भारत का स्वाधीनता संग्राम और क्रांतिकारी
समीक्षा | पुस्तक समीक्षा शैलेन्द्र चौहान15 Jun 2024 (अंक: 255, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
समीक्षित पुस्तक: भारत का स्वाधीनता संग्राम और क्रांतिकारी (शोधपरक ग्रंथ)
लेखक: शैलेन्द्र चौहान
प्रकाशक: मंथन प्रकाशन, जयपुर
प्रथम संस्करण: 2023
मूल्य: ₹400/-
पृष्ठ: 144
विभिन्न ज्वलंत मुद्दों पर अपनी तीखी टिप्पणियों के संग-संग सारगर्भित, तीक्ष्ण एवं चोट करती हुई कविताओं हेतु साहित्य जगत में विशिष्ट पहचान रखने वाले वरिष्ठ साहित्यकार एवं विश्लेषक शैलेन्द्र जी की प्रस्तुत पुस्तक भारतीय स्वयंत्रता संग्राम से परिचय करवाती हुई ऐसे तमाम क्रांतिकारी चेहरों को प्रस्तुत करती है जो अपने बहुमूल्य योगदान के बावजूद गुमनामी में खोए भले ही न हों किन्तु धूमिल अवश्य रहे। साथ ही वे उन महान क्रांतिकारियों का उल्लेख करने से विरत नहीं रहे हैं जिनके विषय में अमूमन देश का बच्चा बच्चा जनता है यथा भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, राजगुरु, सुखदेव, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई इत्यादि।
भारतीय स्वाधीनता संग्राम भारतीय इतिहास का महत्त्वपूर्ण अध्याय है। इस संग्राम के दौरान, भारतीय जनता ने अँग्रेज़ों के विरुद्ध अद्वितीय साहसिक संघर्ष किया एवं यह संघर्ष भारतीय जनता की सामूहिक जागरूकता, देश के प्रति प्रेम एवं समर्पण तथा समर्थन एवं निरंतर संघर्ष व एकजुटता का परिणाम था।
यूँ तो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रत्येक अंग यथा सामाजिक प्रतिरोध, अहिंसा, असहयोग आंदोलन, क्रांतिकारी गतिविधियाँ इत्यादि अहम थे, इन्हीं विभिन्न विशिष्ट पहलू के चंद बिंदुओं पर दृष्टिपात करें:
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स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय जनता ने अभूतपूर्व एकता एवं संगठन शक्ति का परिचय दिया। विभिन्न वर्गों, समुदायों, धर्मों और संस्कृतियों के लोग मिलकर एक साथ खड़े होकर अँग्रेज़ों के ख़िलाफ़ लड़े।
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विभिन्न विचारधाराओं के बावजूद क्रांतिकारी धारा को अपनाने वालों को भी आमजन का भरपूर सहयोग एवं समर्थन मिलने से आंदोलन को नई दिशा मिली।
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महात्मा गाँधी ने अपने अहिंसा के सिद्धांत के माध्यम से स्वंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया एवं सत्याग्रह अहिंसा एवं संयम के मूल्यों की शक्ति से आम जन का परिचय करवाया वहीं अंग्रेज़ी हुकूमत के दिल में भी सिहरन पैदा कर दी।
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स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय जनता ने धर्म, भाषा, और सामाजिक विभाजन के ख़िलाफ़ एकजुट होकर लड़ाई लड़ी एवं ब्रिटिश राज के ख़िलाफ़ एक समृद्ध, स्वतंत्र राष्ट्र की आवाज़ बुलंद की।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अनेकानेक नेताओं, पथप्रदर्शकों एवं क्रांतिकारीयों ने अपना सर्वस्व न्योछावर कर महत्त्वपूर्ण योगदान भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को और अधिक प्रबल एवं प्रभावी बनाने हेतु किया। क्रांति के ज़रिये स्वराज हासिल करने की कामना संग प्रयास करने वाले भगत सिंह, सुखदेव, और राजगुरु जैसे जोशीले युवाओं ने क्रांति का रास्ता अपनाया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में क्रांति का मार्ग चुना। ऐसे ही महान क्रांतिकारियों के विषय में शैलेंद्र जी ने अपनी पुस्तक में जानकारी सँजोए है बटुकेश्वर दत्त, अशफाक उल्लाह, रास बिहारी, सुखदेव, राजगुरु, टंट्या भील, बिरसा मुंडा, बारिंद्रनाथ, भगत सिंह, कुंदन लाल गुप्त, चाफेकर बंधु, केसरी सिंह तथा सुशीला दीदी और मेडम भीका जी कामा जैसे अनेकोनेक क्रांतिवीरों का ज़िक्र उन्होंने विस्तार से किया है। इन वीरों की शहादत ने भारतीय स्वाधीनता आंदोलन को नई ऊर्जा, संघर्ष की प्रेरणा एवं दिशा दी। तो सुभाष चंद्र बोस ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक संगठित रूप देने का प्रयास किया। “तुम मुझे ख़ून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा” एक ऐसा नारा बनके उभरा जो युवाओं सहित प्रत्येक भारतवासी के दिल में जोश भर देता था। जिसने भारतीय जनता को काफ़ी आत्मबल दिया। प्रस्तुत पुस्तक में शैलेन्द्र जी ने विस्तार से विभिन्न क्रांतिकारियों के कार्य एवं जीवन पर प्रकाश डाला है जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को साहसिक और निर्णायक रूप दिया, जिससे भारत अपनी स्वतंत्रता की दिशा में अग्रसर हो सका। इन्हीं क्रांतिकारी विचारधारा के पोषकों ने अपने कार्यों, संघर्ष व आज़ादी हेतु किए गए प्रयासों से भारतीय जनता के दिलों में जोश, जुनून तथा स्वतंत्रता के लिए दिलों में एक उम्मीद के साथ उनका स्वाभिमान जागृत करने में सफलता हासिल की फलस्वरूप आम भारतीय ने भी स्वयं पर विश्वास हासिल किया। झलकारी बाई, जो रानी लक्ष्मी बाई के क्षेत्र से थीं, ने स्वतंत्रता संग्राम में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने 1857 की विप्लवी आंदोलन में भाग लिया और अँग्रेज़ों के ख़िलाफ़ लड़ते हुए बड़ी साहसिकता दिखाई। झलकारी बाई की वीरता और साहस ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में उन्हें एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान किया है। तो वहीं झांसी की रानी लक्ष्मीबाई एक अत्यंत प्रतिभाशाली और साहसी योद्धा थीं, जिन्होंने 1857 के विद्रोह में अपने शौर्य का प्रदर्शन किया। उनकी वीरता के क़िस्से जन-जन में मशहूर हैं।
