अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

यायावर मैं–006: सृजन संवाद

उन दिनों रचनाएँ क़लम से काग़ज़ पर लिखी जाती थीं और कुछ सुधार के बाद फ़ेयर करके डाक से पत्र-पत्रिकाओं को भेजी जाती थीं। यह सन्‌ 1981-82 की बात है जब जयपुर से निकलने वाली एक लघु पत्रिका ‘मधुमाधवी’ के कहानी आलोचना अंक हेतु मुझसे आलेख माँगा गया। इस पत्रिका की संपादक सुश्री नलिनी उपाध्याय थीं। मेरा उनसे परिचय नहीं था। संभवतः ‘धरती’ के मधुमाधवी विनिमय के कारण हमारा परिचय रहा होगा। उन दिनों मैं नांदेड (महाराष्ट्र) में इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड में नौकरी करता था। तब कविताएँ और कहानियाँ लिखता था। आलोचना में कोई गति नहीं थी। एक दो समीक्षाएँ भर लिखी थीं। हाँ लघुपत्रिकाओं पर नागपुर से निकलने वाले साप्ताहिक पत्र ‘नया खून’ में टिप्पणियाँ किया करता था। उन दिनों विनायक कराडे तब कार्यकारी संपादक थे। कभी मुक्तिबोध इसका संपादन देखते थे। कहानियों पर आलेख लिखना मुश्‍किल लग रहा था पर सोचा कोशिश करता हूँ शायद कुछ बन जाये। ‘धरती’ के समकालीन कविता अंक के लोकार्पण के सिलसिले में नांदेड के मराठी साहित्यकारों से परिचय हुआ था जिनमें स्थानीय महाविद्यालय के प्राध्यापक भी थे। धरती के इस अंक का आश्चर्यजनक रूप से भव्य लोकार्पण हुआ था। यहाँ हिंदी विभाग भी था। हिंदी के विभागाध्यक्ष जोशी जी एक भले व्यक्ति थे। नाम मैं भूल रहा हूँ। वहीं एक प्राध्यापक भा. ग. महामुनि थे। मराठी के एक बड़े आलोचक नरहरि कुरुंदकर थे। वे नौकरी से अवकाश प्राप्त कर चुके थे। उनका प्रभामंडल घना था। उनसे बात होनी मुश्‍किल थी। मराठी साहित्य की मेरी जानकारी नगण्य ही थी। एक बहुत सहृदय और विद्वान इतिहासकार स रा गाडगील थे जिनकी मध्यकाल के संत साहित्य में वैचारिक उत्प्रेरण पर कई पुस्तकें थीं। उन्हें हिंदी नहीं आती थी लेकिन मुझसे बात करने के लिए उन्होंने हिंदी में बात करने का पूरा प्रयास किया। तो भा ग महामुनि ने आलेख लिखने में मेरा मनोबल बढ़ाया। और मैंने लेख लिख लिया। मैं बहुत आश्वस्त नहीं था पर उसे डाक से भेज दिया गया। एकाध महीने बाद स्वीकृति भी प्राप्त हो गई। समय बीत चला। मैंने वह नौकरी छोड़ने का मन बना लिया और एक दूसरे संस्थान में मुझे नौकरी मिली। पोस्टिंग इलाहबाद थी। मैं ख़ुश था। मैंने इस्तीफ़ा दे दिया और एक माह बाद मुक्त होकर इलाहबाद पहुँच गया। मधुमाधवी की संपादक को मैंने पत्र द्वारा सूचना दे दी कि नांदेड छोड़ दिया है। पत्रिका वहाँ न भिजवाएँ। मैं मार्च 1982 में इलाहबाद पहुँचा। लघुपत्रिकाओं के प्रकाशन में अनेकानेक कारणों से बिलंब होता है। अतः यह अंक 1983 में ही मिल सका। इस वक़्त तक धरती का त्रिलोचन अंक प्रकाशित हो चुका था और जयपुर में प्रलेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में उसका विमोचन हुआ था। बहरहाल मधुमाधवी का कहानी आलोचना अंक मिला। उसमें अनेक महत्त्वपूर्ण साहित्‍यकार मौजूद थे। उन सबके बीच अपने लिखे हुए से मैं बहुत आश्वस्त नहीं हो पाया। और अभ्यास की ज़रूरत लगी। 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

अति विनम्रता
|

दशकों पुरानी बात है। उन दिनों हम सरोजिनी…

अनचाही बेटी
|

दो वर्ष पूरा होने में अभी तिरपन दिन अथवा…

अनोखा विवाह
|

नीरजा और महेश चंद्र द्विवेदी की सगाई की…

अनोखे और मज़ेदार संस्मरण
|

यदि हम आँख-कान खोल के रखें, तो पायेंगे कि…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

साहित्यिक आलेख

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

कविता

आप-बीती

यात्रा-संस्मरण

स्मृति लेख

ऐतिहासिक

सामाजिक आलेख

कहानी

काम की बात

पुस्तक समीक्षा

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं

लेखक की पुस्तकें

  1. धरती-21