पोथी लिख-लिख जग मुआ लेखक भया न कोय
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी शैलेन्द्र चौहान23 Feb 2019
प्रिय कवि,
तुम्हारी कविताएँ मिलीं, कविताएँ अच्छी हैं पर कम हैं। चुनी हुई बेहतर कविताएँ दी जा सकें इसलिए कुछ और कविताएँ भेजो क्योंकि एक साथ अच्छी चार-पाँच कविताओं से ही प्रभाव निर्मित होता है। उम्मीद है शीघ्र ही रचनाएँ भिजवाओगे। पत्रिका समय से निकालने में बहुत मेहनत करनी पड़ती है, सारे काम ख़ुद ही करने पड़ते हैं। यह तो तुम्हें पता ही है आजकल छपाई और पोस्टेज कितना अधिक महँगा है। पत्रिका निकालने में ख़र्च काफ़ी हो जाता है। विज्ञापन मिलते नहीं हैं, ग्राहक भी बहुत नहीं बन पाते। बस तुम्हारे जैसे कुछ समर्थ मित्रों के सहयोग से और शेष अपनी जेब से पैसे लगाकर पत्रिका निकालता हूँ। पिछले पाँच अंकों से घाटा बहुत बढ़ गया है, क़र्ज़ भी हो गया है अत: उम्मीद है तुम कुछ विज्ञापन वग़ैरह दिलाकर आर्थिक मदद कर सकोगे। कुछ ग्राहक भी बना सको तो अच्छा रहेगा, तुम स्वयं तो ग्राहक बन ही जाओगे ऐसी उम्मीद है। कुछ प्रतियाँ अपने शहर के बुक स्टाल पर रखवा सको तो बहुत अच्छा हो, वैसे पाँच-दस प्रतियाँ तो तुम स्वयं भी निकाल सकते हो। तुम्हारी ही पत्रिका है। चार-छ: अच्छी कविताएँ और भेज दो। चुनकर चार-पाँच कविताएँ छाप दूँगा। शेष ठीक है, विज्ञापन के लिए अवश्य प्रयत्न करना। अपना सहयोग भी भिजवाना। कविताएँ जल्दी ही भेजना। प्रसन्न होओगे, शुभकामनाओं सहित,
तुम्हारा
सम्पादक
आदरणीय सम्पादक जी
सादर वन्दे !
आपका कृपापत्र पाकर अत्यधिक प्रसन्नता हुई। मेरी कविताएँ आपको अच्छी लगीं यह मेरा परम सौभाग्य है। आप उद्भट विद्वान हैं, समर्थ निर्णायक हैं। अच्छी कविताओं के मामले में आप सचमुच एक पहुँचे हुए जौहरी हैं। मैं अपनी दस कविताएँ और भेज रहा हूँ, इनमें से और पहले भेजी हुई पाँच कविताओं में से पाँच छह कविताएँ छाँट लें। वैसे मेरे विचार से वह कविता जो पहले मैंने आपको भेजी थी ’नागरिक पराभव’ वाली, बढ़िया बन गई है उसे थोड़ा हाइलाइट करें, यह मेरी प्रार्थना है। मैं शीघ्र ही दो विज्ञापन भिजवा रहा हूँ साथ ही अपना चन्दा भी। अंक छपने पर दस प्रतियाँ भिजवा दें, मैं निकलवा दूँगा। शहर के बुक स्टाल पर भी बात की है, वहाँ फिलहाल पाँच प्रतियाँ भिजवाएँ, बिक जाने पर और बात की जा सकती है।
