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प्रार्थना के शिल्प में एक अदद विडंबना 

पंडित सियाराम उपाध्याय आज इतने ख़ुश होते भये कि घर पधार कर जिजमान को प्रसाद देकर गए। मैंने कहा “पंडित जी आप की तो मौज ही मौज है, पाँचों उँगलियाँ घी में हैं आजकल।” 

वह बोले “जिजमान उँगलियाँ तो घी में हैं ही, सर भी कढ़ाही में है। सब मोदी जी का चमत्कार है, अब देश ठीक चल रहा है।” 

मैंने पूछा, “देश कैसे ठीक चल रहा है पंडित जी, कुछ बताएँ?” 

“जिजमान, गोवध पर प्रतिबंध लग गया है, धर्म की रक्षा हो रही है।” 

“पर उससे क्या होगा?” 

पंड़ित जी कहे, “हिंदू संस्कृति बची रहेगी। गोरक्षा ही हिंदू संस्कृति है, गोवध म्लेच्छों का काम है। हवन-पूजन, दान-दक्षिणा, नियम-धरम सब हिंदू संस्कृति के ही अंग हैं।” 

मैंने कहा, “सत्य वचन महाराज, पर क्या गोमाता की रक्षा मात्र से ही हिंदू संस्कृति बची रहेगी?” 

“जिजमान, अयोध्या में मंदिर बन रहा है। काशी में विकास हो रहा है। ज्ञानवापी शृंगार गौरी मंदिर में पूजन की अनुमति न्यायालय से मिल गई है। मुसलमानों की याचिका ख़ारिज हो गई है। कृष्ण भगवान की कृपा रही तो मथुरा का मामला भी हमारे पक्ष में होगा।” 

“पंडित जी, यह सब तो ठीक है पर देश में और भी बहुत सी समस्याएँ हैं; बेरोज़गारी है, अपराध हैं, भ्रष्टाचार है, शिक्षा महँगी हो गई है, दवाइयाँ और इलाज महँगा हो गया है। पेट्रोल-डीज़ल की क़ीमतें शतक मार रही हैं। रसोई गैस के दाम आसमान छू रहे हैं। महँगाई की मार से ग़रीब और मध्यम वर्ग प्रभावित है। अब कोई एक दो समस्याएँ हों तो गिनाऊँ, समस्याओं का तो अंबार लगा है।” 

मेरी बात सुनकर पंडित जी थोड़े पसोपेश में दिखे, कुछ सोचते हुए बोले, “ये सब समस्याएँ तो सनातन हैं, सदा से रही हैं और सदा ही रहेंगी, इसमें सरकार क्या करेगी? मोदी जी ईमानदार आदमी हैं, कोई घर-परिवार नहीं है। काँग्रेसियों जैसे भ्रष्ट नहीं हैं वह। वहाँ तो परिवारवाद है। आज़ादी के वक़्त काँग्रेसियों ने तो देश का बँटवारा ही करा दिया।” पंडित जी चूँकि बहुत ही प्रसन्न मुद्रा में थे सो अपनी धोती की लाँग खींच कर आराम से सोफ़े की एक कुर्सी में धँस गए। आज ही यू पी के चुनाव परिणाम आए थे सो पंडित जी की ख़ुशी का कारण भी स्पष्ट था, उन्होंने अपना आनन्ददायी वार्तालाप आगे जारी रखा। वे बोले, “अब श्री राम जी की कृपा रही तो मंदिर भी शीघ्र बन जाएगा।”

“यह मुद्दा तो अब पीछे छूट गया। कश्मीर से धारा 370 समाप्त समाप्त हुए भी तीन वर्ष हो गए। पाकिस्तान का राग भी धीमा है। चीन से बातचीत भी कोरी औपचारिकता है। इस समय तो बस हर राज्य में चुनाव जीतना ही एकमात्र उद्देश्य है। 2023 की वापसी की तैयारी ज़ोरों पर है। अब बताएँ आगे और क्या होगा?” 

