया 72 मेला देखने अपने प्रथम वर्ष के सहपाठियों के साथ। बहरहाल दो दिन दिल्ली में रुके। एक दिन बदरपुर पॉवर प्लांट और फरीदाबाद की बिजली के सामान बनाने वाली फ़ैक्ट्री देखीं दूसरे दिन नारायणा इंडस्ट्रियल एरिया वाली। उसके बाद रात की ट्रेन से हम भाखड़ा के लिए रवाना हुए। रात तो रास्ता पता नहीं चला पर सुबह पंजाब का रुपहला सूरज दिखाई दिया। ट्रेन ख़ाली जैसी ही थी। थोड़े ही यात्री थे। उनकी पंजाबी सुनकर आंनद आ रहा था। कुछ समय बाद हम नंगल डैम स्टेशन पहुँच गए। और उसके बाद डैम तथा पॉवर प्लांट। बहुत अच्छा लग रहा था। तकनीकी पक्ष के अतिरिक्त भौगोलिक ज्ञान और प्राकृतिक सुषमा। हिमालय के छूने का सुख और उत्तेजना। ये फ़ुट हिल्स थीं। शाम की ट्रेन से अम्बाला होते हुए सुबह हम चंडीगढ़ पहुँच गए। वहाँ पंचायती भवन धर्मशाला में दो दिन ठहरे। आसपास की पंजाब की औद्योगिक इकाइयाँ देखीं। तीसरे दिन अधिकतर सहपाठी शिमला चले गए। मैं अपने मित्र चंदर प्रकाश कुमार जो वहीं का रहने वाला था उसके घर पर ठहर गया। अतिरिक्त पैसे नहीं थे मेरे पास। वह फिजिक्स से एमएससी करके इंजीनियरिंग में पढ़ने आया था। यद्यपि शिमला न देख पाने का एक मलाल रहा। लेकिन अभी तो प्रारंभ था। भविष्य तो बहुत संभावनाएँ लिए हुए था। अगले दिन वाया दिल्‍ली हम विदिशा लौट लिए। 

— क्रमशः

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