आपका कहानी संग्रह ’कड़वे नीम की तीन पत्तियाँ’ जो बटमार प्रकाशन से आया है बहुत ही महत्वपूर्ण है। बहुत समृद्ध कहानियाँ हैं उसमें, मनोवैज्ञानिक स्तर पर बहुत अच्छा विश्लेषण है चरित्रों का। चरित्र एकदम जीवंत हैं, जैसे आसपास ही घूम रहे हों, क्या पकड़ है आपकी। संग्रह की सर्वश्रेष्ठ कहानी है ’चोली घाघरा’ अद्वितीय है यह। ये कहानियाँ एकदम जैनेन्द्र की टक्कर की कहानियाँ हैं बल्कि कहीं-कहीं तो जैनेन्द्र की कहानियाँ आपके सामने दब सी जाती हैं। इस वक्त के आप सर्वश्रेष्ठ कथाकार हैं, कोई और तो इन दिनों आपके पासंग भी नहीं ठहर पा रहा है। मैं इस कहानी संग्रह पर अपने शहर में एक बड़ी गोष्ठी कराना चाहता हूँ, आप तो पधारेंगे ही, सुविधानुसार तारीख तय कर दें। विस्तृत कार्यक्रम अगले पत्र में लिख्¡गा। स्वस्थ एवं प्रसन्नचित्त होंगे। पत्रोत्तर की प्रतीक्षा में-
आपका स्नेह भाजन
कवि
प्रिय कवि,
तुम्हारा पत्र एवं कविताएँ आज ही मिलीं। कविताएँ बहुत अच्छी हैं, अपार सम्भावनों हैं तुम्हारी कविताओं में। पत्रिका के इस अंक में ये कविताएँ दे रहा हूँ। ’नागरिक पराभव’ वाली कविता बहुत सहज एवं सरल कविता है, तुम्हें पसंद है तो मैं इसे अवश्य ही हाइलाइट करूँगा। मैं स्वयं तुम्हारी कविताओं पर टिप्पणी लिख रहा हूँ। जानकार पांडेय जो महान साहित्य आलोचक हैं, अपने मित्र ही हैं, उनसे भी लिखवाऊँगा। किसी दिन शाम को ड्रिंक्स पर बुला लेता हूँ उन्हें, उस दिन अगर तुम भी आ सको तो और भी अच्छा रहेगा। उनसे बात करके दिन तारीख तुम्हें सूचित करूँगा। तुम्हारे भेजे दोनों विज्ञापन प्राप्त हो गए हैं, जब आओ तो पैसे भी लेते आना, अगले माह ही छप जायेंगे। उम्मीद है कुछ और भी विज्ञापन दिला सकोगे। शेष फिर सानंद होओगे। शुभकामनाओं सहित -
तुम्हारा
सम्पादक
पूज्यनीय सम्पादक जी
शत् शत् नमन !
आपका स्नेह, अपनत्व और कृपा से पूर्ण पत्र पढ़कर आत्मा तक आनंद की कौंध व्याप्त हो गई। मैं तो प्रसन्नता के मारे सचमुच कुछ सोच ही नहीं पा रहा हूँ। आप और जानकार पांडे दोनों मेरी कविताओं पर टिप्पणी लिख रहे हैं, यह तो अद्भुत है। मुझे तो यह सुखद सपना प्रतीत हो रहा है सम्पादक जी यह सब आपकी ही कृपा है, आपसे परिचय के बिना यह सब संभव नहीं था। आप निश्चित ही महान और कृपालु व्यक्तित्व के धनी हैं। मैं आपके और पांडेय जी के दर्शनलाभ से अवश्य ही कृतार्थ होना चाहूँगा। आप दिन तिथि की सूचना दें, मैं अवश्य ही पहुँच जाऊँगा।
विज्ञापन वाले चेक भेज रहा हूँ, कुछ और भी शीघ्र ही इन्तज़ाम करूँगा। अपना आजीवन सदस्यता शुल्क भिजवा रहा हूँ, साथ ही दस सदस्यों की सदस्यता भी। आपके व्यक्तित्व, रुचियों और अरुचियों के बारे में जानना चाहता हूँ।
आपके दर्शनों की प्रतीक्षा में-
आपका, सादर
अकिंचन
प्रिय कवि,
सदैव प्रसन्न रहो!