पंडित जी थोड़े असमंजस में पड़ गए कि आख़िर मैं कैसी बातें कर रहा हूँ! सो बात को थोड़ा-सा ट्विस्ट देते हुए बोले, “रावण बहुत बड़ा विद्वान था, पराक्रमी था और स्वर्ण की लंका का राजा भी था। उसके पास स्वर्ग तक पहुँचने की नसैनी भी थी। शंकर जी का वरदान प्राप्त होने पर भी पराजित रहा न। काँग्रेसियों ने तो इस्लाम को बढ़ाने की प्रतिज्ञा साध रखी है। ये सपा, राजद सब मुस्लिम समर्थक हैं। सब तुष्टिकरण में ही लगे रहते हैं लेकिन योगी जी सबको कस के रखते हैं। अब देखें न आतंकवाद पूरी तरह क़ाबू में है। कांग्रेस के राज में तो संसद तक पर हमला बोल दिया था। राम जी की किरपा रही तो आगे सब ठीक ही होगा। उनकी मर्ज़ी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता।” 

“तो इसका मतलब यह हुआ कि संसद पर हमला भी राम जी की ही मर्ज़ी से हुआ, तब तो आतंकवाद भी रामजी की कृपा से ही बढ़ रहा होगा।”

“हें . . . हें . . . जिजमान आप तो दिल्लगी कर रहे हैं, भला भगवान भी कहीं हत्या, खूनख़राबा करते हैं, यह सब तो मूर्ख मनुष्यों का ही काम है। भगवान तो बहुत दयालु हैं। सब कुछ उसी परम पुरुष की माया है, वही परम पिता परमात्मा है। गुसाईं जी कह गए हैं; जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी। हरि ओम नारायण, जय शंकर, जय श्री राम।” 

इसके बाद पंडित जी ने धर्म चर्चा बंद कर दी और मुझे प्रश्न करने का मौक़ा दिए बग़ैर शीघ्रातिशीघ्र उन्होंने विषय परिवर्तन करते हुए यूँ कहना शुरू किया, “जिजमान आप पढ़े-लिखे समझदार व्यक्ति हैं। भगवान की किरपा से बड़े पद पर सुशोभित भी हैं। मैं आपका बहुत सम्मान करता हूँ, आप भले इंसान हैं, अच्‍छे परिवार से हैं। आप दिन-दूनी, रात-चौगुनी तरक़्क़ी करें, मैं यही भगवान से प्रार्थना करता हूँ। अब आपसे मैं इतना निवेदन तो कर ही सकता हूँ कि मेरे छोटे पुत्र को कहीं नौकरी में अटका दें। इसी वर्ष उसने बारहवीं पास की है। हमेशा आपकी सेवा में रहेगा, आपका छोटा अनुज ही हुआ। बस आप इस बात का थोड़ा ख़्याल अवश्य रखें।” 

राजनीति और धर्म के बाद तुरंत इस क्षेपक परिवर्तन से मैं थोड़ा चौंका, मैं तो आगे बिलकीस बानो के बहाने 2002 में गुजरात के नरसंहार को लेकर भगवान के दयालु न रहे होने का रहस्य जानना चाहता था। पर पंडित जी ने अवसर ही नहीं दिया। उनको अधिक छेड़ना मैंने उचित नहीं समझा अत: प्रकृतिस्थ होकर पंडित जी से कहा, “छोटे ने जब बारहवीं कर ही ली है तो अब उसे बी.ए. भी करा ही दीजिए। आजकल बारहवीं पास करने के बाद कहाँ नौकरी मिलती है। एक चपरासी के पद के लिए लाखों लोग एप्लाई करते हैं जिनमें हज़ारों एम.ए., एम.एससी., पीएच.डी., बी.टेक., एमबीए, एल एल बी होते हैं। सरकारी नौकरियों में तो वैसे ही अब कहीं अवसर नहीं रह गए हैं।” 

पंडित जी पुन: अनुनय की मुद्रा में आ गए, “बोले जान-पहचान से सब काम होते ही हैं। आप चाहें तो अवश्य ही कुछ न कुछ कर सकते हैं। कहीं क्लर्की में लग सके तो अच्छा रहे, नहीं तो फोर्थ क्लास में ही प्रयत्न करें। आजकल तो जिजमान कुछ ले-देकर भी काम निकल जाए तो ठीक रहता है। लाख-दो लाख की दान-दक्षिणा भी चल जाए तो मैं तैयार हूँ। आप इस विषय में अवश्य ही मुझ पर उपकार कर सकते हैं।” 

