दलित प्रेम
काव्य साहित्य | कविता शैलेन्द्र चौहान15 Oct 2022 (अंक: 215, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
उनके मन में दलितों के प्रति
है इतना प्रेम कि हुलस गये
पैर पखारने के लिए कुंभ में
बहुतों ने दलितों के साथ बैठकर खाना खाया
रिच मेनू वाला जो
मँगवाया गया था ज़िले के सबसे अच्छे होटल से
उनके अपने स्वादानुसार जो वे खाते हैं अक़्सर
पहली बार दलितों ने उसका चखा स्वाद
उमड़ता है देश के प्रत्येक भाग में ऐसा ही प्रेम
बैठने के पर खाट पे गाँवों में
बजाने पर बैंड और घोड़ी पर चढ़ने
सवर्ण बस्तियों से गुज़रने पर बारात
अब उन्हें आरक्षण से इतना प्रेम है कि उसे
आर्थिक तौर पर देने के लिए हैं कटिबद्ध
मिटाने को ग़रीबी और भेदभाव
वे हर हालत में दलितों को लाना चाहते हैं
सवर्णों के समकक्ष
ख़त्म कर पक्षपात जो व्याप्त है सत्तर वर्षों से
नौकरियों में, शिक्षण संस्थाओं में और समाज में
इसीलिए तो वे चेताते हैं
रोहित वेमुला और पायल तडवी जैसे
होनहार विद्यार्थियों को
कि बराबरी के लिए उत्सर्ग करने होते हैं प्राण
आहुति देनी होती है जीवन की
राष्ट्रहित में दलित ख़ुशी से मान लेते हैं उनकी दलीलें
और पूरी श्रद्धा से लौटाते हैं वापस प्रेम
ईवीएम में दर्ज करते हैं इतिहास
समाज में तेज़ी से बढ़ रहा है सद्भाव।
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