तुम निश्चित ही प्रतिभाशाली हो, तुममें अनन्त सम्भावनाएँ हैं। मैं तुम्हारी गम्भीरता और मेहनत की क़द्र करता हूँ। तुम्हारे ’टेलेन्ट’ को सामने आना चाहिए। जानकार पांडेय से बात हो गई है, अगले सप्ताह सोमवार को तुम्हें आना है। जानकार पांडेय इन दिनों कई पुरस्कार समितियों के सदस्य हैं, हो सकता है कोई पुरस्कार भी तुम्हें दिलवा सकें। सुना है तुम्हारे यहाँ केशर-कस्तूरी अच्छी मिलती है, साथ में दो बोतल लेते आना, अंग्रेज़ी की व्यवस्था हम यहीं से कर लेंगे। शेष मिलने पर। और हाँ, मेरी कहानी पुस्तक गोष्ठी के लिए भी यहीं पक्का कार्यक्रम बना लेंगे स्वस्थ एवं प्रसन्न होओगे।
तुम्हारा
सम्पादक
महानगर से लौटने के बाद इन दिनों कवि ने अपने क़स्बे को काफ़ी साहित्यिक सक्रियता बख्शी है। इधर वह हर मिलने जुलने वाले से अपने और पत्रिका के सम्पादक के घनिष्ठ सम्बंधों की चर्चा गर्व से करने लगा है। जानकार पांडेय को तो उसने अपना गुरु घोषित कर दिया है। पत्रिका सम्पादक की कहानी पुस्तक ’कड़वे नीम की तीन पत्तियाँ’ वह क़स्बे के हर व्यक्ति की जबान पर चस्पा कर देना चाहता है। गोष्ठी के लिए वह जी तोड़ मेहनत कर रहा है। व्यापक स्तर पर बड़ी गोष्ठी का आयोजन करना है। ऐसी जैसी इस क़स्बे में पहले कभी न हुई हो। इलाके के एम एल ए और आबकारी मंत्री को वह गोष्ठी में मुख्य अतिथि बनाना चाहता है, सो दिन-रात सघन संपर्कों के चक्कर काट रहा है।
इस माह की पत्रिका ’ध्वंस’ में कवि की छ: कविताएँ मय फोटो के महत्वपूर्ण ढंग से छापी गईं हैं, साथ में दो वज़नदार टिप्पणियाँ भी हैं। सम्पादक ने कवि को इस दशक का सर्वश्रेष्ठ कवि घोषित किया है। आलोचक जानकार पांडेय ने तो कवि को हिन्दी का ईलियट बता दिया है। महानगर से क़स्बे तक कवि की चर्चा साहित्यिक बिरादरी में हो रही है। उम्मीद है इस वर्ष कोई न कोई पुरस्कार कवि को अवश्य मिल जोगा।
क़स्बे में ध्वंस सम्पादक की कहानी पुस्तक ’कड़वे नीम की तीन पत्तियाँ’ पर एक बड़ी गोष्ठी का आयोजन सम्पन्न हुआ। आबकारी मंत्री बावजूद स्वीकृति के नहीं आ पाए। एम एल ए ने उद्घाटन करते हुए कहा "हमारे सहर का ई लौण्डा बहुत बड़ा साहित्यकार हुई गवा है। इन दिनों ई ने हमार बहुत सेवा की है। हमार नाम से बहुत साहित्यिक भाषण लिखे हैं जो हमने जनता के बीच पढ़ दिए हैं। राज्य की साहित्यिक अकादमी से ई की कविता की किताब छपवाये के लिए मदद भी हम सेंकसन करवा दिए हैं। ई सम्पादक भी बड़े गुणी आदमी हैं। हमरा साक्षात्कार छाप रहे हैं, अगले महीने आप सब लोग पढ़िएगा। हमें जरुरी जाना है सो हम चलेंगे, आप लोग गोष्ठी खूब करिए। हमारी एबसन्स में ई थानेदार जो बहुत बढ़िया कविता भी लिखते हैं, गोष्ठी की कार्यवाही चलायेंगे, जय हिन्द।"
जानकार पांडेय की ओजस्वी आलोचना के साथ-साथ मंच के पीछे मदिरा का दौर चल रहा था जो आबकारी विभाग की कृपा से सस्ते में उपलब्ध हो गई थी। क़रीब-क़रीब सभी वक्ता गला तर कर चुके थे। थानेदार को भी तलब छुटी, मंच से उतर कर उन्होंने भी ठीक से गला तर किया। जानकार पांडेय के बाद कुछ और वक्ता बोले उसके बाद कवि का नम्बर आया। कवि ने उठकर सम्पादक को महान, महानतर, महानतम कथाकार बताया और सम्पादक के श्री चरणों को नमन के लिए वह मंच पर बैठे सम्पादक के पास पहुँच गया। तब तक थानेदार अपनी जगह बैठ चुके थे और जानकार पांडेय अपना गला तर कर रहे थे। सम्पादक के पास पहुँच कर कवि ने उनके चरण ढूँढने चाहे, सम्पादक हड़बड़ा कर उठा और कवि को पकड़ने के चक्कर में उससे टकराया। कवि सीधा औंधे मुँह सम्पादक के चरणों में गिरा। कवि को उठाने की कोशिश में सम्पादक भी कवि के ऊपर गिर पड़ा, दोनों इस वक़्त तरंग में थे। दरोगा थोड़ी देर चुपचाप तमाशा देखता रहा, मंच पर बैठे कुछ लोगों ने दोनों को सँभालने की कोशिश की पर जब वे नहीं सँभल पाए तो दरोगा उठा और उठते ही कवि और सम्पादक दोनों की पीठ पर दो-दो लातें जमाईं। वह चिल्लाया "स्साले शराबियों, मैं तुम्हें हवालात में बन्द कर दूँगा।" इस नाटक को देखकर श्रोता खड़े हो गए। थानेदार की बेहूदगी पर वे नाराज़ी ज़ाहिर करें उससे पहले ही थानेदार अपने सिपाहियों सहित वहाँ से खिसक लिया।
अगले दिन अख़बारों में दो कालम में गोष्ठी की रिपोर्ट छपी। छम्मक छल्लो, अनारकली और चोली दामन के साथ ही ’मदिरा महात्म्य’ कहानी की भूरी-भूरी प्रशंसा की गई थी। रिपोर्ट के अंत में थानेदार द्वारा सम्पादक को सम्मानित करते हुए बताया गया था
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
60 साल का नौजवान
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी | समीक्षा तैलंगरामावतर और मैं लगभग एक ही उम्र के थे। मैंने…
(ब)जट : यमला पगला दीवाना
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी | अमित शर्माप्रतिवर्ष संसद में आम बजट पेश किया जाता…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- मारे गए हैं वे
- अतीत
- अदेह
- अवसान
- अहा!
