मेघालय की जनजातीय संस्कृति
आलेख | सामाजिक आलेख शैलेन्द्र चौहान15 Oct 2023 (अंक: 239, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
मेघालय में विश्व की सबसे बड़ी जीवित मातृवंशीय संस्कृति प्रचलन में है। मेघालय के अधिकांश लोग और प्रधान जनजातियाँ मातृवंशीय प्रणाली का अनुसरण करते हैं, जहाँ विरासत और वंश महिलाओं के साथ चलता है। कनिष्ठतम पुत्री को ही सारी सम्पत्ति मिलती है और वही बुज़ुर्ग माता-पिता और किसी भी अविवाहित भाई-बहन की देखभाल भी किया करती है। कुछ मामलों में, जहाँ परिवार में कोई बेटी नहीं है या अन्य कारणों से, माता-पिता किसी और बेटी को नामांकित कर सकते हैं जैसे कि अपनी पुत्रवधू को, और घर के उत्तराधिकार और अन्य सभी सम्पत्तियों का अधिकार उसे ही मिलता है। ख़ासी और जयन्तिया जनजाति के लोग पारम्परिक मातृवंशीय प्रणाली का पालन करते जिसमें खुन खटदुह (अर्थात् कनिष्ठतम पुत्री) घर की सारी सम्पत्ति की अधिकारी एवं वृद्ध माता-पिता की देखभाल की उत्तरदायी होती है। हालाँकि पुरुष वर्ग, विशेषकर मामा इस सम्पत्ति पर परोक्ष रूप से पकड़ बनाए रहते हैं, क्योंकि वे इस सम्पत्ति के फेरबदल, क्रय-विक्रय आदि के सम्बन्ध में लिये जाने वाले महत्त्वपूर्ण निर्णयों में सम्मिलित होते हैं। परिवार में कोई पुत्री न होने की स्थिति में ख़ासी और जयन्तिया (जिन्हें सिण्टेंग भी कहा जाता है) आइया रैप आइङ्ग का रिवाज़ होता है, जिसमें परिवार किसी अन्य परिवार की कन्या को दत्तक बना कर अपना लेता है, और इस तरह वह का ट्राई आइङ्ग (परिवार की मुखिया) बन जाती है। इस अवसर पर पूरे समुदाय में धार्मिक अनुष्ठान होते हैं व उत्सव मनाया जाता है। गारो वंश प्रणाली में, सबसे छोटी पुत्री को स्वतः रूप से परिवार की सम्पत्ति विरासत में मिलती है, यदि एक और पुत्री का नाम माता-पिता द्वारा नहीं निर्धारित किया जाता है। उसके बाद उसे नोकना, अर्थात् “घर के लिए” नामित किया जाता है। यदि किसी परिवार में कोई बेटियाँ नहीं हैं, तो चुनी हुई पुत्रवधू (बोहारी) या एक दत्तक पुत्री (डरागता) को घर में रखते हैं और उसे ही गृह सम्पत्ति मिल जाती है।
तीनों प्रधान जनजातियाँ, ख़ासी, गारो एवं जयन्तिया समुदायों के अपने अपने पारम्परिक राजनीतिक संस्थान हैं जो सैंकड़ों वर्षों से चलते चले आ रहे हैं। ये राजनीतिक संस्थान गाँव स्तर, क़बीले स्तर और राज्य स्तर जैसे विभिन्न स्तरों पर काफ़ी विकसित और कार्यरत हैं। खासियों की पारम्परिक राजनीतिक प्रणाली में प्रत्येक कुल या वंश की अपनी स्वयं की परिषद होती है जिसे दोरबार कुर कहते हैं और यह वंश के मुखिया की अध्यक्षता में संचालित होती है। यह परिषद या दोरबार वंश के आंतरिक मामलों की देख रेख करती है। इसी प्रकार प्रत्येक ग्राम की एक स्थानीय सभा होती है जिसे दोरबार श्वोंग कहते हैं, अर्थात् ग्राम परिषद। इसका संचालन भी ग्राम मुखिया कीअध्यक्षता में होता है। अन्तर-ग्राम मुद्दों पर निकटवर्ती ग्राम के लोगों से गठित एक राजनीतिक इकाई निर्णय लेती है। स्थानीय राजनीतिक इकाइयाँ रेड्स कहलाती हैं और ये सर्वोच्च राजनीतिक संस्थान साइमशिप के अधीन कार्य करती हैं। ये साइमशिप बहुत सी रेड्स का संघ होती है और इनका साईम या सीईएम (राजा) के नाम से जाना जाने वाला एक निर्वाचित प्रमुख होता है। साइमम ने एक निर्वाचित राज्य विधानसभा के माध्यम से ख़ासी राज्य पर शासन करते हैं जिसे दरबार हिमा के नाम से जाना जाता है। सीईएम के पास उनके मंत्रियों से गठित एक मंत्रिमण्डल होता है जिनकी राय व सलाह से वह अपनी कार्यपालक का उत्तरदायित्त्व पूर्ण करता है। इनके राज्य में कर एवं चुंगियाँ भी वसूली जाती हैं और करों को पिनसुक तथा टोल को क्रोंग कहा जाता था। क्रोंग राज्य का प्रधान आय स्रोत हुआ करती हैं। 