ब्रह्म ज्ञान
काव्य साहित्य | कविता शैलेन्द्र चौहान15 Feb 2022 (अंक: 199, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
1.
बुद्धुत्व बहुत बड़ी नियामत होती है
रहा जा सकता है प्नसन्न
हर स्थिति में
ज्ञानियों के बीच बैठकर भी
हँसा जा सकता है अपनी
बुद्धिहीनता पर।
2.
विद्वत सभा में बुद्धू की तरह बैठने पर
खुलने लगती हैं सहस्त्रों खिड़कियाँ
धीरे धीरे हो जाती हैं बंद
पहुँच जाते हैं आप एक खोह में
जहाँ आक्सीजन होती है अल्प
अंदर गुनगुनाता है एक प्रेत
सकल पदारथ हैं जग माहीं . . .
3.
अधकचरापन
आत्मविश्वास के साथ उत्पन्न करता है अजब रसायन
मंच पर चढ़कर बहुत देर तक आप प्रमाणित करते हैं
अपनी विद्वता
पूरा ज्ञान तो गौतम को भी कब प्राप्त हो सका
राजपाट त्यागकर बन बैठे बुद्ध
भलीभाँति कर सकते थे जनसेवा
बैठकर स्वर्ण सिंहासन पर
जीवन पर्यंत।
4.
मैं भी चाहता था
कि बनूँ किसी ब्रह्मराक्षस का
सजल उर शिष्य
लेकिन ब्रह्मराक्षस की शर्त थी
कि गुरुदक्षिणा में
'सजल उर' देना होगा दान
शेष जो बचेगा
मेरी दक्षता का अतुल्य प्रमाण होगा
मैं भयभीत हुआ
अब मेरा सजल उर मेरे पास है
दक्षता औरों के पास।
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