अशफाक उल्लाह खान भी स्वाधीनता संग्राम के एक महत्त्वपूर्ण एवं प्रभावशाली नेता थे। उन्होंने अपने जीवन के दौरान ब्रिटिश साम्राज्य के ख़िलाफ़ लड़ते हुए भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। 1857 की भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महत्त्वपूर्ण विद्रोह में भाग लिया।
रास बिहारी बोस का भी स्वाधीनता संग्राम में अविस्मरणीय योगदान रहा। मूलतः वे बंगाल से थे। बोस का जन्म 25 मई, 1886 को ओड़िशा में हुआ था। उन्होंने अपने जीवन में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्त्वपूर्ण योगदान दिए। शहीद शिवराम हरी राजगुरु का जन्म 24 अगस्त 1908 को महाराष्ट्र के खेड़ा ज़िले में हुआ था। उन्होंने अपनी युवावस्था में महात्मा गाँधी के साथ जुड़कर स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और ब्रिटिश साम्राज्य के ख़िलाफ़ संघर्ष किया। राजगुरु ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कार्यकर्ता और स्वतंत्रता संग्रामी के रूप में अपने प्रमुख योगदान किए तथा वीरता, साहस और समर्पण के माध्यम से भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
तनिक कम जाने वाले नामों में क्रांतिकारी मन्मनाथ गुप्त, अहमदुल्लाह और जोधसिंघ अटैया के नाम प्रमुखता से लिए जा सकते हैं। अहमदुल्लाह शाह एक प्रमुख मुस्लिम नेता थे एवं उनके नेतृत्व में मुस्लिम समुदाय को स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ने की दिशा में काफ़ी काम हुआ तो वहीं जोधसिंह अटैया, झारखंड के आदिवासी नेता थे और उन्होंने भी ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ डटकर संघर्ष किया। इन तीनों क्रांतिकारियों का योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में महत्त्वपूर्ण है।
शैलेन्द्र जी ने अपनी पुस्तक में विशेष रूप से आदिवासी तथा संथाली क्रांतिकारियों का स्वाधीनता संग्राम में योगदान विषय पर भी ख़ूबसूरत आलेख दिया है। जिनका स्वतंत्रता संग्राम में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपने संघर्ष के माध्यम से अपने जनमानस को सशक्त किया और उन्हें अपने अधिकारों के लिए लड़ने की प्रेरणा दी। जिनमें बिरसा मुंडा जो की झारखंड के संथाली आदिवासी लोगों के नेता थे, जिन्होंने आदिवासी अधिकारों की लड़ाई में भूमिका निभाई। उन्होंने ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ आंदोलन और अपने समुदाय के लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल किया।
क्रांतिकारियों पर चर्चा के साथ ही शैलेन्द्र जी ने अपनी पुस्तक में उन विशिष्ट घटनाओं को भी समेटा है जो भारतीय स्वयंत्रता संग्राम हेतु काफ़ी अहम थीं यथा अगस्त क्रांति: अगस्त क्रांति भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्त्वपूर्ण घटना थी जो 9 अगस्त 1942 को घटित हुई जिसे ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ या ‘भारत छोड़ो अभियान’ भी कहा जाता है। यह आंदोलन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में आयोजित किया गया था और इसका मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ भारतीय स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए अभियान चलाना था। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य भारतीय स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए ब्रिटिश सरकार पर दबाव डालना था। गाँधीजी ने इस आंदोलन को नेतृत्व किया और उन्होंने इसे “भारत छोड़ो” का नारा दिया इस आंदोलन में भारतीय जनता ने ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ अहिंसक प्रदर्शन किया। इसे “भारतीय स्वतंत्रता संग्राम” का महत्त्वपूर्ण अध्याय माना जाता है।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और गाँधीवादी धारा के बीच गहरा सम्बन्ध था। गाँधीवादी धारा, जिसे अहिंसा, सत्याग्रह, और सहयोग के माध्यम से अपनाया गया था, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्त्वपूर्ण और प्रभावशाली भाग था। गाँधीवादी धारा का मुख्य उद्देश्य अँग्रेज़ों के ख़िलाफ़ अपने अधिकारों की रक्षा करना तो था किन्तु इसे पूर्णतः अहिंसा के माध्यम से किया जाना चाहिए था।
शैलेन्द्र जी की यह पुस्तक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सभी वीर योद्धाओं को, भले ही वे किसी भी धारा को मानते रहे हों सच्ची श्रद्धांजलि है एवं बहुत से भुला दिए गए वीरों के अमूल्य योगदान को भी याद दिलाती है।
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