मैंने कहा, “पंडित जी यह लेन-देन का काम तो मैं नहीं कर सकता। मेरे विचार से अभी पढ़ने दें छोटे को, अगर कहीं कोई सम्भावना दिखेगी तो मैं अवश्य ही आप के लिए कुछ करूँगा।” 

पंडित जी पूरे आश्वस्त तो नहीं ही हुए पर पूरी तरह निराश भी न दिखे, वे ठाकुर जी के सामने प्रार्थना के शिल्प में मूर्तिमान हो रहे थे। 

अब सोफ़े पर वे याचक की मुद्रा में थे। संकोच में दबे हुए दोनों हाथ उदर के नीचे के भाग पर महावीर और बुद्ध की मुद्रा में रखकर थोड़ा आगे की ओर झुक गए थे। पुन: उन्होंने याचना की—कुछ तो अवश्य करें जिजमा द्विज, आप का ही भरोसा है। 

मैंने कहा, “पंडित जी, द्विज तो आप ही हैं, आपकी सरकार है। प्रति वर्ष दो करोड़ नौकरियों की बात की थी, अब भी यदि नौकरी के अवसर ये लोग सृजित करें, रिक्तियाँ निकालें, बेरोज़गारी मिटाने के प्रयत्न करें तो आम आदमी को भी कुछ राहत मिले।” 

पंडित जी के चेहरे पर मलिनता के लक्षण स्पष्ट झलकने लगे, बोले, “कहाँ जिजमान, कोई भी सरकार आए, ग़रीबों की कौन सुनता है?” 

“लेकिन मोदी जी तो बहुत अच्छे आदमी हैं, आप ही तो बता रहे हैं। तब वे कुछ न कुछ अवश्य ही करेंगे,” मैंने कहा। “उनसे बहुत उम्मीदें हैं हम निम्न मध्यमवर्गीय सवर्ण हिंदुओं को। हमारी भलाई के लिए आख़िर कुछ तो करना ही चाहिए उन्हें! हाँ याद आया, आपके पड़ोस में जो विजयवर्गीय जी रहते हैं बजरंग दल वाले, वे तो बड़े प्रभावशाली व्यक्ति हैं शायद वे आपकी कुछ मदद कर सकें।” 

पंडित जी का चेहरा एकदम निस्तेज हो गया, धीरे से बोले, “वे तो हमें बेघर करने पर तुले हैं। मेरे बड़े लड़के को उन्होंने बड़ी बेरहमी से पिटवाया था बिना किसी ग़लती के होली पर।” 

“यह तो बड़ी ख़राब बात है, हिंदू होकर ब्राह्मण पर अत्याचार। चलो फिर भी यह मामला तो उन्हें समझा-बुझा के भी सुलझाया जा सकता है। आख़िर पड़ोसी ही हैं कोई दुश्मन नहीं हैं। मुख्य बात यह है कि आगे वे कोई काम शायद दिलवा सकें, चाहे कुछ दिनों के लिए ही सही। अगले वर्ष चुनाव भी तो होने हैं। आख़िर वे प्रभावशाली लोगों में से हैं, उन्हें आगे के कार्यक्रम और योजनाओं की पूरी जानकारी होगी। फिर आप तो ब्राह्मण भी ठहरे। धर्म, जाति, संप्रदाय सभी में उत्तम। आगे हिंदू राष्ट्र बनाना है तो हिंदुओं की आजीविका का भी कुछ ध्यान तो रखना ही होगा।” 

पंडित जी अब निराशा की ओर अग्रसर हो रहे थे, आवेश में आकर बोले, “वे लोग बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, हिंदुओं की रक्षा की, संस्कृति की रक्षा की, मंदिर निर्माण की, गोवध रोकने की, लेकिन विडंबना यह है कि हमें तो अपनी समस्या ख़ुद ही सुलझानी होती है। हम ग़रीबों का कहीं कोई नहीं है। आप ठीक कह रहे थे जिजमान उन्हें तो आभासी राष्ट्रवाद और चुनाव दो ही चीज़ों की चिंता है।” 

पंडित जी उठे और उन्होंने दोनों हाथ जोड़ दिए, बोले, “जिजमान ध्यान रखिएगा, आप ही का भरोसा है।” यह कहकर वे अनमने भाव से चलते भये। 

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