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पर्यावरण

 

2012 से अब तक 2, 000 से अधिक पर्यावरण संरक्षकों ने अपनी जान गँवायी: ग्लोबल विटनेस रिपोर्ट

 

ग्लोबल विटनेस की एक नई रिपोर्ट के अनुसार विश्व भर में, 2012 से अब तक कुल 2,106 लोगों ने पर्यावरण संरक्षण के लिए अपनी जान गँवायी है। अकेले 2023 में, कम से कम 196 पर्यावरण रक्षक अपने घरों या अपने समुदायों की रक्षा करने के लिए संघर्ष करते हुए मारे गए। इनमें भारत दसवें नंबर पर है। यह चिंताजनक आँकड़ा पर्यावरण और भूमि अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने वालों के ख़िलाफ़ हिंसा के वैश्विक संकट को रेखांकित करता है। 

कोलंबिया लगातार दूसरे साल डिफेंडर्स के लिए सबसे घातक देश बनकर उभरा है। 2023 में, वहाँ रिकॉर्ड 79 डिफेंडर्स मारे गए—ग्लोबल विटनेस द्वारा दर्ज किए गए एक साल में किसी भी अन्य देश से ज़्यादा। 2012 से, कोलंबिया में 461 ऐसी हत्याएँ हुई हैं, जो किसी भी देश से ज़्यादा है। 

कोलंबिया के बाद ब्राज़ील में 25 लोगों की मौत हुई, जबकि मैक्सिको और होंडुरास में 18-18 सुरक्षाकर्मियों की जान गयी। मध्य अमेरिका, विशेष रूप से, कार्यकर्ताओं के लिए सबसे ख़तरनाक क्षेत्रों में से एक बन गया है, जहाँ पिछले वर्ष प्रति व्यक्ति हत्याओं की संख्या सबसे अधिक होंडुरास में रही। 

ग्लोबल विटनेस के आँकड़ों से पता चलता है कि संगठित अपराध समूहों और भूमि अतिक्रमणकारियों द्वारा हत्या किए जाने के कारण 2022 में हर दूसरे दिन एक पर्यावरण रक्षक की हत्या की गई। कोलंबिया सबसे घातक देश था, जहाँ 60 हत्याएँ दर्ज की गईं। 

आँकड़ों में जनजातीय समुदायों को कहीं अधिक अनुपात में टारगेट किया गया, जो दुनिया की आबादी का लगभग 5% प्रतिनिधित्व करने के बावजूद सभी हत्याओं का 34% हिस्सा है। ग्लोबल विटनेस के अनुसार, नए आँकड़ों का मतलब है कि 2012 और 2022 के बीच कम से कम 1,910 पर्यावरण रक्षकों की हत्या की गई है, जिनमें से अधिकांश हत्याओं के लिए कोई सज़ा नहीं दी गई। 

2022 में कोलंबिया के बाद ब्राज़ील, मैक्सिको, होंडुरास और फिलीपींस सबसे ज़्यादा जानलेवा देश थे। सभी जानलेवा हमलों में से लगभग 88% लैटिन अमेरिका में दर्ज किए गए, जिसमें जुलाई में ब्राज़ील के कार्यकर्ता ब्रूनो परेरा और पत्रकार डोम फिलिप्स की हत्याएँ भी शामिल हैं। 

यद्यपि ये आँकड़े 2021 में दर्ज 200 हत्याओं से कम हैं, लेकिन अभी भी उच्च हैं, जिससे ग्लोबल विटनेस ने 
जलवायु-महत्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्रों के पर्यावरण रक्षकों के लिए विशेष सुरक्षा की माँग की है। 
रिपोर्ट में हिंसा के लिए लैटिन अमेरिका, एशिया और अफ़्रीका में संसाधनों की होड़ को ज़िम्मेदार बताया गया है, जिसमें इलेक्ट्रिक कारों और पवन टर्बाइनों के उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले दुर्लभ खनिजों का निष्कर्षण भी शामिल है। 

ग्लोबल विटनेस में अभियान की सह-निदेशक श्रुति सुरेश ने कहा, “बहुत लंबे समय से, रक्षकों के ख़िलाफ़ घातक हमलों के लिए ज़िम्मेदार लोग हत्या के आरोप से बचते आ रहे हैं।”

“गैर-ज़िम्मेदार कॉर्पोरेट और सरकारी कार्रवाइयों से ख़तरे के बावजूद, लोगों का यह वैश्विक आंदोलन, अपने घरों और समुदायों की रक्षा के लिए दृढ़ संकल्प और प्रतिबद्धता से एकजुट होकर, मज़बूती से खड़ा है—और उन्हें चुप नहीं कराया जा सकता और न ही चुप कराया जाएगा।”

ग्लोबल विटनेस द्वारा पिछले 11 वर्षों से हर साल यह रिपोर्ट तैयार की जाती है, जो सरकारों से आग्रह करती है कि वे अपनी भूमि और पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करने की कोशिश कर रहे लोगों के लिए सुरक्षित वातावरण बनाने के लिए मौजूदा क़ानूनों को लागू करें। इसने व्यवसायों से यह सुनिश्चित करने का आह्वान किया कि उनकी आपूर्ति शृंखलाएँ और गतिविधियाँ हिंसा को बढ़ावा देने में शामिल न हों। 

दुनिया भर में हमलों की कम रिपोर्टिंग का मतलब है कि ये आँकड़े संभवतः कम आँके गए हैं, ख़ासकर अफ़्रीका और एशिया के लिए। ग्लोबल विटनेस ने कहा कि पर्यावरण रक्षकों को चुप कराने के लिए गैर-घातक हमले शायद कहीं ज़्यादा थे, लेकिन उन्हें रिकॉर्ड करना मुश्किल था। 

रिपोर्ट पर सलाह देने वाली वन प्रशासन विशेषज्ञ लॉरा फ्यूरोन्स ने विशेष रूप से चिंता का कारण जनजातीय समुदायों (स्वदेशी जिन्हें एबाॅर्जिनल कहा जाता है) पर हमलों को बताया। 

उन्होंने कहा, “शोध से बार-बार पता चला है कि आदिवासी लोग जंगलों के सबसे अच्छे संरक्षक हैं और इसलिए जलवायु संकट को कम करने में एक मौलिक भूमिका निभाते हैं। फिर भी ब्राज़ील, पेरू और वेनेज़ुएला जैसे देशों में उन्हें ठीक यही करने के लिए घेरा जा रहा है।

“यदि हमें जंगलों को बचाए रखना है, तो हमें यह समझना होगा कि यह उन लोगों की सुरक्षा पर निर्भर करता है जो जंगलों को अपना घर कहते हैं।”

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