20वीं शताब्दी के आरम्भ में राजा दखोर सिंह यहाँ का साइम हुआ करता था।
ख़ासी समुदाय:
नृत्य ख़ासी जीवन की संस्कृति का मुख्य रिवाज़ है, और राइट्स आफ़ पैसेज का एक भाग भी है। नृत्यों का आयोजन श्नोंग (ग्राम), रेड्स (ग्राम समूह) और हिमा (रेड्स का समूह) में किया जाता है। इनके उत्सवों में से कुछ हैं: का शाद सुक माइनसिएम, का पोम-ब्लांग नोंगक्रेम, का शाद शाङ्गवियांग, का-शाद काइनजो खास्केन, का बाम खाना श्नोंग, उमसान नोंग खराई और शाद बेह सियर आदि।
जयन्तिया समुदाय:
जयन्तिया हिल्स के लोगों के उत्सव अज्ञ जनजातियों की ही भाँति उनके जीवन व संस्कृति का अभिन्न अंग हैं। ये प्रकृति और अपने लोगों के बीच सन्तुलन एवं एकजुटता को मनाते हैं। जयन्तिया लोगों के उत्सवों में से कुछ हैं: बेहदियेनख्लाम, लाहो नृत्य एवं बुआई का त्योहार।
गारो समुदाय:
गारो लोगों के लिये उत्सव उनके सांस्कृतिक विरासत का भाग हैं। ये अपने धार्मिक अवसरों, प्रकृति और मौसम और साथ ही सामुदायिक घटनाएँ जैसे झूम कृषि अवसरों को मनाते हैं। गारों समुदाय के प्रमुख त्योहारों में डेन बिल्सिया, वङ्गाला, रोंगचू गाला, माइ अमुआ, मङ्गोना, ग्रेण्डिक बा, जमाङ्ग सिआ, जा मेगापा, सा सट रा चाका, अजेयोर अहोएया, डोरे राटा नृउत्य, चेम्बिल मेसारा, डो'क्रुसुआ, सराम चा'आ और ए से मेनिया या टाटा हैं जिन्हें ये बड़ी चाहत से मनाया करते हैं।
हैजोंग समुदाय:
हैजोंग लोग अपने पारम्परिक त्योहारों के साथ साथ हिन्दू त्योहार भी मनाते हैं। गारो पर्वत की पूरी समतल भूमि में हैजोंग लोगों का निवास है, ये कृषक जनजाति हैं। इनके प्रमुख पारम्परिक उत्सवों में पुस्ने, बिस्वे, काटी गासा, बास्तु पुजे और चोर मगा आते हैं।
बियाट समुदाय:
बियाट लोगों के अनेक प्रकार के त्योहार एवं उत्सव होते हैं; नल्डिंग कूट, पम्चार कूट, लेबाङ्ग कूट, फ़वाङ्ग कूट, आदि। हालाँकि अपने भूतकाल की भाँति अब ये नल्डिंग कूट के अलावा इनमें से कोई त्योहार अब नहीं मनाते हैं। नल्डिंग कूट (जीवन का नवीकरण) हर वर्ष जनवरी के माह में आता है और तब ये लोग गायन, नृत्य और पारम्परिक खेल आदि खेलते हैं। इनका पुजारी-थियांपु चुङ्ग पाठियान नामक देवता की अर्चना कर के उससे इनकी ख़ुशहाली एवं समृद्धि को इनके जीवन के हर पहलू में भर देने की प्रार्थना करता है।
दक्षिण मेघालय में मावसिनराम के निकट मावजिम्बुइन गुफाएँ हैं। यहाँ गुफा की छत से टपकते हुए जल में मिले चूने के जमाव से प्राकृतिकबना हुआ एक शिवलिंग है। 13वीं शताब्दी से चली आ रही मान्यता अनुसार यह हाटकेश्वर नामक शिवलिंग जयन्तिया पर्वत की गुफा में रानी सिंगा के समय से चला आ रहा है। जयन्तिया जनजाति के दसियों हज़ार सदस्य प्रत्येक वर्ष यहाँ हिन्दू त्योहार शिवरात्रि में भाग लेते हैं एवं ज़ोर-शोर से मनाते हैं।
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