- आगे वक़्त की कौन राह?
- इतिहास में झाँकने पर
- इतिहास में झाँकने पर
- उदासीनता
- उपसंहार
- उलाहना
- कवि-कारख़ाना
- कश्मकश
- कामना
- कृषि का गणित
- कोई दिवस
- क्रिकेट का क्रेज़
- क्षत-विक्षत
- गर्वोन्मत्त
- गीत बहुत बन जाएँगे
- चिंगारी
- छवि खो गई जो
- डुबोया मुझको होने ने मैं न होता तो क्या होता!
- तड़ित रश्मियाँ
- दलित प्रेम
- धूप रात माटी
- परिवर्तन
- बड़ी बात
- बदल गये हम
- बर्फ़
- ब्रह्म ज्ञान
- मारण मोहन उच्चाटन
- मुक्ति का रास्ता
- मृत्यु
- यह है कितने प्रकाश वर्षों की दूरी
- ये कैसा वसंत है कविवर
- रीढ़हीन
- लोकतंत्र
- वह प्रगतिशील कवि
- विकास अभी रुका तो नहीं है
- विडंबना
- विरासत
- विवश पशु
- विवशता
- शिशिर की एक सुबह
- संचार अवरोध
- समय
- समय-सांप्रदायिक
- साहित्य के चित्रगुप्त
- सूत न कपास
- स्थापित लोग
- स्थापित लोग
- स्वप्निल द्वीप
- हिंदी दिवस
- फ़िल वक़्त
साहित्यिक आलेख
- प्रेमचंद साहित्य में मध्यवर्गीयता की पहचान
- आभाओं के उस विदा-काल में
- एम. एफ. हुसैन
- ऑस्कर वाइल्ड
- कैनेडा का साहित्य
- क्या लघुपत्रिकाओं ने अब अपना चरित्र बदल लिया है?
- तलछट से निकले हुए एक महान कथाकार
- भारतीय संस्कृति की गहरी समझ
- ये बच्चा कैसा बच्चा है!
- संवेदना ही कविता का मूल तत्त्व है
- सामाजिक यथार्थ के अनूठे व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई
- साहित्य का नोबेल पुरस्कार - २०१४
- हिंदी की आलोचना परंपरा
सामाजिक आलेख
पुस्तक चर्चा
पुस्तक समीक्षा
ऐतिहासिक
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
आप-बीती
यात्रा-संस्मरण
स्मृति लेख
- एक यात्रा हरिपाल त्यागी के साथ
- यायावर मैं – 001: घुमक्कड़ी
- यायावर मैं – 002: दुस्साहस
- यायावर मैं–003: भ्रमण-प्रशिक्षण
- यायावर मैं–004: एक इलाहबाद मेरे भीतर
- यायावर मैं–005: धड़कन
- यायावर मैं–006: सृजन संवाद
- यायावर मैं–007: स्थानांतरण
- यायावर मैं–008: ‘धरती’ पत्रिका का ‘शील’ विशेषांक
- यायावर मैं–009: कुछ यूँ भी
- यायावर मैं–010: मराठवाड़ा की महक
- यायावर मैं–011: ठहरा हुआ शहर
कहानी
काम की बात
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं